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महिला डॉक्टर की पहल: टूटे बेड, आईवी स्टैंड, एम्बुलेंस के बेकार टायर जैसे वेस्ट का इस्तेमाल कर अस्पताल में बनाए उपवन

उत्तर प्रदेश में पीलीभीत के जिला महिला अस्पताल में न तो बेकार चीजें कबाड़ में जमा होती हैं और न ही बेची या फेंकी जाती हैं. क्योंकि अस्पताल की सीएमएस डॉ अनीता चौरसिया ने ने एक बढ़िया हल निकाला है- ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट.’ उन्होंने इन वेस्ट मटेरियल का इस्तेमाल कर पांच इको-पार्क बनवा दिए हैं. 

महिला जिला अस्पताल का गार्डन महिला जिला अस्पताल का गार्डन
हाइलाइट्स
  • वेस्ट चीजों से बनाए खूबसूरत पार्क

  • राज्य भर में मिला है प्रथम स्थान

  • खुद तैयार करते हैं खाद

क्या आपने कभी सोचा है कि सरकारी अस्पतालों  में जब बेड टूट जाते है, ग्लूकोज की बोतल खाली हो जाती है या ग्लूकोज की बोतल टांगने वाले स्टैंड जब बेकार हो जाते तो उनका क्या होता है. 

ऐसे और बहुत से उपकरण हैं जो अस्पतालों में मरीजों के लिए या साफ सफाई के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. समय के साथ नए उपकरण आते रहते हैं और पुराने-बेकार उपकरणों का क्या हुआ यह किसी को याद नहीं रहता. ये उपकरण या तो अस्पताल के किसी कोने में सिर्फ कूड़ा बनकर रहते हैं या कई बार कबाड़ में चले जाते हैं. 

लेकिन उत्तर प्रदेश में पीलीभीत के जिला महिला अस्पताल की तस्वीर कुछ और है, यहां न तो बेकार चीजें कबाड़ में जमा होती हैं और न ही बेची या फेंकी जाती हैं. क्योंकि अस्पताल की सीएमएस डॉ अनिता चौरसिया ने ने एक बढ़िया हल निकाला है- ‘बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट.’

उन्होंने इन वेस्ट मटेरियल का इस्तेमाल कर पांच इको-पार्क बनवा दिए हैं. 

वेस्ट चीजों से बनाए खूबसूरत पार्क: 

डॉ अनीता की पहल से अस्पताल के गार्डन का नक्शा बदला हुआ है. आप यहां देख सकते हैं कि फिनायल की बोतल में फूल लगे हैं तो कहीं ग्लूकोस टांगने वाले स्टैंड पर टोकरी टंगी हैं तो कहीं सरकारी एंबुलेंस के टायर सजे हुए हैं. 

बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट की मिसाल

वही टूटे बेड के सिहराने से गार्डन की बाउंड्री  बनी है. गार्डन में टूटे बेड, आई.वी.स्टेण्ड, बेबी बास्केट, एम्बुलेंस के टायर, फिनायल की बोतलें, मरीजो के बैड की साइड टेबल ,बच्चो के टूटे झूले, ट्रे जैसे सभी सामान महिला जिला अस्पताल में बेकार होने के बाद गार्डन में लगा दिया जाता है.  

इस गार्डन को उन्होंने ‘उपवन’ नाम दिया हुआ है. इस उपवन में डाक्टर व स्टाफ के लिये भी खेलने की व्यवस्था है. इतना ही नहीं यहां ‘कान्हा पलाना गृह’ भी है, जहां बच्चों को झुलाया जाता है. बच्चों के परिवार के लोग भी ढोलक बजा कर खुशी भी यही बैठ कर मनाते है. 

राज्य भर में मिला है प्रथम स्थान: 

डॉ अनीता 20 साल से अस्पताल में डॉ के रूप में सेवा दे रही है और अब बीते 4 साल से सीएमएस बन कर पूरे अस्पातल की देख रेख कर रही हैं. 59 साल की डॉ. अनीता की पहल से ही आज अस्पताल के परिसर में पांच उपवन हैं. 

इन उपवन को डॉ. अनीता ने खुद सजाया है. उन्हीं के आइडियाज से सभी चीजों को इतना खूबसूरत रूप दिया गया है कि मरीजों के साथ आने वाले उनके परिवारजन भी इन पार्क्स में समय व्यतीत करते हैं. और तो और जिले के नामी गिरामी  डॉक्टर भी पार्क्स में फ़ोटो क्लिक कराते है. स्टाफ़ और मरीज सेल्फी भी लेते है. 

खुद बनाते हैं खाद

कायाकल्प योजना के तहत इस जिले को उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान भी मिल चुका है. इन उपवन को अलग-अलग नाम दिए गए हैं- सुभाष वाटिका, शहीद दामोदरदास वाटिका, शहीद नत्थू लाल वाटिका, शहीद माखनलाल वाटिका, स्वराज वाटिका, तुलसी वाटिका आदि. 

खुद तैयार करते हैं खाद: 

इस उपवन को देख कर लगता है कि पूरे प्रदेश में या यूं कहें पूरे देश मे इस तरह का यह पहला महिला जिला अस्पताल होगा. अमूमन प्रदेश में जिला अस्पातलो से खामियों की खबरें खूब आती हैं लेकिन पीलीभीत में डॉ अनीता ने तिनका-तिनका कूड़ा जोड़ कर जो प्रयास किया है वह काबिल-ए-तारीफ है. 

डॉ अनिता चौरसिया ने बताया यह पार्क कोरोना काल मे उन्होंने तैयार कराये हैं. उस समय सभी स्टाफ मानसिक तौर पर तनाव में थे. जिससे निजात पाने के लिए उन्होंने यह तरीका अपनाया.इस पहल के लिए उन्हें नगर पालिका की तरफ से ब्रांड एंबेसडर भी बनाया गया है. अब वह जिला स्तर पर काम कर रही हैं. 

अस्पताल में मरीजों के लिए खाना तैयार होता है. अस्पताल की रसोई और कैंटीन आदि से जो भी गीला और जैविक कचरा निकलता है, उसी से खड़ा तैयार की जाती है. इस खाद से पार्क्स को हरा-भरा रखा जा रहा है. कायाकल्प योजना के तहत मिली पुरस्कार राशि से उन्होंने खेल के लिए रूम बनाया है. ताकि जो डॉक्टर और नर्स ड्यूटी के बाद खेल सकें.

(पीलीभीत से सौरभ पांडे की रिपोर्ट)