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Banarasi Paan got GI Tag: बनारसी पान को मिला जीआई टैग, जानिए इसका इतिहास

वाराणसी अपने घाटों, शिवशंकर के मंदिरों, चाट और पान के लिए मशहूर है. जी हां, बनारस की बात बनारसी पान के बिना खत्म नहीं हो सकती है. और अब इस पान को दुनियाभर में पहचान मिल गई है.

Banarasi Paan got GI Tag (Photo: Unsplash) Banarasi Paan got GI Tag (Photo: Unsplash)
हाइलाइट्स
  • पान का जिक्र धार्मिक-पौराणिक कथाओं में भी मिलता है

  • पान के पत्ते सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं

वाराणसी के बनारसी पान और लंगड़ा आम को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication/GI) क्लब में एंट्री मिल गई है. जिसका अर्थ है कि अब उनकी पहचान उनके ओरिजिन से होगी. 31 मार्च को, जीआई रजिस्ट्री, चेन्नई ने क्षेत्र के दो और उत्पादों, रामनगर का भंटा (बैंगन) और चंदौसी के आदमचीनी चावल (चावल) को जीआई टैग दिया.

इन उत्पादों को जीआई टैग से मान्यता मिलना इनके उत्पादन और व्यापार से जुड़े लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है. खासकर कि बनारसी पान को GI टैग मिलने से न सिर्फ बनारस के बल्कि दुनियाभर को उन लोगों को खुशी मिली है जिन्होंने इसका स्वाद चखा हुआ है. क्योंकि बहुत से लोग वाराणसी तीन ही चीजों के लिए जाते हैं- एक मां गंगा के घाट, यहां की गलियों की चाट और आखिर में बनारसी पान. 

बनारस के पान की प्रसिद्धि इतनी है कि लोकगीतों से लेकर बॉलीवुड सॉन्ग्स तक, हर जगह इसका जिक्र है. अब भला, 'खाइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला' गाने को कौन भूल सकता है. वैसे तो पान दुनियाभर में बनते हैं लेकिन बनारस के पान को बनाने का तरीका एकदम अलग और इसलिए इसका स्वाद सबसे निराला और जगत-विख्यात है. 

पान का इतिहास
बात पान के इतिहास की करें तो पान का जिक्र धार्मिक-पौराणिक कथाओं में भी मिलता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि पान का पहला बीज मां पार्वती और भोले शंकर ने खुद एक पहाड़ पर लगाया था. इसलिए भगवान शिव को पान बेहद प्रिय है और शिव की नगरी में बिना पान के न तो पूजा पूरी होती है और न ही खाना. आप घर में कोई भी पूजा-अनुष्ठान कराएं, हर एक पूजा में पान के पत्तों का आना जरूरी होता है. 

पुराणों के हिसाब से पान के पत्ते सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं. लेकिन बात अगर पान को बतौर माउथ फ्रेशनर इस्तेमाल करने की करें तो यह परंपरा मुगल काल से शुरू हुई. जी हां, पान को आज जिस रूप में खाया जाता है, उसकी शुरूआत मुगलों ने की थी. मुगलों ने ही पान के पत्ते के साथ चूना, कत्था जैसी चीजों के इस्तेमाल करके इसे माउथ फ्रेशनर बनाया. 

Paan (Photo: Unsplash)

ऐसा माना जाता है कि भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में पान का काफी चलन था। उत्तर भारत में पनेरी नाम का एक व्यक्ति रहता था जो गांव के घर-घर में पान पहुंचाता था. खास मौकों पर खास सामग्री से पान बनाया जाता था. ऐसा कोई घर नहीं था जहां मेहमानों को पान न परोसा गया हो. 

बनारसी पान क्यों है खास 
बनारसी पान भी बाकी पान की तरह ही होता है. पान के पत्तों में कत्था, अचारी चूना, सुपारी, सादा तम्बाकू और अन्य चीजें भरी जाती हैं. लेकिन फर्क है प्रक्रिया का. बनारस में पान वालों के लिए पान खिलाना सिर्फ बिजनेस नहीं है बल्कि बनारस की पहचान है. इसलिए पान के हर पत्ते पर अलग-अलग सामग्री को सही मात्रा में नाप-तौल कर लगाया जाता है ताकि स्वाद बराबर आए. कई सामग्री को तो कई दिनों तक भिगोकर रखते हैं. 

जैसे सुपारी को काटकर पानी में भिगोने से उसका कसैलापन दूर हो जाता है. फिर कत्था पानी में डुबोया जाता है और कुछ दिनों के बाद इसे दूध में डुबोया जाता है. इसके बाद, कत्था उबाला जाता है और छानने के लिए बर्तनों में फैलाया जाता है. फिर कत्थे को कपड़े में बांधकर रखते हैं ताकि इसका कड़वापन दूर हो जाए. इस पूरी प्रक्रिया के बाद कत्थे का रंग चमकीला हो जाता है. फिर इसे मथ कर पेस्ट बना लिया जाता है. 

Making of Paan (Photo: Unsplash)

यह प्रक्रिया और हाथ से बना कत्था बनारसी पान की खासियत है. बनारस के पान में ताजा चूना कभी नहीं डाला जाता, बल्कि चूना पत्थर को कई दिनों तक पानी में भिगोकर कपड़े से छानकर दही और दूध में मिलाने के बाद, पान में लगाया जाता है. इससे पिकलिंग लाइम मिलता है. इस प्रक्रिया में चूने की सारी गर्मी दूर हो जाती है. इसके बाद स्थानीय बोली में तम्बाकू या सुरती का प्रयोग आता है. बनारसी पान में सादी सुरती का प्रयोग किया जाता है क्योंकि पीली सुरती हानिकारक और अम्लीय होती है. सादी सुरती को भी तैयार किया जाता है. और बनारस में जब आप पान खरीदते हैं तो आपको ताजा पान बनाकर देते हैं.  

नवाबी तरीके से परोसा जाता है पान 
बनारसी शैली में पान वाला, पान परोसने के लिए नवाबी परंपराओं या शाही तरीके का पालन करता है. जिसमें वह पहले बायीं हथेली को दाहिने हाथ की कोहनी के नीचे रखता है और फिर आपको पान देता है. यह बात बनारस के पान के अनुभव को और खास बनाती है. आपको बता दें कि वाराणसी में कई तरह का पान मिलता है. 

इस लिस्ट में सादा पान, मीठा पान, पंचमेवा पान, जर्दा पान, गुलाब पान, नवरत्न पान, राजरत्न पान, अमावट पान, गिलोरी और केसर पान आदि शामिल हैं. पान को बनाने का बेसिक तरीका एक जैसा है बस फ्लेवर बदला जाता है. पान के फ्लेवर के हिसाब से ही इसकी कीमत तय की जाती है. 

साथ ही, तंबाकू या सुपारी रहित पान पाचन के लिए बहुत अच्छा होता है. इसका प्रयोग खाना खाने के बाद मुंह से आने वाली दुर्गंध को दूर करने के लिए किया जाता है. आम तौर पर अतिरिक्त सामग्री के बिना इस पान को मीठा पान कहा जाता है.