हमारे देश में लोग खाने को बड़े ही चाव से खाते हैं, जितने राज्य उतनी ही विभिन्नताएं और खाने की विशेषताएं इसलिए हर राज्य अपने खाने पीने की वजह से खास तौर पर जाना जाता है. जैसे आगरा का पेठा, मथुरा के पेड़े वैसे हरियाणा और राजस्थान राज्य की बात की जाए तो यहाँ पर बिश्नोई समाज के लोग "कढी" और "चूरमा" बनाने के लिए जाने जाते है. आज आपको हिसार जिले के "बिश्नोई ढाबे" के बारे में बताएंगे जहां की कढ़ी और चूरमा के दीवाने हमारे देश के दो पूर्व प्रधानमंत्री और हरियाणा के तमाम मुख्यमंत्री दीवानी रहे हैं.
पूरे हरियाणा में मशहूर है ये ढ़ाबा
बिल्कुल देसी सा दिख रहा यह आम सा ढाबा अपनी कढी और चूरमा के लिए न सिर्फ हिसार जिले में बल्कि पूरे हरियाणा में जाना जाता है. लोग बड़ी ही बेसब्री से सुबह से ही इस ढाबे के खुलने का इंतजार करते हैं. ढाबे की खासियत यह है कि यहां पर सिर्फ और सिर्फ शुद्ध शाकाहारी भोजन ही बनाया जाता है और यह तमाम खाना चूल्हे की लकड़ी पर मीठी आंच पर पकाया जाता है. इस ढाबे का सिर्फ एक ही मकसद है कि जो भी ग्राहक आए संतुष्ट और खुश होकर जाए और इसलिए यह ढाबा बड़े-बड़े फाइव स्टार रेस्टोरेंट को मात देता है.
24 घंटे रहती है भीड़
अगर हिसार जिले की बात की जाए तो यह बिल्कुल राजस्थान के साथ लगता जिला है और इसलिए यहां पर तापमान भी पूरे हरियाणा में गर्मियों में सबसे ज्यादा होता है लेकिन इतनी गर्मी और उमस होने के बावजूद बिना एसी होने के बावजूद इस ढाबे में 24 घंटे भीड़ लगी रहती है.
1954 में हुई ढाबे की शुरुआत
ढाबे की शुरुआत साल 1954 में देश की आजादी में स्वतंत्रता सेनानी राम पटेल ने की थी आज उनकी तीसरी पीढ़ी इस ढाबे को चला रही है. बिश्नोई ढाबे के मालिक सुभाष बिश्नोई ने आज तक से खास बातचीत में बताया कि राम पटेल जी ने आम लोगों के लिए नो लॉस नो प्रॉफिट पर इस ढाबे की शुरुआत की थी लेकिन वक्त के साथ-साथ अब बिश्नोई ढाबा हिसार शहर का एक जाना माना लैंडमार्क है और यहां की कढ़ी और चूरमा अपने आप में एक बड़ा ब्रांड भी.
आज भी वैसा ही है स्वाद
सुभाष बिश्नोई बताते हैं कि यहां की जो खास विशेषता है वह यही है कि अभी भी यहां पर जैसे 66 साल पहले कढ़ी और चूरमा बनाया जाता था आज भी उसी अंदाज में उसी जगह पर वैसे ही बनाया जाता है और लोगों को परोसा जाता है. यहां की जो कढी है वह पूरी तरह से देसी गाय के दूध से मक्खन निकाल कर तैयार की जाती है और शुद्ध देसी घी में छौंक बनाकर तैयार की जाती है. कढी में ना कोई मसाला डाला जाता है और सिर्फ लकड़ी के चूल्हे पर ही चढ़ाकर और पकाकर इसे तैयार किया जाता है.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी था पसंद
सुभाष बिश्नोई बताते हैं कि इस कड़ी और चूरमा के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी दीवाने रहें हैं.सुभाष बताते हैं कि एक बार जब हिसार के नजदीक अमरोहा में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रैली थी तो इंदिरा का खाना यहीं से ले जाया गया था उसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी इस ढाबे की कढ़ी और चूरमा को चख चुके हैं. हरियाणा के तमाम पूर्व मुख्यमंत्री चाहे देवीलाल हो, भजनलाल हो या फिर ओमप्रकाश चौटाला सभी जब भी हिसार आए हैं तो इस कढी और चूरमा को जरूर खाते रहे हैं.
सुभाष बिश्नोई बताते हैं कि जो चूरमा है उसे देसी घी बाजरे की रोटी और शक्कर से मिलाकर तैयार किया जाता है और यह इस ढाबे की स्वीट डिश यानी कि डेजर्ट है सुभाष बताते हैं कि कोई भी मिठाई 1 से 2 दिन में खराब हो सकती है लेकिन उनके यहां का बना चूरमा एक हफ्ते तक बिना फ्रिज में रखे भी खराब नहीं होता.