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Alimony Rules in India: पत्नी अपने पति से कितना और किन मामलों में मांग सकती है गुजारा भत्ता? क्या पति भी मांग सकता है? 

Atul Subhash suicide case: गुजारा भत्ता, को भरण-पोषण भी कहा जाता है. ये एक जीवनसाथी का दूसरे जीवनसाथी या उनके बच्चों को तलाक या अलग होने के बाद वित्तीय सहायता देना है. इसकी मदद से डिपेंडेंट पार्टनर या आश्रित जीवनसाथी और उनके बच्चे की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. इसे लेकर भारत में अलग-अलग कानून भी हैं. 

Alimony Rules Alimony Rules
हाइलाइट्स
  • भारतीय कानून में गुजारा भत्ता का नियम है

  • पति भी मांग सकता है गुजारा भत्ता

भारत में पिछले कुछ दिनों से गुजारा भत्ता और भरण-पोषण से जुड़े कानून को लेकर बहस छिड़ी हुई है. इस नियम के तहत तलाक या अलग होने के बाद आश्रित पार्टनर और बच्चों की वित्तीय सहायता दी जाती है. हाल ही में हुई घटनाएं, जैसे एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की दुखद मौत ने इसे लेकर एक बार फिर से इससे जुड़ी चुनौतियों को सामने लाया है. यहां हम आपके लिए कुछ ऐसे ही सवाल जवाब लेकर आए हैं जिनमें आप Alimony यानि गुजारा भत्ता से जुड़ा सब कुछ जान सकते हैं.   

भारतीय कानून में गुजारा भत्ता या भरण-पोषण क्या है?
गुजारा भत्ता, को भरण-पोषण भी कहा जाता है. ये एक जीवनसाथी का दूसरे जीवनसाथी या उनके बच्चों को तलाक या अलग होने के बाद वित्तीय सहायता देना है. इसकी मदद से डिपेंडेंट पार्टनर या आश्रित जीवनसाथी और उनके बच्चे की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. गुजारा भत्ता को लेकर भारत में अलग-अलग कानून हैं. 

-दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (CrPC): इसमें पत्नी, बच्चों और माता-पिता के लिए भरण-पोषण का प्रावधान है.

सम्बंधित ख़बरें

-हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) : हिंदुओं के लिए गुजारा भत्ता और भरण-पोषण का प्रावधान करता है.

-विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और भारतीय तलाक अधिनियम, 1869: अन्य समुदायों के लिए समान प्रावधान प्रदान करते हैं.

भारत में भरण-पोषण भत्ता कौन मांग सकता है?
 भारतीय कानून के तहत निम्नलिखित व्यक्ति भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं-

-पत्नी: अगर पत्नी खुद को आर्थिक रूप से संभालने में असमर्थ है, तो वह (अलग होने के समय) भरण-पोषण की मांग कर सकती है. 

-पति: कई मामलों में, पति भी भरण-पोषण का दावा कर सकता है, अगर वह शारीरिक या आर्थिक रूप से पत्नी पर निर्भर हो.

-बच्चे: बच्चे अपनी परवरिश के लिए माता-पिता से भरण-पोषण का हक रखते हैं.

-माता-पिता: बुजुर्ग या आर्थिक रूप से निर्भर माता-पिता अपने बच्चों से भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं.

गुजारा भत्ता कैसे तय किया जाता है, और इसकी राशि किन चीजों पर निर्भर करती है?
गुजारा भत्ते की राशि तय करने के लिए निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है-

-दोनों पक्षों की इनकम: कोर्ट पति-पत्नी दोनों की इनकम, प्रॉपर्टी और देनदारियों को ध्यान में रखता है.

-जीवन स्तर: गुजारा भत्ता डिपेंडेंट पार्टनर के शादी के दौरान की लाइफस्टाइल को बनाए रखने के लिए होता है.

-विवाह की अवधि: लंबे समय तक चली शादी में आमतौर पर ज्यादा गुजारा भत्ता दिया जाता है.

-हेल्थ और उम्र: दोनों पक्षों की आर्थिक और शारीरिक स्थिति बड़ी भूमिका निभाती है.

-बच्चों की जरूरतें: बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरी जरूरतों को प्राथमिकता दी जाती है.

उदाहरण: अतुल सुभाष के मामले में, कोर्ट ने उनके ₹84,000 की मासिक आय को ध्यान में रखते हुए बच्चे की परवरिश के लिए ₹40,000 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश  दिया था. 

भारतीय कानून में गुजारा भत्ते के प्रकार क्या हैं?
गुजारा भत्ता मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है:

-अस्थायी गुजारा भत्ता: इसे पेंडेंट लिटे अलाउंस भी कहते हैं. तलाक की प्रक्रिया के दौरान आश्रित जीवनसाथी की तात्कालिक जो वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अमाउंट दिया जाता है. ये हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत आता है.

-स्थायी गुजारा भत्ता: तलाक के बाद लमसम अमाउंट या आवधिक रूप से दिया जाता है. ये हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत आता है.

-बच्चों का भरण-पोषण: विशेष रूप से बच्चों की पढ़ाई, हेल्थ और दूसरी जरूरतों के खर्च के लिए.

जब बच्चे शामिल हों, तो गुजारा भत्ते में क्या बदलाव होता है?
जब बच्चे शामिल होते हैं, तो कोर्ट उनकी भलाई को प्राथमिकता देता है. बच्चों का भरण-पोषण गुजारा भत्ते में अलग से तय किया जाता है. बच्चे की वित्तीय जिम्मेदारी दोनों माता-पिता पर समान रूप से होती है, उनकी इनकम के अनुसार. 

गुजारा भत्ते का दावा करने के लिए शादी की अवधि पर कोई विशेष नियम है?
गुजारा भत्ते के लिए शादी की न्यूनतम अवधि की जरूरत नहीं होती है. हालांकि, अगर कोई अपनी शादी कम समय के लिए रहा है और वो इनडिपेंडेंट है, तो कम या किसी-किसी मामले में कोई गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता. लंबे समय की शादी में डिपेंडेंट पार्टनर को ज्यादा गुजारा भत्ता मिलने की संभावना होती है.

किन परिस्थितियों में पत्नी को भरण-पोषण से वंचित किया जा सकता है?
कुछ परिस्थितियों में पत्नी को भरण-पोषण से वंचित किया जा सकता है. अगर पत्नी काम कर रही हो और अपनी जरूरतें पूरी कर सकती हो. या फिर अगर दोनों पक्षों ने गुजारा भत्ते को माफ करने का समझौता किया हो. इसके अलावा, अगर पत्नी ने बिना किसी वैध कारण के पति को छोड़ दिया हो या उस पर अत्याचार किया हो.

अगर कोई जीवनसाथी भरण-पोषण देने से इनकार करता है, तो कोर्ट उनकी सैलरी या संपत्ति कुर्क करने का आदेश दे सकता है. इसके अलावा, उनपर जुर्माना या दंड लगाया जा सकता है. CrPC की धारा 125(3) के तहत जेल का आदेश भी दिया जा सकता है.