scorecardresearch

बड़े-बड़े हाईवे बना दिए, लेकिन इलाज की कोई गारंटी नहीं! Supreme Court ने केंद्र से पूछा- क्या इंसानों की जान की कोई कीमत नहीं?

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि एक सप्ताह के भीतर योजना लागू करनी होगी. 9 मई तक अधिसूचित योजना का दस्तावेज अदालत में पेश करना होगा. साथ ही 13 मई को अगली सुनवाई होने वाली है.

Road Accident Free Treatment (Representative image) Road Accident Free Treatment (Representative image)

"सड़कें चमचमाती हैं, लेकिन लोग तड़प-तड़प कर मर जाते हैं!"

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की उस तल्ख नाराजगी का हिस्सा थी, जब सोमवार को केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई गई. वजह थी- सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों के लिए "कैशलेस ट्रीटमेंट" (नकदहीन इलाज) योजना को लागू करने में हो रही भारी देरी.

सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में कहा, "आप बड़े-बड़े हाईवे तो बना रहे हैं, लेकिन वहां कोई सुविधा नहीं है. लोग हादसों के बाद मर रहे हैं. गोल्डन ऑवर में इलाज का इंतजाम कहां है?"

सम्बंधित ख़बरें

क्या है मामला?
दरअसल, मोटर वाहन अधिनियम (Motor Vehicles Act) में 2022 से ही एक बेहद अहम प्रावधान धारा 164A के तहत लागू हो चुका है. इसके मुताबिक सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को पहले एक घंटे यानी 'गोल्डन ऑवर' में तुरंत और मुफ्त इलाज मिलना चाहिए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नजर में, सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.

आठ जनवरी 2024 को शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि एक उचित योजना बनाकर जल्द लागू करें, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछे सवाल 
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने बेहद सख्त शब्दों में केंद्र सरकार से सवाल किया:

  • "आप अवमानना कर रहे हैं. समय बढ़ाने की भी जहमत नहीं उठाई."
  • "तीन साल हो गए, फिर भी योजना तैयार नहीं?"
  • "क्या आप इतने लापरवाह हो सकते हैं?"
  • "बड़े-बड़े हाईवे बनाने का क्या फायदा जब लोगों की जान न बच सके?"

यह सुनकर कोर्ट रूम में सन्नाटा पसर गया. सचिव महोदय को सीधे तलब किया गया और जवाब मांगा गया.

सचिव ने कहा- 'बीमा कंपनियां नहीं कर रहीं सहयोग'
केंद्र सरकार की ओर से सड़क परिवहन मंत्रालय के सचिव ने अदालत को बताया कि एक ड्राफ्ट योजना (Draft Plan) तैयार कर ली गई थी. लेकिन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) ने आपत्ति जताई. ऐसे में बीमा कंपनियों का कहना है कि इलाज से पहले उन्हें वाहन की बीमा पॉलिसी चेक करने का अधिकार चाहिए.

यानी सड़क पर घायल व्यक्ति दम तोड़ दे, लेकिन पहले बीमा जांच होगी! सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं दिखा.

गोल्डन ऑवर क्यों है इतना महत्वपूर्ण?
'गोल्डन ऑवर' का मतलब होता है- दुर्घटना के बाद का पहला एक घंटा, जिसमें अगर घायल को तुरंत सही इलाज मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है. मोटर वाहन अधिनियम की धारा 2 (12-ए) इस 'गोल्डन ऑवर' को परिभाषित करती है. लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत में हर साल हजारों लोग सड़क हादसों में इस एक घंटे में उचित इलाज न मिलने की वजह से दम तोड़ देते हैं.

अब आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि एक सप्ताह के भीतर योजना लागू करनी होगी. 9 मई तक अधिसूचित योजना का दस्तावेज अदालत में पेश करना होगा. साथ ही 13 मई को अगली सुनवाई होने वाली है.

अगर इस बार भी देरी हुई तो केंद्र सरकार को अवमानना (Contempt of Court) का सामना करना पड़ सकता है.

लोगों में गुस्सा और सवाल
सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर भारी नाराजगी देखी जा रही है. ट्विटर (अब X) पर कई लोगों ने सवाल उठाए, "सिर्फ हाईवे बनाने से क्या होगा जब मरने के बाद इलाज मिले?", "बजट में इलाज के लिए फंड क्यों नहीं बढ़ाए जाते?", "बीमा कंपनियों का दबदबा आम आदमी की जान से बड़ा कैसे हो गया?"

लोग उम्मीद कर रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद अब सरकार जल्द ही 'गोल्डन ऑवर' में इलाज की गारंटी दे पाएगी.