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Delhi-NCR में कई जगहों पर AQI 450 के पार, हर बार ठंड के मौसम में क्यों उत्तर भारत में बढ़ जाता है वायु प्रदूषण? जानिए इसकी वजह

Air Pollution: सर्दियों में प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण हवा के घनत्व का बढ़ना और तापमान का कम होना है. हवा के घनत्व के बढ़ने और तापमान के कम होने के कारण प्रदूषण नीचे ही रह जाता है. ऐसे में वह स्मॉग की तरह दिखता है. सर्दियों में हवा भी काफी धीमी चलती है. जिसके चलते प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता रहता है. 

Delhi Pollution (File Photo) Delhi Pollution (File Photo)
हाइलाइट्स
  • सरकार के लाख उपाय के बाद भी वायु प्रदूषण का नहीं हो पा रहा निदान

  • दिल्ली-एनसीआर के लोग परेशान

Why Pollution Level Increases In Winter: पूरे उत्तर भारत की हवाएं इस वक्त खराब हैं. दिल्ली-एनसीआर के कई स्थानों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 450 के पार चला गया है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार 5 नवंबर को सुबह 4 बजकर 18 मिनट पर राजधानी  दिल्ली में एक्यूआई 453 दर्ज किया गया, जो कि गंभीर श्रेणी में आता है. क्या कभी आपने इस सवाल पर गौर किया है कि आखिर ठंड शुरू होते ही प्रदूषण का स्तर क्यों बढ़ जाता है? यदि आप इस बारे में नहीं जानते हैं तो आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं.

दिल्ली में हल्की धुंध छाए रहने की संभावना
बता दें कि एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) शून्य से 50 के बीच 'अच्छा', 51 से 100 के बीच 'संतोषजनक', 101 से 200 के बीच 'मध्यम', 201 से 300 के बीच 'खराब', 301 से 400 के बीच 'बहुत खराब' और 401 से 500 के बीच 'गंभीर' माना जाता है. मौसम विभाग के अनुसार रविवार को दिल्ली में हल्की धुंध छाए रहने की संभावना है. राष्ट्रीय राजधानी में अधिकतम और न्यूनतम तापमान क्रमश: 30 और 17 डिग्री सेल्सियस रहने की संभावना है.

रविवार को द्वारका में AQI 486 और IGI एयरपोर्ट पर 480 दर्ज किया गया है. आया नगर में 464 और जहांगीरपुरी में वायु की गुणवत्ता 464 रिकॉर्ड की गई है. सीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रेटर नोएडा शनिवार को सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर रहा. इसका वायु गुणवत्ता सूचकांक 490 दर्ज किया गया.

क्यों सर्दियों में बढ़ जाता है प्रदूषण 
हमारे देश में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है और यह पूरे साल रहती है लेकिन सर्दियों में यह खतरनाक स्तर पर पहुंच जाती है. इसकी एक वजह तो है मानव, पर्यावरण और उद्योग जनित प्रदूषण है और दूसरी वजह है भूगोल! भौगोलिक कारण की बात करें तो उत्तर भारत में प्रदूषण की वजह टेंपरेचर इनवर्जन इफेक्ट है. आपने भी अपने स्कूल की किताबों में इस बारे में पढ़ा होगा. तो आइए जानते है कि यह कैसे सर्दियों के दिनों में वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है. 

हवा ऊपर नहीं उठ पाती
आमतौर पर ऐसा होता है कि हम जितना जमीनी सतह से ऊपर की तरफ चलते हैं उतना ही तापमान कम होता जाता है और ठंड बढ़ती जाती है लेकिन सर्दियों में जमीनी सतह के ठंडी होने के चलते टेंपरेचर इनवर्जन की प्रक्रिया होती है. जिसमें जमीनी सतह का तापमान ठंडा होता है और ऊपर की तरफ जाने पर तापमान बढ़ता जाता है. 

ऐसे में जब सर्दियां की रातों में जमीन सूरज से मिली गर्मी को रिलीज करती है और ठंडी होती है तो रिलीज की गई गर्मी ऊपर उठकर एक गर्म परत बना लेती हैं. जिसके चलते हवा ऊपर नहीं उठ पाती. ठंडी हवा में ज्यादा मूवमेंट नहीं होती और वह लगभग स्थिर अवस्था में रहती है, जिससे हवा वायुमंडल में नीचे ही रहेगी. साथ ही हवा के कणों के साथ पर्यावरण का प्रदूषण भी मिल जाता है, जिससे धुंध बन जाती है. तभी आपने अक्सर देखा होगा कि सर्दियों की सुबह काफी धुंध होती है.

प्रदूषण के कण हवा के कणों के साथ जाते हैं मिल 
जब सर्दियों में टेंपरेचर इनवर्जन इफेक्ट के चलते हवा वायुमंडल में नीचे बहती है तो प्रदूषण के कण हवा के कणों के साथ मिल जाते हैं. यही प्रदूषण है जो एयर क्वालिटी को खराब करता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और दृश्यता में कमी जैसी परेशानी होती है. प्रदूषण के चलते हवा में सल्फर डाइ ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे तत्व पाए जाते हैं. यह प्रदूषण इंसानों में अस्थमा, कैंसर, स्ट्रोक्स और अल्जाइमर का कारण बन सकता है. 

जेट स्ट्रीम के चलते बढ़ जाता है उत्तर भारत में वायु प्रदूषण
जेट स्ट्रीम वायुमंडल की निचली परत क्षोभमंडल के ऊपरी इलाके में पश्चिम से पूर्व की ओर चलने वायु तीव्र हवाएं हैं. ये हवाएं अफगानिस्तान के पास हिंदूकुश पर्वत शृंखला से टकराकर दो हिंस्सों में विभाजित हो जाती है. एक हिस्सा उत्तर की ओर तिब्बत के पठार के उत्तर में गति करता है. जबकि दूसरा हिस्सा हिमालय के दक्षिण में उत्तर भारत के मैदान के ऊपर से गुजरता है.

ये हवाएं जाड़े में और अधिक प्रभावी हो जाती हैं और हिंदुकुश से गंगा मैदान की तरह ऊपर से नीचे की तरफ गति करती हैं. जिससे हवाएं नीचे से ऊपर की तरफ नहीं जा पाती हैं और उत्तर भारत की प्रदूषित हवाएं धरातल के करीब इकट्ठी हो जाती हैं. साथ ही अधिक घनत्व वाली प्रदूषित हवाओं के कारण प्रभावित इलाके में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है.

हवा नहीं निकल पाती बाहर
इसके अलावा  उत्तर भारत का गंगा मैदान जैसे पंजाब, दिल्ली, यूपी, बिहार और पश्चिमी बंगाल हिमालय और प्रायद्वीपीय पर्वतों से घिरा हुआ एक घाटी इलाका है. जिसके कारण कम गति वाली हवा बाहर नहीं निकल पाती हैं. और पूरा का पूरा इलाका जाडे़ के मौसम में गैस चेम्बर में बदल जाता है. 

मिक्सिंग हाइट व वेंटिलेशन इंडेक्स में गिरावट
सर्दी में मिक्सिंग हाइट (जमीन की सतह से वह ऊंचाई, जहां तक आबोहवा का विस्तार होता है) कम होती है. गर्मियों के औसत चार किमी के विपरीत सर्दियों में यह एक किमी से भी कम रहता है. वहीं, वेंटिलेशन इंडेक्स (मिक्सिंग हाइट और हवा की चाल का अनुपात) भी संकरा हो जाता है. इससे प्रदूषक ऊंचाई के साथ क्षैतिज दिशा में भी दूर-दूर तक नहीं फैल पाते. पूरा इलाका ऐसे हो जाता है, जैसे कंबल से उसे ढंक दिया गया हो.

हवाओं का रुख बदला, रफ्तार पड़ी धीमी
गर्मी के उलट सर्दी में दिल्ली पहुंचने वाली हवाएं उत्तर, उत्तर-पश्चिम, उत्तर-उत्तर-पश्चिम और पश्चिम से दिल्ली-एनसीआर में पहुंचती हैं. वातावरण की ऊपरी सतह पर चलने वाली यही हवाएं प्रदूषकों को दूसरे शहरों से दिल्ली लेकर पहुंचती हैं. जबकि धरती की सतह पर चलने वाली हवाओं की चाल धीमी होती है. 

मानव जनित प्रदूषण बढ़ाता है समस्या
एयर पॉल्यूशन के मानव जनित कारणों में वाहनों से निकलने वाला धुंआ, भारी उद्योगों और पावर जेनरेशन से होने वाला प्रदूषण, छोटे उद्योगों से होने वाला प्रदूषण, सड़कों पर उड़ने वाली धूल और कंस्ट्रक्शन एक्टिविटीज, पराली को जलाने, जंगलों में लगने वाली आग और खेती के दौरान उड़ने वाली धूल है. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, वाहनों से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण के लिए 30 फीसदी, ईंधन जलने से 20 फीसदी, मिट्टी और धूल के कारण 20 फीसदी, इंडस्ट्रीज के कारण 15 फीसदी, खुले में कुड़ा जलाने से 15 फीसदी, डीजल वाहनों और मशीनों से 10 फीसदी, पावर प्लांट्स से 5 फीसदी वायु प्रदूषण करते हैं.