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107 फर्जी वकीलों को निकाला गया बाहर... जानें क्या है एडवोकेट बनने का क्राइटेरिया? क्या LLB की डिग्री काफी है?

BCI के लिए फर्जी एडवोकेट को हटाना एक गंभीर मुद्दा बन गया है. हाल ही में BCI ने 107 फर्जी वकीलों को लिस्ट से बाहर निकाल दिया है. शैक्षणिक जरूरतों को पूरा करना, AIBE पास करना, और राज्य बार काउंसिल के साथ नामांकन लेना जरूरी है.

Fake lawyers (Representative Image) Fake lawyers (Representative Image)

देश में कई फर्जी वकील भी घूम रहे हैं. इन्हीं पर एक्शन लेते हुए भारतीय बार काउंसिल (BCI) ने फर्जी वकीलों को हटा दिया है. BCI ने 2019 से अक्टूबर 2024 के बीच दिल्ली में 107 फर्जी वकीलों को एडवोकेट लिस्ट से हटा दिया है. यह कदम BCI के सर्टिफिकेट और प्लेस ऑफ प्रैक्टिस (वेरिफिकेशन) नियम, 2015 के नियम 32 के तहत उठाया गया है.

BCI के लिए फर्जी एडवोकेट को हटाना एक गंभीर मुद्दा बन गया है. BCI के सर्टिफिकेट और प्लेस ऑफ प्रैक्टिस (वेरिफिकेशन) नियम में संशोधन से पहले, हजारों अयोग्य लोग नकली दस्तावेजों की मदद से रजिस्टर्ड हो गए थे. संशोधित नियम 32 के साथ, BCI अब और सख्त जांच कर सकती है और ऐसे व्यक्तियों को अपनी लिस्ट से हटा सकती है. 

भारत में एडवोकेट बनने का क्राइटेरिया किया है? 
भारत में एक एडवोकेट बनने के लिए, व्यक्ति को कुछ डिग्री और एक्सपीरियंस की जरूरत होती है: 

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1. शिक्षा: सबसे जरूरी होता है एक लॉ डिग्री. 12वीं कक्षा के बाद 5-साल के इंटीग्रेटेड LLB प्रोग्राम या किसी भी कोर्स में ग्रेजुएशन की की डिग्री के बाद आप 3-साल के LLB प्रोग्राम के दाखिला ले सकते हैं. भारत में LLB डिग्री की फीस अलग-अलग संस्थानों के ऊपर निर्भर करती है.

2. बार परीक्षा: LLB पूरा करने के बाद, उम्मीदवार को BCI द्वारा आयोजित अखिल भारतीय बार परीक्षा (AIBE) पास करनी होती है.

3. बार काउंसिल के साथ नामांकन: AIBE पास करने के बाद, उम्मीदवार अपने संबंधित राज्य बार काउंसिल में नामांकन के लिए आवेदन कर सकते हैं. राज्य बार काउंसिल बैकग्राउंड की जांच करती है, डॉक्यूमेंट को वेरीफाई करती है और एक एनरोलमेंट नंबर देती है. 

4. प्रैक्टिस वेरिफिकेशन: अब नए रजिस्टर्ड एडवोकेट्स को BCI के नियमों के अनुसार हर पांच साल में अपनी प्रैक्टिस करने वाली जगह को वेरीफाई करवाना होता है. 

क्या कोई भी वकील बन सकता है?
भारत में हर कोई व्यक्ति वकील नहीं बन सकता. शैक्षणिक जरूरतों को पूरा करना, AIBE पास करना, और राज्य बार काउंसिल के साथ नामांकन लेना जरूरी है. इसके अलावा, BCI के वेरिफिकेशन प्रोसेस को अयोग्य उम्मीदवारों को हटाने और प्रोफेशन के स्टैंडर्ड को बनाए रखने के लिए डिजाइन किया गया है. जो व्यक्ति इनका पालन नहीं करता है उनसे एडवोकेट लिस्ट से बाहर किया जा सकता है. 

लॉयर और एडवोकेट के बीच फर्क 

भारत में, लॉयर और एडवोकेट का मतलब एक नहीं होता है. हालांकि, कई लोगों को इसके बारे में नहीं पता होता है:

-लॉयर: कोई भी व्यक्ति जिसके पास लॉ की डिग्री (LLB) हो, उसे लॉयर कहा जाता है. हालांकि, केवल LLB डिग्री होना कोर्ट में केस लड़ने के लिए काफी नहीं होता है. 

-एडवोकेट: एक वकील जिसने AIBE पास किया हो और बार काउंसिल के सदस्य के रूप में रजिस्टर्ड हो, उसे एडवोकेट कहा जाता है. एडवोकेट को कोर्ट में जिरह करने का अधिकार होता है. 

एडवोकेट लॉ और BCI की भूमिका
एडवोकेट लॉ, 1961 BCI के काम को देखता है और बताता है. BCI योग्य लोगों को लॉ प्रैक्टिस करने की अनुमति देता है. इसके अलावा, यह राज्य बार काउंसिलों की निगरानी करने और राज्यों में नियमों को समान रूप से लागू करने का अधिकार भी रखता है. एडवोकेट लॉ BCI को एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया निर्धारित करने, परीक्षा करवाने और एडवोकेट की लिस्टिंग की शक्ति देता है. 

BCI और राज्य बार काउंसिलों के पास धोखाधड़ी करने वालों की जांच करने और उन्हें दंडित करने का अधिकार है.