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Enzene Biosciences: रंग लाई इस वैज्ञानिक की मेहनत, कैंसर की सस्ती दवा अगले साल तक बाजार में आएगी

वैज्ञानिक हिमांशु गाडगिल ने अमेरिका की हाई प्रोफाइल नौकरी छोड़ी और भारत के लोगों को कैंसर की सस्ती दवाएं मुहैया कराने के मकसद से भारत लौटे.

डॉ. हिमांशु गाडगिल डॉ. हिमांशु गाडगिल

भारत में कैंसर के मरीज काफी बढ़ रहे हैं, कैंसर जितना आम हुआ है, इसका इलाज उतना ही पहुंच से दूर होता जा रहा है. भारत में कैंसर से इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाएं औसत भारतीय रोगियों की पहुंच से बाहर हैं. कैंसर के शुरुआती चरण के मरीज केवल दवाओं पर ही 6 लाख रुपये तक खर्च कर देते हैं. लास्ट स्टेज कैंसर के लिए ये दवाएं और मंहगी होती हैं. अगर मरीज गरीब परिवार से है, तो पहले तो पूरा इलाज ही नहीं मिल पाता. अगर इलाज कराया भी जाए, तो उस पर आने वाले खर्च से परिवार कई सालों के लिए कर्ज में डूब जाएगा.

देश में कैंसर के इलाज को सस्ता बनाने की दिशा में पुणे बेस्ड बायोटेक फर्म एनजीन बायोसाइंसेज ने एक बेहतरीन कदम उठाया है. कंपनी ने Bevacizumab लॉन्च की घोषणा की है. ये दवा मेटास्टेटिक कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा अवास्टिन का बायोसिमिलर विकल्प है. सीईओ डॉ. हिमांशु गाडगिल ने कहा, "हमें यकीन है कि दवाओं की कीमतों में की गई कटौती से हजारों मेटास्टैटिक कोलोरेक्टल कैंसर रोगियों को बहुत फायदा होगा, जिससे कैंसर के इलाज को अधिक सुलभ और किफायती बनाने के हमारे मिशन को समर्थन मिलेगा.

कैसे शुरू हुआ ये सफर

इस कंपनी के सीईओ और वैज्ञानिक हिमांशु गाडगिल भारत के लोगों को कैंसर की सस्ती दवाएं मुहैया कराने के मकसद से भारत आए. वे अमेरिका में हाई प्रोफाइल नौकरी करते थे. 2009 में डेग्यू से होने वाली इंटरनल ब्लीडिंग की वजह से गाडगिल के पिता की मौत हो गई थी. उस वक्त वो अपने पिता के साथ नहीं थे. इस घटना ने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया. गाडगिल के पिता के इलाज में लाखों का खर्च आया था. डॉक्टर्स ने कुछ ऐसी दवाएं भी दीं जिसकी जरूरत नहीं थी. मिडिल क्लास फैमिली के लिए हॉस्पिटल का बिल चुकाना और सस्ता इलाज कराना किसी सपने से कम नहीं है. लोगों की इसी परेशानी को समझते हुए गाडगिल 2011 में इंडिया आए और किफायती दवाएं मुहैया कराने पर काम शुरू कर दिया. 

भारत आकर गाडगिल ने अहमदाबाद स्थित दवा निर्माता इंटास बायोफार्मास्युटिकल्स ज्वॉइन की, यहां उन्होंने कई प्रकार के कैंसर, संक्रमण और अन्य गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बायोसिमिलर दवाएं प्रोड्यूस करने में मदद की.

2015 में वे इंडिया की टॉप फार्मास्युटिकल कंपनियों में से एक अल्केम लैब्स के स्वामित्व वाली कंपनी एनजीन बायोसाइंसेज में चले गए. सीईओ के रूप में उन्होंने अपना ध्यान बायोसिमिलर पर ज्यादा फोकस किया. खासतौर पर कैंसर की बायोसिमिलर दवाओं पर, क्योंकि कैंसर की दवाएं महंगी होने के कारण रोगियों की पहुंच से बाहर होती हैं.

कैंसर की दवाओं की कीमतें कम लेकिन सस्ती नहीं

भारत में कैंसर की दवाओं की कीमतें कम हैं लेकिन फिर भी सस्ती नहीं हैं. मुंबई स्थित मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट अमोल अखाडे के अनुसार, फर्स्ट स्टेज के कैंसर के इलाज की लागत 5 लाख रुपये से 6 लाख रुपये है, जो लास्ट स्टेज तक आते-आते काफी बढ़ जाती है. भारत में 2022 तक 1.46 मिलियन से ज्यादा कैंसर के मरीज हैं. हर साल इस बीमारी से 800,000 लोग मरते हैं. देश में कैंसर से होने वाली मौतों को कम करने गाडगिल ने ऐसी टेक्नॉलजी पर काम किया जिसमें दवाओं की गुणवत्ता से समझौता किए बिना इसकी लागत में कटौती की जा सके.

बायोटेक दवाएं बनाना कैमिकल बेस्ड जेनेरिक दवाएं बनाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है. इसके लिए गाडगिल वह ऐसी तकनीक लेकर आए, जिसके लिए एनजीन के पास पेटेंट है. एनजीन का मेन्यूफैक्चिंग प्रोसेस प्रोडक्टिविटी को पांच से 10 गुना तक बढ़ाने में मदद करता है. कंपनी ने अपने प्रोडक्ट के लिए न केवल भारतीय दवा निर्माताओं कंपनियों के साथ पार्नरशिप की है, बल्कि यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया की कंपनियों के साथ भी alliance किया है.

कम कीमत पर उपलब्ध होगी bevacizumab

इसकी मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी के regulatory audit में अभी कुछ महीने लगेंगे और 2024 की शुरुआत में इसका रजिस्ट्रेशन किया जाएगा. भारत में bevacizumab की कुल बिक्री ₹260 करोड़ होने का अनुमान है. कई दवा निर्माता कंपनियां 100 मिलीग्राम इंजेक्शन की कीमत 27,000 रुपये से 11,000 रुपये के बीच रखती हैं. इसकी अन्य खुराक और फॉर्मूलेशन भी अलग-अलग कीमतों पर उपलब्ध हैं. इस दवा का इस्तेमाल non-squamous non-small cell लंग कैंसर और ग्लियोब्लास्टोमा के इलाज में किया जा सकता है.