scorecardresearch

Bilgram War: 40 हजार सैनिकों के सामने 15 हजार लड़ाके! बिना एक भी सैनिक गंवाए Sher Shah Suri ने Humayun को भारत के बाहर खदेड़ा

Battle of Kannauj: कन्नौज की लड़ाई को बिलग्राम का युद्ध भी कहते हैं. हुमायूं और शेरशाह सूरी की सेनाएं एक महीने तक गंगा किनारे डटे रहे. इसके बाद हुमायूं की सेनाओं का मनोबल टूट गया. हुमायूं की सेना ने उसका साथ छोड़ दिया. जिसकी वजह से इस युद्ध में उसको हार का सामना करना पड़ा था.

कन्नौज के युद्ध में हुमायूं को हार का सामना करना पड़ा था कन्नौज के युद्ध में हुमायूं को हार का सामना करना पड़ा था

बाबर की सेना का वो सिपाही, जिसने हिंदुस्तान पर शासन करने का ख्वाब देखा और उसे हकीकत में भी बदला. उसका नाम शेरशाह सूरी था. शेरशाह ने बाबर के ही बेटे हुमायूं को हराया और उसे भारत के बाहर खदेड़ दिया. शेरशाह और हुमायूं के बीच जंग 17 मई 1540 को हुआ था. इस युद्ध में हार के बाद हुमायूं आगरा भागकर पहुंचा और खजाने के कुछ धन लेकर अपनी बेगम दिलदार के साथ लाहौर भाग गया. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब्बास सरवानी अपनी किताब 'तारीख-ए-शेरशाही' में इसका जिक्र किया है.

बिलग्राम में गंगा किनारे डटी रहीं दोनों सेनाएं-
हुमायूं और शेरशाह सूरी की सेनाओं ने बिलग्राम में गंगा किनारे अपना-अपना पड़ाव डाला था. दोनों तरफ की सेनाएं बिना युद्ध किए करीब एक महीने तक गंगा के किनारे डेरा डाले रहीं. बिना युद्ध के इतने दिनों तक रहने पर शेरशाह सूरी की सेना को कोई नुकसान नहीं हुआ. लेकिन हुमायूं की सेना में राशन की कमी होने लगी. जिससे सैनिक हुमायूं का साथ छोड़ने लगे थे. हुमायूं इस युद्ध में अपने भाइयों का साथ चाहता था. हालांकि उनका साथ नहीं मिला. इसके बाद शेरशाह की ताकतवर सेना के सामने हुमायूं की सेना टिक नहीं पाई.

हुमायूं से बड़ी थी शेरशाह की सेना-
मई 1540 को कन्नौज में हुमायूं और शेरशार सूरी की सेनाएं आमने-सामने थीं. हुमायूं की सेना शेरशाह की तुलना में बहुत बड़ी थी. हुमायूं की सेना में 40 हजार से ज्यादा सैनिक थे, जबकि शेरशाह की सेना में सिर्फ 15 हजार सैनिक थे. इस युद्ध को बिलग्राम का युद्ध भी कहा जाता है. युद्ध शुरू होने से पहले ही हुमायूं के सैनिकों ने उसका साथ छोड़ दिया. इस तरह से बिना कोई सैनिक गंवाए शेरशाह से जीत हासिल कर लिया.

आगरा छोड़कर भाग गया हुमायूं-
जब हुमायूं मैदान छोड़कर भागने लगा तो शेरशाह सूरी ने उसके पीछे अपने सैनिकों को लगा दिया. सूरी ने इसकी जिम्मेदारी ब्रह्मादित्य गौड़ को सौंपी. हालांकि अब्बास सरवानी की किताब के मुताबिक गौड़ को साफ निर्देश था कि हुमायूं से लड़ना नहीं है, बल्कि सिर्फ उसका पीछा करना है. हुमायूं भागते हुए आगरा पहुंचा और अपनी बेगम दिलदार को लेकर लाहौर भाग गया.

लाहौर में भी शेरशाह के सैनिकों ने पीछा नहीं छोड़ा-
जब हुमायूं लाहौर पहुंचा तो उसके पीछे शेरशाह सूरी ने ब्रह्मादित्य और ख्वास खा को भेजा. हालांकि बारिश के चलते शेरशाह सूरी के सैनिक को लाहौर पहुंचने में देरी हुई. लेकिन जब हुमायूं को पता चला कि उसके शेरशाह सूरी के सैनिक आने की खबर मिली तो वो वहां से भी भाग निकला. बीच रास्ते में हुमायूं और उसके भाई कामरान के बीच लड़ाई हुई. उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए.  अब हुमायूं के साथ बहुत कम सैनिक बचे. इन सैनिकों के साथ ही हुमायूं हिंदुस्तान की सीमा के बाहर चला गया. झेलम नदी के पश्चिमी किनारे से शेरशाह सूरी के सैनिकों ने उसका पीछा करना छोड़ दिया.

खाली हाथ हो गया था हुमायूं-
शेरशाह सूरी के हारने के बाद हुमायूं की हालत ऐसी हो गई थी कि वो बिना राज्य का राजा रह गया था. काबुल और कंधार उसके बाई कामरान के हाथों में चला गया था. हुमायूं को भारत छोड़कर सिंध भाग गया. उधर, शेरशाह सूरी ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया और सूर वंश की स्थापना की.

ये भी पढ़ें: