उत्तर प्रदेश के आगरा में दुख, दर्द और इंतजार से भरी कहानी की हैप्पी एंडिंग हो गई है. सन 2010 में अपने परिवार से मुंह मोड़कर गई राखी अपने घर लौट आई है. राखी की उम्र उस समय सिर्फ 9 साल थी. राखी के साथ उसका भाई बबलू भी घर से मुंह मोड़ कर चला गया था जोकि उस समय 6 साल का था. राखी की घर वापसी पर उसकी मां नीतू, नानी शकुंतला समेत सभी परिवार के लोग बहुत खुश हैं. मानों उन्हें अपनी खोई हुई दुनिया फिर से मिल गई हो.
13 साल बाद घर वापसी
नानी शकुंतला ने राखी के मिलने के बाद कहा, ''13 साल बाद आई है. ऐसा लग रहा है कलेजा फाड़कर उसमें बैठा लूं.'' राखी के घर आने पर मां समेत सभी परिवार के लोगों ने उसे छाती से लगा लिया. ऐसा लग रहा था दिसंबर की सर्द कोहरे वाली रात में समय मानों थम सा गया हो. मिलन की इस बेला पर राखी और उसके परिवार के सभी लोगों की आंखों से आंसू निकल पड़े. काफी देर तक रखी और उसके परिवार के लोग उसके मिलने की खुशी जाहिर करते हुए एक-दूसरे को छाती से लगाकर रोते रहे.
बेटी के मिलने पर नीतू के आंखों के आंसू खुशी के मारे थम ही नहीं रहे थे. उसे लग रहा था मानों उसकी सांसें लौट आई हों. जिंदगी में चारों तरफ खुशियां ही खुशियां थीं. नीतू ने अपनी बेटी राखी के मिलने के बाद हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना की. उन्होंने कहा कि जिन मां-बाप के बच्चे उनसे बिछड़ गए हैं सबको मिल जाएं. नीतू अपनी खुशी में भी सब की खुशी के लिए प्रार्थना कर रही थी.
नाराज होकर चले गए थे बच्चे
राखी और बबलू 13 साल पहले मां की पिटाई से नाराज होकर घर से चले गए थे. दरअसल राखी की मां एक दिन जब काम से लौटीं तो राखी ने बर्तन नहीं मांज रखे थे जिसके कारण उन्हें गुस्सा आ गया और उन्होंने राखी की चिमटे से पिटाई कर दी. बच्चों की पिटाई के नीतू ने खाना बनाया और सब लोग खाकर शो गए. दूसरे दिन नीतू मेहनत मजदूरी करने चली गई और जब वह लौटकर घर आई तो घर पर उसके बेटा बबलू और बेटी राखी नहीं थे. आस पड़ोस और मोहल्ले में नीतू ने अपने बच्चों की ढूंढा लेकिन वह कहीं नहीं मिले. नातेदारों और रिश्तेदारों के घर गई अपने बच्चों को तलाशने के लिए लेकिन बच्चे कहीं भी नहीं मिले. थक हारकर मोहल्ले के थाना जगदीशपुर में जाकर रिपोर्ट दर्ज करवा दी. लेकिन पुलिस भी राखी और बबलू को नहीं ढूंढ पाई.
कैसे लगा पता?
नीतू दिन में दिहाड़ी मजदूरी करने के लिए घर से निकलती और लौट के आने के बाद अपने बच्चों को दर-दर ढूंढती रहती थी. 13 साल से यह सिलसिला नीतू की जिंदगी का हिस्सा बन गया था. समय गुजरने के साथ बच्चे भी बड़े होते गए. घर लौट के बाद राखी ने बताया कि उसे ठीक से ध्यान नहीं है कि वह घर से जाने के बाद कहां-कहां और कैसे गई? इतना ध्यान है कि वह और उसका भाई बबलू मेरठ, गाजियाबाद के बाल सुधार गृह में समय-समय पर रहे. वहीं पर उन्होंने शिक्षा-दीक्षा ली. राखी ने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया है और अब वह गुड़गांव के एक मॉल में नौकरी कर रही है. राखी का भाई बबलू इस समय बेंगलुरु में नौकरी कर रहा है और दोनों भाई-बहन एक दूसरे के संपर्क में हैं. मां और परिजनों से बच्चों को मिलने का सिलसिला एक हफ्ते पहले शुरू हुआ था. दरअसल बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस के पास बच्चों की जानकारी आई थी. नरेश पारस ने जानकारी इकट्ठा की. लंबी खोजबीन के बाद नरेश पारस को पता लगा कि 2010 में दो बच्चों के लापता होने की रिपोर्ट थाना जगदीशपुरा में दर्ज हुई थी. नरेश पारस थाना जगदीशपुरा गए और उन्होंने जानकारी हासिल कर पता लिया. नरेश पारस थाने से बताए गए ऐड्रेस पर गए.
कहां है बबलू
बच्चों की मां नीतू के बारे में जानकारी मिली कि वह बहुत पहले मकान छोड़कर कहीं जा चुकी है. नरेश ने एक दूसरे से तार जोड़ते हुए जानकारी हासिल की और अंत में राखी और बबलू की मां नीतू के पास पहुंच गए. वह इस समय पथौली में परिवार के साथ रह रही हैं. नीतू से बातचीत होने के बाद उन्होंने वीडियो कॉल पर राखी और बबलू की बात मंगलवार को कराई. मां और बच्चों ने एक दूसरे से बात की. एक दूसरे को समझा, पहचाना क्योंकि समय के साथ बच्चों की शक्ल सूरत और हुलिया पूरी तरह से बदल चुका था. बच्चों के बिछड़ने के गम में मां की शक्ल सूरत भी बदल गई थी. बबलू अब 19 साल का हो गया है और मां और परिवार से मिलने के लिए बेंगलुरु से आगरा के लिए रवाना हो चुका है. परिवार को बबलू के आने का बेसब्री से इंतजार है.
(अरविंद शर्मा की रिपोर्ट)