अहमदाबाद स्थित बालकृष्ण दोषी को रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (RIBA)द्वारा रॉयल गोल्ड मेडल 2022 दिया जाएगा. यह पुरस्कार वास्तुकला के लिए दुनिया का सर्वोच्च सम्मान है. 94 साल की उम्र के दोषी को उनके सात दशकों के करियर के लिए पूरे भारत में 100 से अधिक निर्मित परियोजनाओं के लिए पहचाना जाता है. रॉयल गोल्ड मेडल "महामहिम महारानी द्वारा व्यक्तिगत रूप से अनुमोदित है और इसे ऐसे व्यक्ति या लोगों के समूह को दिया जाता है जिनका आर्किटेक्चर की उन्नति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है." यह पुरस्कार दोषी को 2022 में एक विशेष समारोह में प्रदान किया जाएगा.
ट्विटर पर पीएम मोदी ने लिखा, "प्रतिष्ठित वास्तुकार श्री बालकृष्ण दोशी जी से बात की और उन्हें रॉयल गोल्ड मेडल 2022 से सम्मानित किए जाने पर बधाई दी. वास्तुकला की दुनिया में उनका योगदान स्मारकीय है. उनके कार्यों को उनकी रचनात्मकता, विशिष्टता और विविध प्रकृति के लिए विश्व स्तर पर सराहा जाता है."
आर्किटेक्चर में दोषी का करियर
रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रिटिश आर्किटेक्ट्स (आरआईबीए) ने गुरुवार को सम्मान की घोषणा करते हुए कहा कि 70 साल के करियर और 100 से अधिक निर्मित परियोजनाओं के साथ 94 वर्षीय दोषी ने अपने अभ्यास के माध्यम से भारत और उसके आस-पास के क्षेत्रों में वास्तुकला की दिशा और उसकी शिक्षा को प्रभावित किया है. बड़ी जीत के बारे में सुनकर दोषी ने कहा, "मैं इंग्लैंड की रानी से रॉयल गोल्ड मेडल प्राप्त करने के लिए बेहद सुखद महसूस कर रहा हूं. यह कितना बड़ा सम्मान है."
साथ देने के लिए पत्नी और बेटी को कहा धन्यवाद
उन्होंने कहा, "इस पुरस्कार की खबर ने 1953 में ले कॉर्बूसियर के साथ काम करने के मेरे समय की यादें ताजा कर दीं, जब उन्हें अभी-अभी रॉयल गोल्ड मेडल मिलने की खबर मिली थी. मैं महामहिम से इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए उनके उत्साह को स्पष्ट रूप से याद करता हूं. मुझे आश्चर्य है कि यह पदक इतना बड़ा और भारी होगा." आज छह दशक बाद मैं अपने गुरु ले कॉर्बूसियर के समान पुरस्कार से सम्मानित होने के लिए वास्तव में अभिभूत महसूस कर रहा हूं. इसके लिए मैं अपनी पत्नी, बेटियों और सबसे महत्वपूर्ण मेरी टीम और संगथ माई स्टूडियो के सहयोगियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहता हूं.
कहां-कहां किया काम
साल 1927 में पुणे में फर्नीचर निर्माताओं के परिवार में जन्मे बालकृष्ण दोषी ने जेजे स्कूल ऑफ आर्किटेक्चर, बॉम्बे में अध्ययन किया. इसके बाद उन्होंने पेरिस में सीनियर डिजाइनर (1951-54) के तौर पर ले कॉर्बूसियर के साथ चार साल काम किया और अहमदाबाद में परियोजनाओं की निगरानी करने के लिए चार साल भारत में काम किया. उन्होंने लुई कान के साथ भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद के निर्माण के लिए एक सहयोगी के रूप में काम किया और एक दशक से अधिक समय तक सहयोग करना जारी रखा.