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Bathinda Military Station:क्या है इसका इतिहास, जानिए भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है बठिंडा मिलिट्री स्टेशन

पंजाब के बठिंडा मिलिट्री स्टेशन को साल 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्थापित किया गया था. 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में इस स्टेशन की अहम भूमिका थी. कई सैन्य अभियानों में इसका इस्तेमाल किया गया है.

बठिंडा मिलिट्री स्टेशन का इतिहास जानिए बठिंडा मिलिट्री स्टेशन का इतिहास जानिए

पंजाब के बठिंडा मिलिट्री स्टेशन में फायरिंग में 4 जवानों की मौत हो गई है. फायरिंग 80 मीडियम रेजिमेंट ऑफिसर्स मेस में हुई. ये मिलिस्ट्री स्टेशन सामरिक तौर पर काफी खास है. क्योंकि यह पाकिस्तान की सीमा के पास है. इस जगह से बॉर्डर पर तेजी से सैन्य साजो सामान की सप्लाई की जा सकती है. यह मिलिट्री स्टेशन पाकिस्तान को हमेशा से खटकता रहा है. चलिए आपको बठिंडा मिलिट्री स्टेशन के बारे में बारे में बताते हैं.

मिलिट्री यूनिट का सेंटर है बठिंडा स्टेशन-
बठिंडा मिलिट्री स्टेशन पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा के लिए एक जरूरी सैन्य प्रतिष्ठान है. ये कई मिलिट्री यूनिट का मुख्यालय है. ये एक्स कॉर्प्स का हेड क्वार्टर है, जो सेना का एक कोर है. एक जुलाई 1979 को इसकी स्थापना बठिंडा मिलिट्री स्टेशन में की गई थी. एक्स कॉर्प्स कोर की स्थापना लेफ्टिनेंट जनरल एमएल तुली ने की थी.

सेना की ट्रेनिंग होती है-
बठिंडा मिलिट्री स्टेशन में जवानों की ट्रेनिंग भी होती है. इस मिलिट्री स्टेशन में ट्रेनिंग की उच्च क्वालिटी की सभी सुविधाएं मौजूद हैं. इसमें सिमुलेशन सेंटर और फायरिंग रेंज भी शामिल है. इस सेंटर में जवानों को टेक्निकल युद्ध की ट्रेनिंग दी जाती है. इस सेंटर में सैनिकों के युद्ध कौशल को बेहतर बनाया जाता है.

बठिंडा मिलिट्री स्टेशन का इतिहास-
इस मिलिट्री स्टेशन का इतिहास बहुत पुराना है. साल 1942 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश राज के दौरान स्थापित किया गया था. इस स्टेशन ने 1965 और 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी. कई सैन्य अभियानों में इसका इस्तेमाल किया गया था. इसी स्टेशन से पाकिस्तानी बॉर्डर पर तेजी से साजो-सामान की सप्लाई की गई थी.

क्या है 80 मीडियम रेजिमेंट-
बताया जा रहा है कि फायरिंग 80 मीडियम रेजिमेंट ऑफिसर्स मेस में हुई. जिसमें 4 जवानों की मौत हो गई. 80 मीडियम रेजिमेंट की स्थापना 1 मार्च 1965 को हुई थी. लेफ्टिनेंट कर्नल एनजीके नायर को इसकी कमान सौंपी गई. इस रेजिमेंट ने कई लड़ाइयों में हिस्सा लिया है. 1965 की भारत-पाकिस्तान युद्ध में इस रेजिमेंट ने अहम भूमिका निभाई थी. साल 1984 में ऑपरेशन मेघदूत में भी इस रेजिमेंट की अहम भूमिका थी. सेकंड लेफ्टिनेंट डीएस बिष्ट को सियाचिन ग्लेशियर में ऑब्जर्वेशन पोस्ट पर कब्जा करने का काम सौंपा गया था.

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