इलाहाबाद गहाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि कोई भी मुस्लिम व्यक्ति पत्नी के रहते 'लिव-इन रिलेशन' में रहने का दावा नहीं कर सकता है. हाईकोर्ट ने कहा कि इस्लाम इस तरह के संबंध की इजाजत नहीं देता है. न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति एके श्रीवास्तव प्रथम की खंडपीठ ने यह टिप्पणी की.
मुस्लिम व्यक्ति ने दायर की थी याचिका-
याचिकाकर्ता एक मुस्लिम व्यक्ति है और पहले से मुस्लिम महिला से शादीशुदा है. उसकी एक 5 साल की बेटी भी है. याचिकाकर्ता हिंदू महिला के साथ लिव-इन रिलेशन में है. जबकि उसकी पत्नी ने इसपर कोई ऐतराज नहीं जताया है. याचिका मूल रूप से लिव-इन रिलेशनशिप को लीगल बनाने के लिए दाखिल गई थी.
कोर्ट ने क्या कहा-
जानकारी के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अंतर धार्मिक जोड़े के मामले में एक टिप्पणी की है.दो जजों की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक हिंदू-मुस्लिम जोड़े के लिव-इन रिलेशन में दखल ना देने की गुजारिश वाली याचिका पर दिए गए आदेश में की है. कोर्ट ने साफ कहा है कि मुस्लिम रीति रिवाज को मानते हैं, जो उन्हें लिव-इन रिलेशन में रहने का हक नहीं देता है. कोर्ट के मुताबिक किसी नागरिक की वैवाहिक स्थिति की व्याख्या पर्सनल लॉ और संवैधानिक अधिकारों दोनों कानून के तहत की जाती है, तब धार्मिक रीति रिवाज को भी समान महत्व दिया जाना चाहिए. सामाजिक और धार्मिक रीति रिवाज एवं प्रथाएं समेत संविधान में मान्यता प्राप्त कानून के समान रहे हैं. इस्लाम धर्म को मानने वाला कोई मुसलमान व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का दावा नहीं कर सकता. खासकर तब, जब पहले से उसकी कोई जीवित जीवन संगिनी हो.
क्या है पूरा मामला-
उत्तर प्रदेश के बहराइच की रहने वाली स्नेहा देवी और मोहम्मद शदाब खान ने रिट याचिका दायर की. याचिकाकर्ता का दावा है कि वे दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. लेकिन महिला की फैमिली की तरफ से मोहम्मद शदाब खान के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है कि उनकी बेटी को अगवा कर शादी की है. याचिकाकर्ता ने पुलिस सुरक्षा की मांग और कहा कि दोनों व्यस्क हैं और लिव-इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं.
कोर्ट ने पाया कि मोहम्मद शदाब की शादी साल 2020 में खरीदा खातून से हुई थी और दोनों की एक बेटी भी है. इसके बाद कोर्ट ने पुलिस सुरक्षा की मांग ठुकरा दी.
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