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Ghosi Assembly By-Election Effect: घोसी उपचुनाव में हार के बाद Dara Singh Chauhan और Om Prakash Rajbhar का क्या होगा? समझिए

घोसी विधानसभा उपचुनाव में एनडीए के उम्मीदवार दारा सिंह चौहान की हार के बाद गठबंधन में खलबली मची हुई है. हार के बाद पहली बार दारा सिंह चौहान दिल्ली पहुंचे तो उनके चेहरे पर मायूसी साफ दिखाई दी. उनको अपने भविष्य को लेकर चिंता है. उधर, ओम प्रकाश राजभर की योगी कैबिनेट में वापसी पर भी संशय दिखाई देने लगा है.

एनडीए में ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान का क्या होगा एनडीए में ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान का क्या होगा

राजनीति में ऊंट कब किस करवट बैठेगा, कहा नहीं जा सकता. एक सप्ताह पहले दारा सिंह चौहान की 'घर वापसी' पर दांव लगाने वाली बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व घोसी में जिस जीत की उम्मीद संजोए था, वो उम्मीद टूट गई. बीजेपी का दारा को चुनाव लड़ाने का दांव फेल हो गया. पार्टी की राज्य यूनिट की सहमति ना होने के बावजूद दिल्ली से जो बड़ा फैसला लिया गया था, वो सही नहीं बैठा. दारा सिंह चौहान घोसी उपचुनाव न सिर्फ हारे, बल्कि उस क्षेत्र में पार्टी के आगे के कई समीकरण भी बिगड़ गए.

घोषी की जनता का बीजेपी को झटका-
घोसी उपचुनाव में बीजेपी के आयातित उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को मतदाताओं ने रिजेक्ट कर दिया. समाजवादी पार्टी के सुधाकर सिंह ने 42 हजार से ज्यादा मतों से ना सिर्फ दारा सिंह चौहान को हराया, बल्कि राजनीतिक दलों को इस बात का संदेश भी दे दिया कि जनता 'दलबदलुओं' को कभी भी किनारे कर सकती है. देखा जाए तो ये चुनाव बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की रणनीति के टेस्ट की दृष्टि से भी अहम था. क्योंकि इंडिया गठबंधन बनने के बाद ये इंडिया अलायंस और एनडीए का पहला मुकाबला था. तो वहीं 2024 के लिए सबसे बड़ी सियासी रणभूमि माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में भी मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और सत्तारूढ़ बीजेपी में सीधी टक्कर थी.

दिल्ली में मायूस दिखे दारा सिंह-
हार के बाद पहली बार दारा सिंह चौहान बुधवार को दिल्ली दरबार पहुँचे. पार्टी के मुख्यालय में उन्होंने शीर्ष पदाधिकारियों से मुलाकात की. पार्टी मुख्यालय में अंदर जाते जो कुछ सेकेंड का विजुअल दिखा, उसमें साफ तौर कर दारा सिंह चौहान के चेहरे पर मायूसी और आगे के राजनीतिक भविष्य को लेकर अनिश्चितता झलक रही थी. कहा जा रहा है कि दारा सिंह चौहान ने राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष से मुलाकात की और अपनी सफाई दी. कहा ये भी जा रहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने भी उन्होंने अपनी बात रखी. ये भी बताया जा रहा है कि उनको अभी कोई आश्वासन नहीं दिया गया है. हालाँकि विधायकी छोड़ने वाले दारा को अभी अपने पक्ष में पार्टी से फैसले की उम्मीद है.

समर्थकों में एमएलसी बनाने की चर्चा-
इधर दारा सिंह दिल्ली में अपना राजनीतिक भविष्य टटोलने में जुटे हैं, वहीं उनके समर्थकों ने मऊ से लेकर लखनऊ तक इस बात की चर्चा तेज कर दी कि पूर्व डिप्टी सीएम डॉ दिनेश शर्मा के राज्यसभा में जाने की वजह से खाली हुई विधान परिषद की सीट पर दारा को उच्च सदन में भेजा जा सकता है. ये इसलिए अहम है, क्योंकि मंत्री बनने के लिए किसी सदन का सदस्य होना जरूरी है और दारा की बीजेपी में एंट्री के समय से ही इस बात को लेकर चर्चा होती रही है कि दारा सिंह चौहान को योगी कैबिनेट में मंत्री बनाया जाएगा. सूत्रों के अनुसार ये फैसला दिल्ली दरबार में ही होगा। नेतृत्व के सामने एक चुनौती ये है कि दारा की पार्टी में एंट्री में स्टेट यूनिट की सहमति नहीं थी. इस बात की भी चर्चा होती रही कि मुख्यमंत्री ने भी इस पर असहमति जतायी थी. लेकिन तमाम समीकरणों को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व ने ये फैसला किया था. अब हार के बाद ये स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी के रूप के दारा सिंह चौहान का साथ नहीं किया. वहीं दारा अपने 'सजातीय वोट' के मामले में भी पूरी तरह से नाकाम रहे. अपने सजातीय वोटों वाले बेल्ट में भी दारा को समर्थन और वोट नहीं मिला. चौहान वोटों ने भी साथ नहीं दिया.

दारा सिंह को मिलेगा दूसरा मौका?
ऐसे में अब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए दारा को 'सेकेंड चांस' देना चुनौती होगी. वजह ये है कि पार्टी का एक बड़ा धड़ा दारा सिंह चौहान के खिलाफ है. दूसरी वजह ये है कि दिनेश शर्मा की  रिक्त सीट पर जो चुना जाता है, उसका कार्यकाल जनवरी 2027 तक होगा. यानी पार्टी उसमें अपना कोई कार्यकर्ता को उतारना चाहेगी. हालाँकि बीजेपी की रणनीति ऐसे क्षेत्रीय या स्थानीय क्षत्रपों को लेने की रही है. इसकी वजह ये है कि पार्टी उस क्षेत्र में उस नेता के सजातीय वोटों को जोड़ना चाहती है. लेकिन दारा सिंह के चौहान बहुल वोटों के क्षेत्रों में ना सिर्फ समाजवादी पार्टी ने बाजी मारी, बल्कि प्रचार के दौरान दारा को जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा। एक युवक ने दारा पर स्याही फेंक कर विरोध जताया था. दारा की इस स्थिति का अंदाजा पार्टी नेतृत्व को और प्रचार में गए दर्जनों प्रदेश के नेताओं को मतदान से पहले ही हो गया था. लेकिन पार्टी के लिए तब बहुत देर हो चुकी थी.

अब दारा सिंह चौहान का क्या होगा?
हालांकि कई बार बीजेपी दूरगामी रणनीति को देखते हुए ऐसा जोखिम भी लेती है. लेकिन ऐसे फैसले अपवाद ही हैं. ऐसे में कहा जा रहा है कि दारा को पार्टी में लाने और चुनाव लड़ाने की तरह ही दारा को लेकर ये फैसला भी पूरी तरह से दिल्ली दरबार में ही होगा. यूपी बीजेपी के एक पदाधिकारी ने बताया कि पहले भी वहाँ से फैसला हुआ था. अब भी जो तय होगा, वहीं से होगा. फिलहाल दारा के समर्थक विधान परिषद की सीट को लेकर लामबंदी में जुटे हैं, क्योंकि अगर दारा सिंह को पार्टी के साथ जोड़ कर रखना है तो उनको कोई पद देना पार्टी के लिए जरूरी होगा. हालाँकि पार्टी ने चौहान और विशेषकर उस क्षेत्र के मतदाताओं को संदेश देने के लिए पहले ही फागू चौहान को पहले बिहार का और उसके बाद मेघालय का राज्यपाल बनाकर संदेश देने की कोशिश की है. वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्र कहते हैं 'देखिए दारा सिंह चौहान ने घोसी में जो पराजय दिलायी है, उससे ये पता चल गया है कि उनको लेकर लोगों में नाराज़गी है. हालांकि हार का गैप इससे भी बड़ा हो सकता था. इसलिए पार्टी लोकल कार्यकर्ताओं और स्टेट यूनिट को किनारे करते हुए इसलिए भी फैसला नहीं लेना चाहेगी, क्योंकि दारा सिंह चौहान एक दो ज़िलों के ही नेता हैं.' 

ओपी राजभर का क्या होगा?
वहीं ओम प्रकाश राजभर भी पार्टी के साथ आने के बाद पहली परीक्षा में नाकाम हो गए हैं. घोसी में राजभर मतदाताओं ने भी राजभर की नहीं सुनी. हालांकि ओम प्रकाश राजभर ने इसको दारा के प्रति लोगों की नाराजगी बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया है. दरअसल ओम प्रकाश राजभर की उस क्षेत्र में 'उपयोगिता' से ज़्यादा 'डैमेज' न होने देने की रणनीति है. 2022 में राजभर ने ये बात कुछ हद तक साबित भी की है. लेकिन तब समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर उन्होंने अपना चुनाव लड़ा था. ऐसे में किसी बड़े सहयोगी की तलाश में घूम रहे राजभर से लाभ लेने की जगह उनको रोक कर रखना पार्टी की रणनीति होगी. 2024 की सियासी लड़ाई की दृष्टि से उस क्षेत्र के राजभर वोटर्स की ज़रूरत है. अलग-अलग क्षेत्रों ने क्षेत्रीय नेताओं को साथ लेने की रणनीति के तहत अभी बीजेपी को राजभर की जरूरत है. ऐसे में पार्टी राजभर के प्रति सॉफ्ट रह सकती है. माना ये जा रहा है कि आगे उनको मंत्री पद देने पर सहमति बन चुकी है. हालांकि योगी मंत्रिमंडल विस्तार पर अटकलें काफी समय से लगायी जा रही हैं. लेकिन फिलहाल पार्टी के एजेंडे ने पाँच राज्यों में चुनाव के साथ तात्कालिक रूप से संसद का विशेष सत्र है. 18-22 सितम्बर तक चलने वाले सत्र में अगर कोई बड़ा फैसला होता है तो उसको देश भर में फैलाने पर पार्टी की राज्य यूनिट से लेकर शीर्ष नेतृत्व का ध्यान रहेगा. ऐसे में इसकी सितम्बर में होने की सम्भावना फिलहाल नहीं दिख रही. हालांकि पार्टी पर राजभर को 'एडजस्ट' करने का दबाव है. ओम प्रकाश राजभर लगातार इस बात को लेकर बयान दे रहे हैं. फिलहाल शुक्रवार को राजभर का जन्मदिन है, जिसके पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनको बधाई देते हुए शुभकामना पत्र लिखा है.

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