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UP Elections 2022: अगर आदित्यनाथ चुनाव जीतते हैं तो बीजेपी में क्या हो सकता है अंदरूनी बदलाव, जानिए

UP Assembly Elections 2022: उत्तर प्रदेश में इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत से सीएम योगी आदित्यनाथ का कद काफी बढ़ जाएगा. बीजेपी में पार्टी के भीतर अंदरूनी खींचतान शुरू हो सकती है. बीजेपी 2024 में होने वाले आम चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ को नजरअंदाज नहीं कर पाएगी. ऐसे में वर्चस्व को लेकर टकराव बढ़ जाएगा.

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हाइलाइट्स
  • 2024 आम चुनाव में पीएम मोदी के लिए बन सकते हैं चुनौती

  • RSS को हिंदुत्व का प्रतीक मानने पर होगा पड़ेगा मजबूर

UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के लिए बीजेपी मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ को प्रमोट कर रही है. पीएम नरेंद्र मोदी योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के लिए 'उपयोगी' (UP+YOGI=UPYOGI) बता चुके हैं. जाह‍िर है, चुनाव में चेहरे को लेकर बीजेपी का सारा फोकस योगी पर है. ऐसे में चुनाव में सीएम योगी के पास बड़ी जिम्मेदारी है. प्रदेश की जनता जब वोट देने न‍िकलेगी तो पार्टी के साथ-साथ सीएम योगी के कामकाज के तौर-तरीके को भी देखेगी. पहली बार बीजेपी योगी आदित्यनाथ के साथ चुनावी मैदान में है. सीएम योगी के सामने जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती है. 2017 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में बिना सीएम फेस के ही बीजेपी को प्रचंड जीत म‍िली थी. उसके बाद योगी आदित्यनाथ सूबे के मुख्यमंत्री बने. आदित्यनाथ बीजेपी के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है.

सीएम आदित्यनाथ के सामने चुनाव से ऐन पहले मंत्री और विधायकों का पार्टी छोड़कर जाना सबसे बड़ी चुनौती है. हालांकि बीजेपी इसे दूसरे तरीके से देख रही है. बीजेपी का कहना है कि इन लोगों को टिकट नहीं मिलना था, इसलिए वे पार्टी छोड़कर गए हैं. लेकिन इसके बावजूद आदित्यनाथ के लिए ये शुभ संकेत नहीं है. हालांकि चुनावों में कई बार देखा गया है कि मंत्री और विधायकों के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. नेता की लोकप्रियता सबपर भारी पड़ती है. प‍िछले साल पश्चिम बंगाल में व‍िधानसभा चुनाव हुए, जहां टीएमसी के कई विधायक और बड़े नेताओं ने चुनाव से ऐन पहले पार्टी का दामन छोड़ दिया था. लेकिन ममता बनर्जी की लोकप्रियता सबपर भारी पड़ी.
लोकप्रियता का मतलब है, जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने से है. जनता की उम्मीदें हर तरह की होती है. आर्थिक, सामाजिक, जातिगत और धार्मिक, तमाम उम्मीदों पर जो नेता खरा उतरता है, वो लोकप्रिय होता है. देश की जीडीपी में पश्चिम बंगाल का योगदान लगातार घटता जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद ममता बनर्जी अपने सूबे में लोकप्रिय हैं. ममता बनर्जी महिलाओं में काफी लोकप्रिय हैं. इसी तरह बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार नहीं है, लेकिन लालू को उनको समर्थक पिछड़ों के मसीहा मानते हैं.

भगवाधारी मुख्यमंत्री होने के नाते आदित्यनाथ को हिंदुओं की सांस्कृतिक उम्मीदों को पूरा करना था. लेकिन हिंदुओं की एक अखंड पहचान नहीं है. हिंदू दूसरे धर्मों की तरह धार्मिक पहचान के तहत मतदान नहीं करते हैं. हिंदू कई सामाजिक और जातिगत ढांचों में बंटे हैं. ऐसे में सीएम योगी आदित्यनाथ को विभिन्न जातियों की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक उम्मीदों को लेकर सचेत रहना पड़ा. सीएम आदित्यनाथ मुसलमानों के लिए किए गए कामों का भी कई बार जिक्र कर चुके हैं. अगर आदित्यनाथ इनकी उम्मीदों पर खरा उतरे हैं तो 2022 चुनाव में वो जीत जाएंगे.

विरोधियों ने योगी आदित्यनाथ के भगवा रंग को लेकर आलोचना की. लेकिन ऐसा नहीं है कि धार्मिक पहचान के साथ विकास नहीं हो सकता है. ब्रिटेन का आधिकारिक धर्म ईसाई धर्म है. ऐसा ही दुनिया के कई देशों में भी है. लेकिन ये देश धार्मिक पहचान के बावजूद विकास के पथ पर अग्रसर हैं. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि धार्मिकता मायने नहीं रखती है. मुख्य विषय राजधर्म का पालन होता है, जिसमें जनता की उम्मीदों पर खरा उतरना होता है.

अगर योगी आदित्यनाथ इस बार यूपी में विधानसभा चुनाव हार जाते हैं तो हिंदुत्ववादी ताकतें कमजोर हो जाएंगी, क्योंकि ये नए युग के हिंदुत्व की हार होगी. ऐसे में ये साबित हो जाएगा कि चुनाव जीतने के लिए भगवा जरूरी नहीं है. अगर योगी की जीत होती है तो इसका मतलब होगा कि योगी हिंदुत्व की भावनाओं और समाज की धर्मनिरपेक्ष ताकतों के बीच संतुलन बनाने में कामयाब रहे हैं. इससे योगी आदित्यनाथ की छवि और मजबूत होगी और वो बीजेपी की अगली पीढ़ी के सबसे बड़े नेता बन जाएंगे.

इस वक्त बीजेपी की लोकप्रियता लगातार गिरती जा रही है. केंद्र की मोदी सरकार के कई कदमों की आलोचना हो रही है. मोदी सरकार का कृषि कानून वापस लेना भी पार्टी पर भारी पड़ रहा है. इसके अलावा कोरोना काल में अचानक लॉकडाउन करना, मजदूरों को घर लौटने का मौका नहीं देना, महंगाई रोकने में विफलता, ये तमाम मुद्दे बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. अगर इस कठिन हालात में अगर योगी आदित्यनाथ जीत जाते हैं तो उनका कद पार्टी में बढ़ जाएगा. वो 2024 आम चुनाव में पीएम मोदी के सामने खड़े हो सकते हैं. ऐसे में पार्टी में वर्चस्व को लेकर टकराव भी पैदा हो सकता है.

दरअसल योगी आदित्यनाथ की पहचान एक अड़ियल नेता की है. वो जो एक बार ठान लेते हैं, दोबारा पीछे नहीं हटते हैं. इसका नमूना बीजेपी पहले भी देख चुकी है. 2002 विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर सीट से बीजेपी उम्मीदवार और तीन बार यूपी कैबिनेट में मंत्री रहे शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतार दिया. योगी आदित्यनाथ के उम्मीदवार ने भारी मतों से जीत हासिल की. ऐसे में बीजेपी में कई नेताओं को योगी के आने के बाद साइडलाइन होने का भी खतरा है. ऐसे में विधानसभा चुनाव में उनकी जीत का मतलब पूरी पार्टी को उनके इशारे पर चलना पड़ेगा, जैसा कि अभी पीएम मोदी और अमित शाह के साथ है.

यूपी में योगी आदित्यनाथ की जीत के बाद बीजेपी में नाराजगी बढ़ेगी. पार्टी का अंदरूनी समीकरण बदलने लगेगा. आरएसएस पर हिंदुत्व के नए प्रतीक के तौर पर योगी को पेश करने का दबाव बढ़ेगा. ऐसा पहली बार नहीं है, जब आरएसएस पर चेहरा पेश करने का दबाव बढ़ेगा. ऐसा ही गुजरात में दंगों के बाद हुआ था. जब पीएम मोदी को हिंदुत्व का प्रतीक बनाकर पेश किया गया था. अगर योगी आदित्यनाथ जीतते हैं तो उनको एक फायदा होगा कि उनकी छवि ऐसे विकासवादी भगवाधारी की होगी, जो लोकतांत्रिक तरीके से उबरा है.