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Pillars of Ashoka: राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ का क्या है इतिहास, क्या है सम्राट अशोक से जुड़ी कहानी

History of Ashoka Stambh: नए संसद भवन की छत पर पीएम मोदी ने अशोक स्तंभ का अनावरण किया. इसको बनाने के लिए 2 हजार मजदूरों ने मिलकर काम किया. इसका वजन 9500 किलोग्राम है. अशोक स्तंभ का इतिहास सम्राट अशोक से जुड़ा है.

नए संसद भवन की छत पर पीएम मोदी ने अशोक स्तंभ का अनावरण किया (Photo/PTI) नए संसद भवन की छत पर पीएम मोदी ने अशोक स्तंभ का अनावरण किया (Photo/PTI)
हाइलाइट्स
  • सम्राट अशोक से जुड़ी है अशोक स्तंभ की कहानी

  • कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने त्याग दिया था राजपाट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की छत पर राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ की प्रतिमा का अनावरण किया. अशोक स्तंभ की मूर्ति कांस्य से बनाई गई है. इसकी ऊंचाई 6.5 मीटर और वजन 9500 किलोग्राम है. इस स्तंभ के निर्माण में दो हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. संसद भवन की छत पर बने अशोक स्तंभ की खूब चर्चा हो रही है. हर कोई इसके बारे में जानना चाहता है. हर कोई जानना चाहता है कि ये क्या है और ये इतना महत्वपूर्ण क्यों है. चलिए आपको बताते हैं कि अशोक स्तंभ का इतिहास क्या है और सम्राट अशोक से इसका क्या संबंध है.

क्या है अशोक स्तंभ का इतिहास-
26 जनवरी 1950 को देश में संविधान को अपनाया गया. इस दिन राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ को भी अपनाया गया. लेकिन अशोक स्तंभ की कहानी इससे काफी पुरानी है. इसको जानने के लिए 273 ईसा पूर्व की कहानी जाननी होगी. उस वक्त भारत में मौर्य वंश से शासन सम्राट अशोक का शासन था. कलिंग युद्ध में नरसंहार के बाद अशोक ने राजपाट त्याग दिया और बौद्ध धर्म अपना लिया. अशोक बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे. उन्होंने कई जगहों पर स्तंभ का निर्माण कराया. अशोक ने 3 साल में 84000 स्तूपों को निर्माण कराया था. जिसमें अशोक स्तंभ भी शामिल है.

4 शेरों की आकृति वाले स्तंभ का ही निर्माण क्यों-
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपने बच्चों को श्रीलंका भेजा. प्रचार के दौरान अशोक ने चार शेरों की आकृति वाले स्तंभ का निर्माण कराया. शेर का आकृति वाले स्तंभ के निर्माण के पीछे भी कहानी है. दरअसल भगवान बुद्ध के नामों में शाक्य सिंह, नर सिंह नाम भी है. इतना ही नहीं, सारनाथ में भगवान बुद्ध ने जो धर्म उपदेश दिया था, उसे सिंह गर्जना के नाम से जानते हैं. इसलिए बौद्ध धर्म के प्रचार में अशोक ने शेरों की आकृति को महत्व दिया.

कहां है अशोक स्तंभ-
राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ को यूपी के सारनाथ से लिया गया है. सारनाथ में अशोक स्तंभ बना हुआ है. जिसके अवशेष आज भी सारनाथ में मिल जाएंगे. सारनाथ में अशोक स्तंभ को चुनार के बलुआ पत्थर के रीब 45 फुट लंबे प्रस्तरखंड से निर्मित किया गया है. इसका दंड गोलाकार है और ऊपर की तरफ पतला होता जाता है. दंड के ऊपर कंठ और कंठ के ऊपर शीर्ष है. कंठ के नीचे उलटा कमल है. गोलाकार कंठ में हाथी, घोड़ा, सांड और शेर की आकृति बनी हुई है. सबसे ऊपर चार शेर की मूर्तियां हैं. इसके अलावा सांची, दिल्ली, इलाहाबाद और वैशाली में अशोक स्तंभ बना है.

कौन कर सकता है राष्ट्रीय चिन्ह का इस्तेमाल-
अशोक स्तंभ को हर कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता है. इसको लेकर नियम बनाए गए हैं. अशोक स्तंभ के इस्तेमाल का अधिकार सिर्फ संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को होता है. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, उपराज्यपाल, न्यायपालिका और उच्च अधिकारी ही अशोक स्तंभ का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन रिटायर होने के बाद कोई भी अधिकारी इसका इस्तेमाल नहीं कर सकता है. अगर गैर-कानूनी तरीके से कोई इसका इस्तेमाल करता है तो उसको 2 साल की सजा और 5 हजार रुपए का जुर्माना भरना पड़ता है.

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