मोटर दुर्घटना और कंपनी इंश्योरेंस को लेकर कई चीजें लोगों को नहीं पता होती हैं. इंश्योरेंस क्लेम (Insurance Claim) करना ही कई बार परेशानी का सबब हो जाता है. अब इसी को लेकर एक नया मामला सामने आया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि ओनरशिप ट्रांसफर (Ownership Transfer) नहीं होने पर भी मोटर दुर्घटना में कंपनी को इंश्योरेंस क्लेम को मानना होगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि मोटर दुर्घटना मामलों में बीमा कंपनी क्लेम के लिए जिम्मेदार रहती है, भले ही व्हीकल की ओनरशिप ट्रांसफर न हुई हो. दरअसल, ये निर्णय न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में आया है. इसमें कंपनी ने एक स्थायी लोक अदालत (PLA) के ट्रक दुर्घटना मामले में किए गए निर्णय को चुनौती दी थी.
जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने इस फैसले में मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 के प्रावधानों पर जोर दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि बीमा कंपनी तब भी जिम्मेदार है जब ओनरशिप ट्रांसफर का प्रोसेस चल रहा हो.
क्या है पूरा मामला?
ये विवाद तब शुरू हुआ जब ट्रक के रजिस्टर्ड मालिक गोविंद गुप्ता ने एक दुर्घटना के बाद न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी में क्लेम किया. बीमा कंपनी ने दावा खारिज करते हुए कहा कि वाहन का मालिकाना हक संजीव कुमार नाम के एक व्यक्ति को ट्रांसफर करने का समझौता पहले ही हो चुका है. वाहन को संजीव कुमार को बेच दिया गया था. इसके साथ शर्त रखी गई कि खरीदार संजीव ट्रक पर लिए गए लोन की बैंक किस्तों की पेमेंट करेंगे. इसमें बीमा कंपनी का तर्क था कि दुर्घटना उस समय हुई है जब ट्रक संजीव कुमार के ड्राइवर के कब्जे में था और अब गोविंद गुप्ता उसके ओनर नहीं हैं.
हालांकि, स्थायी लोक अदालत ने गोविंद गुप्ता के पक्ष में निर्णय दिया और उनके बीमा क्लेम को मंजूरी दी. इस फैसले से असंतुष्ट होकर बीमा कंपनी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया और तर्क दिया कि वाहन की ओनरशिप ट्रांसफर हो चुकी थी, इसलिए गोविंद गुप्ता बीमा मुआवजे के हकदार नहीं हैं.
मोटर वाहन एक्ट में लिखा है इसके बारे में
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 157 हाई कोर्ट के फैसले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इस धारा के अनुसार, जब किसी वाहन की ओनरशिप ट्रांसफर होती है, तो इंश्योरेंस सर्टिफिकेट और इंश्योरेंस पॉलिसी ऑटोमैटिक रूप से नए मालिक को ट्रांसफर हो जाती है. जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने इस प्रावधान का जिक्र करते हुए कहा कि ये एक्ट इसलिए डिजाइन किया गया है ताकि ओनरशिप ट्रांसफर के दौरान बीमा कवरेज बाधित न हो.
अदालत ने बताया कि भले ही ट्रक की ओनरशिप ट्रांसफर करने का समझौता हुआ था, लेकिन यह एक भविष्य की डील थी, जो लोन की पेमेंट पर निर्भर करती थी. ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी ने अभी तक ऑफिशियल ट्रांसफर को रिकॉर्ड नहीं किया है. जस्टिस विद्यार्थी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून का उद्देश्य लोगों को सही इंश्योरेंस देना है, नए मालिक पर ये पॉलिसी ऑटोमैटिक रूप से चली जाएगी। भले ही ओनरशिप ट्रांसफर करने की कागजी कार्रवाई पूरी न हुई हो.
अदालत ने कहा, "कानून मानता है कि भले ही बीमा पॉलिसी आधिकारिक तौर पर ट्रांसफर नहीं की गई हो, फिर भी बीमा कंपनी वाहन के नए मालिक को कवर करने के लिए जिम्मेदार है. कानून का इरादा नए मालिकों को आसानी से शामिल करना है, न कि तकनीकीताओं के आधार पर उन्हें बाहर करना."
कैसे होती है ओनरशिप ट्रांसफर?
वाहन का ओनरशिप ट्रांसफर तब माना जाता है जब रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस (RTO) में इसका रिकॉर्ड अपडेट किया जाए. आमतौर पर, खरीदार और विक्रेता को फॉर्म 29 और फॉर्म 30, साथ ही RC (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट), PUC (पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल) सर्टिफिकेट, बीमा कागजात और पते का प्रमाण जमा करना होता है. एक बार कागजात जमा करने के बाद, RTO आमतौर पर 30 दिनों के भीतर ट्रांसफर को प्रोसेस कर नए मालिक के नाम से नई आरसी जारी करता है.
बीमा पॉलिसी को भी नए मालिक के नाम में अपडेट करने की जरूरत होती है. खरीदार को खरीद के 14 दिनों के भीतर बीमा कंपनी से पॉलिसी ट्रांसफर का अनुरोध करना चाहिए. इन 14-दिनों के दौरान, बीमा कंपनी किसी भी दावे के लिए जिम्मेदार होती है.
ओनरशिप ट्रांसफर के लिए अप्लाई कैसे करें?
जो लोग वाहन की ओनरशिप ट्रांसफर करना चाहते हैं, उनके लिए ये प्रोसेस काफी आसान है-
1. जरूरी कागजात: विक्रेता को फॉर्म 29 और फॉर्म 30 के साथ रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट (RC), वैलिड पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (PUC) सर्टिफिकेट, इंश्योरेंस पेपर्स और आइडेंटिटी प्रूफ देना होता है.
2. आरटीओ जाएं: दस्तावेजों को उस RTO में जमा करें जहां आपका व्हीकल रजिस्ट्रेशन है. आमतौर पर आरटीओ को नई आरसी जारी करने में लगभग 30 दिन लगते हैं.
3. बीमा ट्रांसफर: नया मालिक वाहन बिक्री के 14 दिनों के भीतर बीमा कंपनी को सूचित कर पॉलिसी ट्रांसफर करवा सकता है. अगर यह निर्धारित समय के भीतर नहीं किया जाता है, तो नए मालिक को एक नई बीमा पॉलिसी खरीदनी पड़ सकती है.
4. फीस भरें: नए मालिक को आरटीओ में ट्रांसफर फीस और कोई भी पुराना बचा रोड टैक्स भी भरना होता है.
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