उत्तराखंड की वादियों में बागेश्वर के 58 वर्षीय जगदीश कुनियाल को प्रकृति संरक्षण के लिए जाना जाता है. जगदीश ने 40 सालों में अपनी बंजर जमीन पर मिश्रित जंगल उगा दिया है. जिससे पानी के सूख चुके स्रोत जीवित हो गए हैं. साथ ही अब महिलाओं को ईंधन और चारे के लिए कई किलोमीटर दूर चलकर भी नहीं जाना पड़ता है.
बागेश्वर के सिरकोट में जगदीश कुनियाल की यह पहल किसी मिसाल से कम नहीं है. क्योंकि उनकी इस एक पहल ने न सिर्फ उनके गांव बल्कि आसपास के गांवों की तस्वीर भी बदल दी है.
चिपको आंदोलन से हुए प्रभावित:
मात्र आठवीं तक पढ़े जगदीश का कहना है कि उन्हें चिपको आंदोलन से प्रेरणा मिली. और उन्होंने 1990 की शुरुआत से ही पेड़-पौधे लगाने का काम शुरू कर दिया था. लेकिन शुरुआत में पौधे मरने लगे. क्योंकि वह पेड़-पौधे लगाते और कोई जानवर इन्हें खा जाते या बच्चे तोड़ देते थे.
ऐसे में जगदीश ने सूझबूझ से काम लिया और अपने गांव के गदेरे (प्राकृतिक जलस्त्रोत) के आसपास चाय का बागान लगाना शुरू किया. देखते ही देखते लगभग 80 नाली जमीन पर उनका चाय का बागान तैयार हो गया. इसी बागान के चारों और वह और कई तरह के पेड़-पौधे लगाने लगे. इसकी देखभाल के लिए उन्होंने मजदुर रखा.
सूख चुके गदेरों को मिला पुनर्जीवन:
जगदीश बताते हैं कि जब उन्होंने पेड़-पौधे लगाना शुरू किया तब उनके इलाके के जलस्त्रोत, जिन्हें स्थानीय भाषा में गदेरा कहा जाता है, सूखने लगे थे. लेकिन जैसे-जैसे उनके इलाके में हरियाली बढ़ी. ये गदेरे भी पुनर्जीवित होने लगे.
जगदीश ने लगभग 25 हजार पेड़ लगाकर अपनी बंजर जमीन पर जंगल तैयार किया है. जिसकी वजह से सूखे जल स्रोत दुबारा रिचार्ज होकर आज तीन गांवों में सिंचाई और पीने के पानी के लिए काम आ रहे हैं. अपने चाय बागान से जगदीश को अच्छी आय भी हो जाती है.
शुरुआत में गांव के लोग जगदीश का मजाक बनाया करते थे. लोग कहते थे कि वह अपना समय और पैसे दोनों बर्बाद कर रहे हैं. भला कोई बंजर जमीन पर भी मेहनत करता है क्या? लेकिन अब से लगभग आठ-नौ साल पहले जब सूखे हुए गदेरे में पानी फिर से आने लगा तो गांववालों को उनकी मेहनत का मोल समझ में आया.
मन की बात में हुई सराहना:
जगदीश कुनियाल के इस काम की सराहना प्रधानमंत्री मोदी 'मन की बात' प्रोग्राम में भी कर चुके हैं. प्रधानमंत्री ने जगदीश की पहल की तारीफ की. जगदीश के लिए यह बहुत ही खुशी का मौका था. उनके पूरे परिवार और उनके गांव को आज उनपर गर्व है.
जगदीश चंद्र कुनियाल की एक कोशिश से आज सैकड़ों परिवारों का जीवन संवर रहा है. हर कोई उनके काम की सराहना करता है. लेकिन जगदीश को किसी पुरस्कार की लालसा नहीं है बल्कि वह हमेशा पर्यावरण के लिए काम करते रहना चाहते हैं.
(जगदीश पांडेय की रिपोर्ट)