अक्सर हम किताबों और फिल्मों में खजाने मिलने का किस्सा पढ़ते-देखते रहें हैं. अगर ऐसा सच में किसी के साथ हो जाए तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहेगा. झारखंड के लोहरदगा में करीब-करीब ऐसा ही हुआ है. लोहरदगा में घर बनाने के लिए नींव खुदाई के दौरान एक व्यक्ति को तीर, धनुष, गदा जैसे प्राचीन हथियारों और बर्तनों का जखीरा मिला है. इन्हें ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का माना जा रहा है. इसमें तीरों की संख्या अधिक है. ऐसा लग रहा है कि प्राचीन काल में यहां इन्हें छिपाया गया था.
अवशेषों में करीब दो दर्जन तीर
लोहरदगा के ब्राह्मणडीहा करंज टोली गांव में सुमंत टाना भगत नामक ग्रामीण घर बनाने के लिए जेसीबी से नींव की खुदाई करा रहा था. इसी दौरान जमीन के अलग-अलग हिस्से से तीन जगहों से ये अवशेष मिले. बताया जा रहा है कि शुरू में कुछ सामान ग्रामीण उठाकर ले गए. जब अधिक संख्या में प्राचीन अवशेष मिलने लगे तो जमीन के मालिक ने उन्हें इकट्ठा करना शुरू किया. इकठ्ठा किए गए अवशेषों में करीब दो दर्जन तीर हैं. इनमें कुल्हाड़ी और एक हंसुए जैसा हथियार भी है. वहीं इसके साथ अज्ञात धातु के कलात्मक बर्तन के टुकड़े भी पाए गए हैं. धातु के नन्हे बूंदे हैं जिन्हें शायद हार की तरह पहना जाता रहा हो. इनमें जंग लगी है लेकिन कई चीजें अब भी अच्छी स्थिति में हैं.
यहां हुए युद्धों का इतिहास में मिलता है जिक्र
लोहरदगा कई आंदोलन और सशस्त्र क्रांति की भूमि रहा है. 1831 के लरका आंदोलन, 1857 की क्रांति सहित कई सशस्त्र आंदोलन यहां हुए हैं. इस दौरान हुए युद्धों का इतिहास में जिक्र मिलता है. हथियारों के इन प्राचीन अवशेषों को उन्हीं आंदोलनों से जोड़कर देखा जा रहा है. स्थानीय जानकार भी यही मान रहे हैं. इनका कहना है कि करीब 10 साल पहले इस स्थान पर सड़क बन रही थी तब भी जमीन की खुदाई में इस तरह के हथियार और अन्य अवशेष मिले थे. मगर तब इसकी अधिक चर्चा नहीं हुई थी और ग्रामीणों ने ही उन्हें इधर-उधर कर दिया था. मगर आज मिले अवशेषों ने लोगों की उत्सुकता बढ़ा दी है. इन अवशेषों की पुरातात्विक जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि यह इतिहास के किस दौर और घटना से जुड़े हुए हैं.
बहुत पुराने हैं यहां मिले बर्तन
संभावना जताई जा रही है कि इस जमीन में और भी पुरातात्विक महत्व के अवशेष हो सकते हैं. रांची यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्राध्यापक डॉ कंजीव लोचन ने बताया कि इन चीजों का ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व है. इनके अध्ययन से लोहरदगा और झारखंड के प्राचीन इतिहास से संबंधित नई जानकारी मिल सकती है. किसी भी औजार में छिद्र नहीं दिख रहा, यह इनके बहुत पुराना होने का लक्षण है. एक ही पैटर्न के कई पात्र मिल रहे हैं. यह किसी की रसोई के अवशेष नहीं हो कर किसी लुहार की दुकान के अवशेष हो सकते हैं. यह अगारिया जनजाति का काम हो सकता है.
सत्यजीत कुमार और सतीश शाहदेव की रिपोर्ट