ज्ञानवापी, ताजमहल और कुतुब मीनार के बाद अब अजमेर शरीफ दरगाह के मंदिर होने का दावा किया गया है. महाराणा प्रताप सेना के संस्थापक राजवर्धन सिंह परमार ने राजस्थान के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसकी जांच कराने की मांग की है. उनका दावा है कि हजरत ख़्वाजा गरीब नवाज दरगाह एक शिव मंदिर था.
अजमेर शरीफ तीर्थ है, जहां ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है. लोग यहां आकर मुरादें मांगते हैं और मन्नत पूरी होने पर ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की कब्र पर चादर चढ़ाते हैं. अजमेर शरीफ एक फकीर की दरगाह कैसे बन गया आइए जानते हैं...
बेटे की मुराद मांगने पैदल चलकर आए थे अकबर
जो लोग भी ख्वाजा मुईनुद्दीन के दर पर आते हैं गरीब नवाज उनको प्यार, मोहब्बत, शांति और इंसानियत का पैगाम देते हैं. मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का जन्म 1141-42 ई. में ईरान के सिज़िस्तान में हुआ था. भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी. वह सूफीवाद फैलाने के लिए भारत आए थे. यहां पर वह कई चमत्कार करने लगे. आस-पास के लोगों में उनके प्रति जिज्ञासा जागी. लोग अपनी समस्या का हल ढूढ़ने उन तक पहुंचने थे. मोईनुद्दीन चिश्ती को निजामुद्दीन औलिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा सूफी संत माना गया सूफीवाद भाईचारे की शिक्षा देता है. उस समय यहां पांच वक्त की अजान होती और नमाज अता की जाती थी. मुगल बादशाह उनकी शिक्षाओं व उनके प्रसार से प्रभावित थे. कहा जाता है औलाद की ख्वाहिश में मुगल बादशाह अकबर 437 किमी. पैदल चलकर ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर आए थे. इसके बाद ही उनके घर में जहांगीर का जन्म हुआ था.
कैसे बना ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा
ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था और उसी जगह पर नमाज अता करते-करते अल्लाह को प्यारे हुए. उनके चाहने वालों ने उसी स्थान पर उन्हें दफनाकर उनकी कब्र बना दी. बाद में यहां भव्य मकबरे का निर्माण कराया गया, जिसे 'ख़्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा' कहा जाता है. इस दरगाह का निर्माण हुमायूं ने कराया था. बाद में, हैदराबाद के निजाम ने इसमें एक गेट बनवाया.
अजमेर शरीफ की दरगाह में आने वाला पहला व्यक्ति मोहम्मद बिन तुगलक था. दरगाह के अंदर जाहलरा है. यहां के पानी को बहुत पवित्र माना जाता है.मकबरे में जन्नती दरवाजा भी है. यह पूरे साल में केवल चार बार खुलता है. अजमेर शरीफ के अंदर अकबर मस्जिद भी है.