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Chana-Matar Ki Kheti: किसान भाई सावधान! ये बीमारियां करती हैं चना और मटर की फसलों पर घातक हमला, जानिए कैसे करें बचाव

Agriculture Tips: चने और मटर की खेती करने वाले किसानों को फसल में बीमारियों को लगने का डर सताते रहता है. आइए जानते समय रहने किन रोगों का कैसे उपचार किया जा सकता है. 

Cultivation of Gram and Pea Cultivation of Gram and Pea
हाइलाइट्स
  • विल्ट और पाउडरी मिल्ड्यू रोग लगने का रहता है अधिक खतरा 

  • समय रहते उचित इलाज कर फसल का कर सकते हैं बचाव

Cultivation of Gram and Pea: किसान को कई बार चना और मटर की फसल में रोग लगने से काफी नुकसान उठाना पड़ता है. आज हम अन्नदाताओं को बता रहे हैं कि चना और मटर की फसल में कौन-कौन सी बीमारियों को लगने का खतरा अधिक रहता है और इन रोगों से कैसे बचाव किया जा सकता है?
 
सबसे अधिक इसका खतरा
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार चने और मटर की फसल में सबसे अधिक विल्ट और पाउडरी मिल्ड्यू रोग लगने का खतरा रहता है. गलन रोग से भी फसल प्रभावित होती है. चना और मटर की फसलों में कीटों के लगने की भी संभावना बनी रहती है. चना स्क्लेरोटिनिया का भी खतरा रहता है कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि समय रहते यदि इन रोगों की पहचान कर लिया जाए तो उचित इलाज कर फसल की गुणवत्ता और पैदावार को बेहतर बनाया जा सकता है.

विल्ट रोग बहुत तेजी से फसल को लेता है अपनी गिरफ्त में  
चना और मटर की फसल में विल्ट रोग लगने का खतरा रहता है. विल्ट बीमारी फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम एफएसपी सिसेरी नामक फफूंद के कारण होती है. विल्ट रोग बार-बार मौसम में होने वाले बदलाव के कारण भी उत्पन्न होता है. विल्ट की गिरफ्त में आने पर चने और मटर के पत्ते तेजी से सूखने लगते हैं. इसके बाद पत्ते भूरे रंग के होते है और फिर काले हो जाते हैं. इसमें पत्ते पेड़ से नहीं गिरते है.

यह प्रक्रिया काफी तेज से होती है. इसके कारण रोग होने के एक सप्ताह के भीतर पौधा मर जाता है. विल्ट रोग के लक्षण अंकुर अवस्था और पौधे के विकास के बाद के चरण दोनों में देखे जा सकते हैं. इसमें बीमारी के एक पौधे से दूसरे में फैलने का डर रहता है. इस बीमारी चने के पौधे के जड़ के पास चीरा लगाने पर काले रंग की संरचना दिखाई देती है. पाउडरी मिल्ड्यू में चने और मटर के पौधों की पत्तियां, तना और फूलों पर सफेद धूल जैसी परत जम जाती है. पाउडरी मिल्ड्यू बीमारी से फसल का बचाव कांसर, हेक्सा, एजोजोल जैसी दवाओं का छिड़काव कर किया जा सकता है.

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विल्ट रोग से बचाव के उपाय 
1. विल्ट रोग से बचने के लिए फसल चक्र अपनाएं. उन स्थानों पर तीन से चार वर्षों तक चने की फसल न लगाएं जहां चना विल्ट का प्रकोप हुआ हो.
2. बुवाई से पहले बीज का उपचार करें. प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी 1% डबल्यूपी से उपचारित करें.
3. खेत की जुताई करते समय प्रति एकड़ खेत में 1.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाएं.
4. इस रोग रोग के लक्षण जैसे ही दिखे फसल की जड़ों में कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए. 
5. रोग से संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें.
6. सी-214, अवरोधी, उदय, बीजी-244, पूसा-362, जेजी-315, फुले जी-5 प्रकार के रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें.

क्या है चना स्क्लेरोटिनिया ब्लाइट 
चने की फसल में स्क्लेरोटिनिया ब्लाइट रोग के लगने का खतरा रहता है. यह बीमारी स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटोरियम नामक फंगस के चलते होती है. इस रोग में चने के जड़ों को छोड़कर पौधे के सभी भाग प्रभावित होते हैं. इस बीमारी के जकड़ने पर चने के पौधे पहले पीले, फिर भूरे और अंत में सूख जाते हैं.

इस बीमारी की रोकथाम के लिए केवल स्वस्थ, स्क्लेरोशिया मुक्त बीजों का ही प्रयोग करें. रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे जी-543, गौरव, पूसा-261 आदि का चयन करें. बीमारी से ग्रसित पौधों को खेत से उखाड़कर बाहर फेंक दें. फसल बने से पहले 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ब्रासीकोल और कैप्टान जैसे फफूंदनाशकों के मिश्रण से मिट्टी का उपचार करें.

कीट भी करते हैं फसलों पर हमला 
चने और मटर की खेती करने वाले किसानों को फसल में कीटों के लगने का डर भी सताते रहता है. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि फसल में कीटों के लगने के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करें.

फसल को कीटों से बचाव के लिए 10 फेरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए. एनपी भी 250 एलई या नोवाल्यूरॉन 10 ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. मटर की फसल को चूर्णी फफूंद नुकसान पहुंचाता है. इससे बचाव के लिए सल्फर 80 डब्ल्यूएपी 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. 

गलन रोग का डर
चने और मटर की फसल में गलन रोग यानी Damping Off का भी खतरा रहता है. यह मिट्टी में लंबे समय तक नमी बनी रहने के कारण उत्पन्न होता है. इस रोग में कई प्रकार के फफूंद पनपने लगते हैं जो पौधों की जड़ों और तनों को गला देते हैं. ठंड के मौसम में वातावरण में बढ़ती नमी इस रोग को तेजी से फैलने में सहायक होती है.

इस रोग के शुरुआत में चने और मटर के पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं. इसके बाद मिट्टी से सटे हुए तने गलने लगते हैं और कुछ समय बाद पौधे पूरी तरह से गल कर सूख जाते हैं. गलन रोग से बचाव के लिए स्वस्थ और रोग मुक्त बीज का चयन करें. मटर की बुवाई से पहले बीज को फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें. खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें ताकि नमी अधिक समय तक न रहे. 

मटर और चने की खेती कब करें 
चना और मटर में ढेर सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसके कारण इनकी मांग सालों भर बनी रहती है. मटर की बुवाई का सही समय क्षेत्र और जलवायु पर निर्भर करता है. उत्तरी भारत में इसे अक्टूबर से दिसंबर के बीच और दक्षिणी भारत में नवंबर से फरवरी के बीच बोया जाता है. चने की बुवाई का सही समय नवंबर के अंत से दिसंबर की शुरुआत तक होता है.