scorecardresearch

बरसाने की होली की तरह मशहूर है शेखावाटी की होली...जानिए क्यों है खास

फतेहपुर शेखावाटी रंगों का त्योहार होली आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इतना प्रसिद्ध हो गया है. विदेशी सैलानी हमारे इस रंगों के पर्व को देखने और इसके रंग में रंगने के लिए विदेशों से खास तौर पर भारत आते हैं. यूं तो देशभर में हर राज्य में होली का अपना एक महत्व है.

Fathehpur Shekhawati Holi Fathehpur Shekhawati Holi
हाइलाइट्स
  • 15 दिन पहले शरू हो जाता है त्योहार

  • प्रेमी- प्रेमिकाओं को पहुंचाते हैं प्रेम संदेश

फतेहपुर शेखावाटी रंगों का त्योहार होली आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इतना प्रसिद्ध हो गया है. विदेशी सैलानी हमारे इस रंगों के पर्व को देखने और इसके रंग में रंगने के लिए विदेशों से खास तौर पर भारत आते हैं. यूं तो देशभर में हर राज्य में होली का अपना एक महत्व है और हर राज्य में होली अपने अलग अंदाज में मनाई जाती है लेकिन यूपी में बरसाने की होली और राजस्थान में शेखावाटी की होली का अपना विशेष महत्व है.

15 दिन पहले शरू हो जाता है त्योहार
फाल्गुन मास में आने वाला त्योहार हिंदू मान्यता के अनुसार दो दिन तक मनाया जाता है जिसमें पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन होली खेली जाती है. लेकिन राजस्थान और यूपी में होली के त्योहार की तैयारियां महीनों पहले से ही शुरू हो जाती है. दोनों ही राज्यों में करीब 15 दिनों पहले से ही होली के त्योहार की गूंज सुनाई देने लगती है. राजस्थान के शेखावाटी का चंग नृत्य होली पर्व पर महाशिवरात्रि से होली तक होता है. चंग लोकनृत्य में गाई जाने वाली लोकगायकी को धमाल के नाम से जाना जाता है. शब्दों के बाण, भावनाओं की उमंग और मौज-मस्ती के रंग मिश्रित धमाल हर किसी को गाने व झूमने पर मजबूर कर देती है.

कैसे मनाई जाती है होली
फाल्गुन शुरू होते ही राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में चंग के साथ होली का हुड़दंग हर गली मोहल्ले में सुनाई देने लगता है. इन दिनों शेखावाटी के प्रसिद्ध चंग की थाप पर नृत्य और गीतों के सुरीले बोल हर तरफ सुनाई देने लगते हैं. इस नृत्य में पुरुष हाथों में चंग लेकर एक सर्किल बनाकर नाचते गाते नजर आते हैं. चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता या धोती-कुर्ता पहनकर कमर में कमरबंद और पांवों में घुंघरू बांधकर होली के दिनों में किये जाने वाले चंग नृत्य के साथ लम्बी लय के गीत धमाल या होली के गीत भी गाये जाते हैं. कहीं कहीं होली के हुड़दगी गली-मोहल्लों में होली के दिन टोलियां बनाकर चंग की थाप पर घरों के बाहर जाकर नाचते गाते हैं. होली के एक पखवाड़े पहले चंग नृत्य शुरू हो जाता है. जगह जगह भांग घोटी जाती है.

लोकगीत गाकर मोहल्ले में घूमते हैं लोग
होली के करीब 15 दिन पहले शेखावाटी अंचल के झुंझुनू, सीकर, चूरू और बीकानेर जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में फतेहपुर शेखावाटी, रामगढ़ शेखावाटी, मण्डावा, लक्ष्मणगढ़, बिसाऊ में हर गांव कस्बे में रात्रि में लोग एकत्रित होकर चंग की मधुर धुन पर देर रात्रि तक धमाल (लोक गीत) गाते हुए मोहल्लों में घूमते रहते हैं. होली के अवसर पर बजाया जाने वाला ढप भी इसी क्षेत्र में ही विशेष रूप से बनाया जाता है. ढप की आवाज तो ढोलक की तरह ही होती है, मगर बनावट ढोलक से बिल्कुल अलग होती है. डप ढोलक से काफी बड़ा व गोल घेरे नुमा होता है. होली के प्रारम्भ होते ही गांवों में लोग अपने-अपने चंग (ढप) संभालने लगते हैं. होली चूंकि बसंत ऋतु का प्रमुख पर्व है तथा बसंत पंचमी बसंत ऋतु प्रारम्भ होने की द्योतक है इसलिए इस अंचल में बसंत पंचमी के दिन से चंग (ढप) बजाकर होली के पर्व की विधिवत शुरुआत कर दी जाती है.

प्रेमी- प्रेमिकाओं को पहुंचाते हैं प्रेम संदेश
यूं तो पूरे भारत में होली का त्योहार लोकप्रिय पर्व के रूप में मनाया जाता है लेकिन शेखावाटी अंचल में होली एक सुप्रसिद्ध लोक पर्व माना जाता है. इस पर्व को क्षेत्र में पूरे देश से अलग ही ढंग से मनाया जाता है. उमंग व मस्ती भरे पर्व होली की शेखावाटी क्षेत्र में चंग की धुन पर गाई जाने वाली धमालों में यहां की लोक संस्कृति का ही वर्णन होता है. इन धमालों के माध्यम से जहां प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं को अपने प्रेम का संदेश पहुंचाते हैं वहीं श्रद्धालु लोक देवताओं को याद कर सुख समृद्धि की कामना करते हैं. धमाल के साथ ही रात्रि में नवयुवक विभिन्न प्रकार के स्वांग भी निकाल कर लोगों का भरपूर मनोरंजन करते हैं. गांवों में स्त्रियां रात्रि में चौक में एकत्रित होकर मंगल गीत, बधावे गाती हैं. होली के दिनों में आधी रात तक गांवों में उल्लास छाया रहता है.

क्या है गींदड़ नृत्य
शेखावाटी अंचल में होली पर कस्बों में विशेष रूप से गींदड़ नृत्य भी किया जाता है. गुजराती नृत्य गरबा से मिलता-जुलता गींदड़ नृत्य में काफी लोग विभिन्न प्रकार की चित्ताकर्षक वेशभूषा में नंगाड़े की आवाज पर एक गोल घेरे में हाथ में डंडे लिए घूमते हुए नाचते हैं तथा आपस में डंडे टकराते हैं. प्रारम्भ में धीरे-धीरे शुरू हुआ यह नृत्य धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ता जाता है. इसी रफ्तार में डंडों की आवाज भी टकरा कर काफी तेज गति से आती है तथा नृत्य व आवाज का एक अद्भुत दृश्य बन जाता है जिसे देखने वाला हर दर्शक रोमांचित हुए बिना नहीं रह पाता है. होली के अवसर पर चलने वाले इन कार्यक्रमों से यहां का हर एक व्यक्ति स्वयं में एक नई स्फूर्ति का संचार महसूस करता है.

21 वर्षों से हो रहा आयोजन
इन नृत्यों की लोक परम्परा को जीवित रखने के लिए क्षेत्र की कुछ संस्थाएं विगत कुछ समय से विशेष प्रयासरत हैं. झुंझुनू शहर में सद्भाव नामक संस्था पिछले वर्षों से होली के अवसर 21 वर्षों से चंग, गींदड़ कार्यक्रम का आयोजन करती आ रही है, जिसे देखने दूर-दराज गावों से काफी संख्या में लोग आते हैं. झुंझुनू, फतेहपुर शेखावाटी, रामगढ़ शेखावाटी, मण्डावा, लक्ष्मणगढ़, चूरू, बिसाऊ, लक्ष्मणगढ़ कस्बों का गींदड़ नृत्य पूरे देश में प्रसिद्ध है. इसी कारण चंग व गीन्दड़ नृत्य का आयोजन शेखावाटी से बाहर अन्य प्रान्तों में भी होने लगा है. धुलंडी के दिन इन नृत्यों का समापन होता है.

(फतेहपुर शेखावाटी से राजेश गुर्जर की रिपोर्ट)