देश के पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनावी बिगुल बज चुका है. चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही आदर्श आचार संहिता (MODEL CODE OF CONDUCT) तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है. आचार संहिता लगते ही गोरखपुर से लेकर गाजियाबाद तक बैनर पोस्टर हटाए जाने लगे. राजधानी लखनऊ में भी राजनीतिक दलों के पोस्टर बैनर हटाने शुरू हो गए. हम यहां बताएंगे कि आखिर आचार संहिता का इन पोस्टर हटाए जाने से क्या ताल्लुक है. इस खबर में हम यह बताने की कोशिश करेंगे...
यूपी समेत पांच राज्यों में आचार संहिता के लागू होते ही सरकारी मशीनरी सरकार के नियंत्रण से बाहर हो चुकी है. अब चुनावी राज्यों में ना कोई सरकारी कार्यक्रम होंगे, ना ही किसी तरह के सरकारी आयोजनों का ऐलान होगा. एक तरीके से कहें तो आचार संहिता लागू होते हीं सरकारें निहत्थी हो जाती हैं और चुनाव आयोग महाबली हो जाता है. राज्य सरकारों पर तमाम पाबंदियां लग जाती हैं. कोशिश ये होती है कि चुनावी राज्यों में सरकार चला रही पार्टियां और विपक्षी पार्टियां सभी एक बराबर हो जाएं. सबको एक जैसे मौके मिलें.
जानिए, आदर्श आचार संहिता लागू होने का क्या असर होता है...
मुख्यमंत्री, मंत्री ,विधायक कोई भी चुनाव प्रक्रिया में शामिल किसी भी अधिकारी से नहीं मिल सकता.
सरकारी विमान, गाड़ियों का इस्तेमाल किसी पार्टी या कैंडिडेट को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं किया जा सकता.
मंत्री-मुख्यमंत्री सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल केवल सरकारी काम के लिए ही कर सकते हैं.
आचार संहिता में सरकार किसी भी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी का ट्रांसफर या पोस्टिंग नहीं कर सकती.
ट्रांसफर या पोस्टिंग जरूरी भी हो तो आयोग की अनुमति लेनी होगी.
सरकारी पैसे का इस्तेमाल विज्ञापन या जन संपर्क के लिए नहीं हो सकता.
इतना ही नहीं चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद चुनावी प्रचार-रैली जुलूस निकालने पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं. रैली या जुलूस निकालने के लिए पुलिस से अनुमति लेनी पड़ती है. एक तरह से सरकार को भी कुछ भी करने से पहले आयोग की मंजूरी जरूरी होता है. अगर कोई भी प्रत्याशी आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो फिर उसके खिलाफ चुनाव आयोग की तरफ से कड़ी कार्रवाई की जाती है. नामांकन तक रद्द किया जा सकता है. आचार संहिता चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही लागू हो जाती है और मतगणना तक जारी रहती है.
इस बार 5 राज्यों में होने वाले चुनाव में ये पाबंदियां और भी सख्त होगी. एक तरफ कोरोना महामारी के बीच प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाएगा और नियमों का उल्लंघन ना हो इसके लिए चुनाव आयोग डिजिटल रास्ता अपना रही है. एक ऐप के जरिए चुनावी प्रक्रिया के पल पल की अपडेट ली जाएगी.
भारत जैसे बड़े देश में निष्पक्ष चुनाव हमेशा से चुनौती रहा है. लोकत्रांतिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए चुनाव आयोग का इलेक्शन के दौरान बाहुबली बनना जरूरी भी है. ताकि राजनीतिक दल मनमानी न कर पाएं और नतीजे ईमानदार हों.