ट्रेन से कोच से इंसानों के वेस्ट ट्रैक पर न जाए इसके लिए भारतीय रेलवे कोच के अंदर बायो टॉयलेट बनाने पर काम कर रहा है. अब इसी कड़ी में सेंट्रल रेलवे ने अपनी सभी ट्रेनों के कोच में बायो टॉयलेट बनवा लिए हैं. ये नार्मल टॉयलेट से काफी अलग होने वाले हैं. दरअसल, ये कदम "स्वच्छ भारत मिशन" के एक हिस्से के रूप में उठाया गया है. सेंट्रल रेलवे ने अपने सभी कोच में बायो टॉयलेट बनाने का काम पूरा कर लिया है. बता दें, इस वक्त सेंट्रल रेलवे 3079 कोचों के साथ 103 ट्रेनें चला रहा है. इन सभी डिब्बों में 11,530 बायो-टॉयलेट लगे हैं.
बायो टॉयलेट का क्या फायदा?
इसके अलावा, सेंट्रल रेलवे में उपलब्ध सभी स्पेयर डिब्बों का इस्तेमाल आमतौर पर विशेष ट्रेनें चलाने के लिए किया जाता था, एफटीआर ट्रेनों में भी बायो-टॉयलेट लगाए गए हैं. इससे यह सुनिश्चित हो सकेगा कि ट्रेन के कोच से गिरने वाला मानव अपशिष्ट (Human Waste) ट्रैक पर न जाए. इसके अलावा, मानव अपशिष्ट के कारण रेल और फिटिंग पर जल्द जंग भी नहीं लगेगा.
सेंट्रल रेलवे स्टेशनों पर रखी गई हैं प्लास्टिक बोतल क्रशिंग मशीन
फ्री प्रेस जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे ने स्टेशनों में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे को इको-फ्रेंडली तरीके से कम करने, रीसायकल करने और डिस्पोज यानि निपटाने के लिए कई पहल की हैं. प्लास्टिक कचरे के इको-फ्रेंडली निपटान की पहलों के बीच सेंट्रल रेलवे ने अपने 37 रेलवे स्टेशनों पर कुल 48 प्लास्टिक बोतल क्रशिंग मशीन (PBCM) रखी गई हैं.
डिवीजन-वार ब्रेक-अप के हिसाब से देखें तो मुंबई डिवीजन के सभी टर्मिनस स्टेशनों और प्रमुख उपनगरीय स्टेशनों सहित 11 स्टेशनों पर 15 मशीनें, सोलापुर डिवीजन के 10 स्टेशनों पर 14 मशीनें, भुसावल डिवीजन में 8 स्टेशनों पर 9 मशीनें, 4 स्टेशनों पर 6 मशीनें रखी गई हैं. वहीं, नागपुर मंडल में और पुणे मंडल के 4 स्टेशनों पर 4 मशीनें हैं.
बता दें, इन मशीनों ने प्लास्टिक कचरे विशेषकर रेलवे परिसरों में फैली पानी की बोतलों के खतरे को कम किया है. कई बार पटरियों पर फेंकी गई इन प्लास्टिक की बोतलों से नालियां आदि बंद हो जाती हैं, अब मशीनों की मदद से काफी हद तक बचा जा सकता है.