महिलाएं आज हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर आगे चल रही हैं. ऐसी कोई फील्ड नहीं जहां महिलाओं ने अपनी प्रतिभा का लोहा न मनवाया हो. महिलाओं को पुरुषों से कमतर आंकने वालों को मध्य प्रदेश के मंदसौर आकर देखना चाहिए, जहां 10 से ज्यादा महिलाएं ई-रिक्शा (e- rickshaw) चला रही हैं. मंदसौर जिले में एक एनजीओ और प्रशासन के माध्यम से नई शुरुआत की जा रही है, जिसके तहत महिलाओं और युवतियों को ई-रिक्शा दिए जा रहे हैं. इस पहल का उद्देश्य इन महिलाओं को सशक्त करना है, ताकि ये पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर अपनी एक अलग पहचान बना पाए और साथ ही स्वाभिमान और स्वालंबन का जीवन जी सकें.
आत्मनिर्भर बन रही हैं महिलाएं
देश के 73वें गणतंत्र दिवस ने मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में एक नई शुरुआत की और यहां ई-रिक्शा को सार्वजनिक परिवहन के रूप में शुरू किया गया. इन वाहनों को चला रही 10 महिलाएं हैं, जो ज्यादातर बांछड़ा जनजाति से संबंधित हैं. 10 महिलाओं के इस समूह में निर्मला धनगर भी शामिल हैं, जिन्हें अब अपने किसान-पति की जीविका कमाने में मदद करने के लिए खेतिहर मजदूर के रूप में काम नहीं करना पड़ेगा. इस बारे में बात करते हुए निर्मला कहती हैं, "27 जनवरी से, मैंने खेतों में काम करना बंद कर दिया है. मैं इन दिनों लगभग 15-30 किलोमीटर के मार्ग पर ई-रिक्शा चलाकर हर दिन 150-400 रुपये कमा रही हूं. मैं अब अपने इकलौते बेटे की पढ़ाई के लिए फंड जुटाने में मदद कर पाऊंगी."
पांचवीं कक्षा तक पढ़ी निर्मला बांछड़ा जनजाति की महिलाओं में अकेली नहीं हैं. दसवीं कक्षा की ड्रॉपआउट और चार बच्चों की मां पार्वती बाई दहिमा भी पश्चिम एमपी जिले में यात्रियों को ले जाती हैं. ये महिलाएं बांछड़ा जनजाति के लिए रोल मॉडल भी बन रही हैं. पार्वती के पति बंटी ने कहा, "ई-रिक्शा चलाती मेरी पत्नी की सफलता को देखकर, उनके माता-पिता द्वारा वेश्यावृत्ति में धकेल दी गयीं कई महिलाएं मुझे उनकी मदद करने के लिए बुला रही हैं."
स्थानीय पुलिस ने दिया महिलाओं को प्रशिक्षण
गणतंत्र दिवस पर मंदसौर जिले के प्रभारी मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव ने 10 महिलाओं को ई-रिक्शा की चाबियां सौंपी थी. मुंबई के एक एनजीओ बॉम्बे टीम चैलेंज के सहयोग से 10 इलेक्ट्रिक रिक्शे दिए जा रहे हैं. इन महिलाओं और युवतियों को ई-रिक्शा देने से पहले इनकी ट्रेनिंग और जमीनी स्तर पर सहयोग करने के लिए जिला प्रशासन आगे आया है.मंदसौर के जिला कलेक्टर गौतम सिंह ने कहा कि एनजीओ ने जहां ई-रिक्शा मुहैया कराया, वहीं स्थानीय पुलिस ने इन महिलाओं को प्रशिक्षण दिया. उन्होंने कहा, "यह परियोजना निश्चित रूप से अधिक लोकप्रिय हो जाएगी, क्योंकि महिला चालक ज्यादा अनुशासित हैं. हमें उम्मीद है कि ये 10 महिलाएं अपने समुदाय के और लोगों को स्वरोजगार योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करेंगी."
मुंबई स्थित गैर-लाभकारी संगठन बॉम्बे टीन चैलेंज (बीटीसी) के राज्य प्रवक्ता सुरेश चार्लटन का कहना है कि इसका उद्देश्य उन लोगों को बचाना और उनकी देखभाल करना है, जिन्हें वेश्यावृत्ति में धकेला गया है. उन्होंने कहा, “हम कुछ सालों से मंदसौर और नीमच जिलों के 10-12 गांवों में बांछड़ा जनजाति के साथ काम कर रहे हैं. मंदसौर जिले के पानपुर गांव में जनजाति के बच्चों के लिए एक स्कूल और छात्रावास स्थापित किया गया है."