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एनालिसिस: भाजपा के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है तीनों कृषि कानून वापस लेना, क्या होगा यूपी चुनाव पर असर

प्रधानमंत्री मोदी के कृषि कानून वापस लेने के बाद यूपी में सियासी समीकरण बदल सकता है. सियासी जानकारी इसे भाजपा का मास्टरस्ट्रोक मान रहे हैं. इस फैसले के बाद जहां भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश है वहीं, विपक्ष इस फैसले के बाद बैकफुट पर चला गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
हाइलाइट्स
  • पीएम मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान किया था

  • सियासी जानकारों का कहना है कि चुनाव को देखते हुए यह निर्णय लिया गया

  • भाजपा के अचानक से लिए गए फैसले से बैकफुट पर विपक्ष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने माफी मांगने के साथ ही तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान कर दिया. सियासी जानकारों के मुताबिक बीजेपी के लिए चुनावी दृष्टि से पंजाब से कहीं ज्यादा सिरदर्द उत्तर प्रदेश की है और यूपी चुनाव के एलान के पहले प्रधानमंत्री का यह फैसला चुनाव के दृष्टिगत एक बड़े चुनावी फैसले की तरह देखा जा रहा है. दरअसल, भाजपा को लगता है अब वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों और खासकर जाटों की नाराजगी को कम कर सकेगी जिससे उनका चुनावी भाग्य पलटेगा.

पीएम के फैसले से किसानों में खुशी
प्रधानमंत्री के कानून वापसी के फैसले के बाद से किसानों में खुशी की लहर है. पटाखे फूट रहे हैं. किसानों के बीच मिठाइयां बंट रही है. विपक्ष हमलावर जरूर है लेकिन उसके हाथ से अब यह मुद्दा निकल सकता है. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री के एलान के बाद एक नया नारा दिया-"साफ नहीं है इनका दिल, चुनाव के बाद फिर लाएंगे यह बिल".

दरअसल, 2022 के चुनाव के पहले उत्तर प्रदेश के लिए इससे बड़ा कोई फैसला नहीं हो सकता था क्योंकि पश्चिम में किसानों और जाटों की नाराजगी के अलावा यह आंदोलन तराई में फैल चुका था और तराई में किसानों पर मंत्री पुत्र की चढ़ाई गाड़ी से किसानों की हुई मौतों के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में किसानों के बीच नाराजगी उपजी थी. यह चुनाव आते-आते और धार पकड़ सकती थी.

बीजेपी अब खुलकर चुनावी पिच पर खेलेगी
प्रधानमंत्री की माफी के साथ कानून वापसी के फैसले ने बीजेपी के भीतर एक नया जोश भरा है क्योंकि अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी फ्रंट फुट पर खेलेगी. जहां उसके नेता कार्यकर्ता जाट बहुल गांव में घुसने से डर रहे थे अब पार्टी नए जोश के साथ पश्चिमी यूपी में जाटों को साधने की कोशिश में जुट जाएगी. तीनों कानून को वापस लेने से पहले अमित शाह को पश्चिम का प्रभारी बनाया गया है. ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चुनाव का समीकरण बदलेगा.

क्या कहते हैं बीजेपी और समाजवादी पार्टी के जाट नेता
बीजेपी के जाट चेहरे और योगी सरकार में मंत्री भूपेंद्र चौधरी कहते हैं-"जाटों का एक बड़ा तबका पहले से ही बीजेपी के साथ था. कृषि कानूनों के बावजूद वह लोग जाट बिरादरी को समझाने में सफल थे. लेकिन, प्रधानमंत्री के इस फैसले के बाद अब बची खुची नाराजगी भी खत्म होगी और 2019 की तरह वापस जाट बीजेपी से जुड़ेंगे", जबकि समाजवादी पार्टी के जाट चेहरे संजय लाठर का मानना है कि प्रधानमंत्री ने तीनों कानूनों को वापस लेकर सेल्फ गोल कर लिया है. जाट और किसान अपमान और तकलीफों को नहीं भूलेंगे बल्कि इसका बदला लेंगे.

अब चौक चौराहों पर इस बात की चर्चा शुरू हो चुकी है कि आखिर इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का कितना सियासी असर उत्तर प्रदेश के चुनाव पर होगा. बीजेपी को लगता है कि प्रधानमंत्री ने जिस तरीके से संवेदनशीलता जताते हुए माफी मांगी है और जिस तरीके से यह किसानों और जाटों की जीत के तौर पर सामने आया है आने वाले वक्त में बीजेपी गुस्से को कम करने में सफल होगी.