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Assembly Elections जीतकर आए BJP के 10 सांसदों ने छोड़ी सांसदी, जानें इस्तीफा देने के बाद कौन सी पावर बचती है और कितने अधिकार छिन जाते हैं?

Assembly Election 2023 Result: सांसद बाबा बालकनाथ, नरेंद्र सिंह तोमर, दीया कुमारी, प्रह्लाद सिंह पटेल और राज्यवर्धन सिंह राठौड़… ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की है. अब ये सांसद से विधायक बनने के लिए तैयार हैं. 

विधायक बनने पर सांसद से दिया इस्तीफा (फाइल फोटो) विधायक बनने पर सांसद से दिया इस्तीफा (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • भाजपा के दो और सांसद जल्द दे सकते हैं इस्तीफा

  • मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली है बीजेपी को जीत

Member of Parliament's Power After Resign: मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने भले ही मुख्यमंत्री को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन चुनाव में जो सांसद जीतकर आए हैं, उन्होंने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. बुधवार को ऐसे 10 सांसदों ने इस्तीफा सौंपा है. अभी बीजेपी के दो सांसद बाबा बालकनाथ और रेणुका सिंह ने इस्तीफा नहीं दिया है, वह भी बाद में इस्तीफा दे सकते हैं. आइए जानते हैं इस्तीफा देने के बाद कौन सी पावर बचती है और कितने अधिकार छिन जाते हैं?

इस नियम के चलते देना पड़ा इस्तीफा
संविधान के अनुच्छेद 101 (2) में प्रावधान है कि विधायक बनने के नोटिफिकेशन जारी होने के 14 दिन के भीतर सांसद को इस्तीफा देना होगा. इसी तरह यदि कोई विधायक लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बनता है तो उसे 10 दिन में एक सदन से इस्तीफा देना होगा. यदि ऐसा नहीं होता है तो उसकी सदस्यता खुद-ब-खुद खत्म हो जाती है. संविधान के अनुच्छेद 101 (1) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 68 (1) में यह स्पष्ट रूप से लिखा हुआ है. 

दो लोकसभा या दो विधान सभाओं से एक साथ चुनाव लड़ने और जीतने में नोटिफिकेशन के 14 दिन के अंदर किसी एक सीट से इस्तीफा देने का नियम है. असल में विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ होती है. यदि कोई सदस्य लोकसभा सदस्य रहते हुए विधान सभा में शपथ लेता है तो गलत है. 14 दिन वाला कानून लागू हो जाएगा. हालांकि, विधानसभा में शपथ का कोई समय तय नहीं है. लोकसभा अध्यक्ष को सूचना देकर वे शपथ ले सकते हैं लेकिन 14 दिन के अंदर इस्तीफा तो देना पड़ेगा अन्यथा खुद ही लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो जाएगी.

सांसदों को क्‍या पावर और सुविधाएं मिलती हैं
एक सांसद के पास कई तरह की पावर होती हैं. वो सदन में प्रश्‍न काल से लेकर शून्‍य काल तक जनता के मुद्दे उठाते हैं और सवाल पूछते हैं. आमतौर पर लोगों को लगता है कि एक सांसद का काम अपने क्षेत्र में विकास कराना और कानून बनाना होता है, लेकिन इनके कार्यक्षेत्र का दायरा इससे कहीं ज्‍यादा है. देश के लिए पॉलिसी तैयार करना और जनसरोकारों के हर बड़े मुद्दे पर एक सांसद का दखल रहता है. 

संसदीय कमेटी का होते हैं अहम हिस्‍सा 
सांसद संसदीय कमेटी का अहम हिस्‍सा होते हैं. किसी तत्‍कालिक घटना की जांच से लेकर बिल पर विमर्श करने का अध‍िकार इन्‍हीं संसदीय कमेटी के पास रहता है. इसके अलावा सांसद केंद्रीय बजट में सुझाव भी दे सकते हैं. सांसदों के पास एक विशेषाध‍िकार भी होता है. सदन में कार्यवाही के दौरान वो अपनी बात बिना किसी मानहानि के डर के रख सकते हैं. 

सांसदों के दबाव बनाने पर नई नीतियां बनती भी हैं और नीतियों में बदलाव भी होता है. इतना ही नहीं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में सांसद की भूमिका अहम होती है. सदन में जिस दल के पास जितने ज्‍यादा सांसद होते हैं उसी पक्ष के उम्‍मीदवार को इन पदों पर चुना जाता है. हालांकि कई बार राष्‍ट्रपति और उपराष्‍ट्रपति का चुनाव निर्विरोध भी होता है. सांसदों को अपने पद पर रहते हुए कई तरह की सुविधाएं मिलती हैं. जैसे आवास मिलता है, यात्रा में छूट और आरक्षण का लाभ मिलता है. इसके अलावा चिकित्‍सीय सुविधाएं मिलती हैं.

इस्‍तीफा देने के बाद सांसद के पास कितनी शक्‍त‍ियां बचती हैं और कितनी छिन जाती हैं?
पद से इस्‍तीफा देने के बाद एक सांसद के पास से लगभग सभी शक्‍त‍ियां छिन जाती हैं. हालांकि, इस्‍तीफे के बाद भी कुछ अध‍िकार इनके पास बने रहते हैं. जैसे- चिकित्‍सीय सुविधाओं में इनको राहत मिलती है. पेंशन मिलती है. संसद में आ-जा सकते हैं, लेकिन किसी तरह की कार्यवाही में हिस्‍सा नहीं ले सकते. न तो सवाल उठा सकते हैं और न ही कार्यवाही के दौरान सदन में मौजूद रह सकते हैं.

कहां से किसने दिया इस्तीफा
राजस्थान 
1. राज्यवर्धन सिंह राठौड़
2. दीया कुमारी
3. किरोड़ी लाल मीना (राज्यसभा सदस्य)

मध्य प्रदेश
1. नरेंद्र तोमर
2. प्रहलाद पटेल
3. राकेश सिंह
4. रीति पाठक
5. उदय प्रताप सिंह

छत्तीसगढ़
1. गोमती साईं
2. अरुण साव

इस्तीफा देने के बाद भी बने रह सकते हैं केंद्रीय मंत्री
विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने चार केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते और केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह को मैदान में उतारा था. केंद्रीय मंत्रियों में फग्गन सिंह कुलस्ते को छोड़कर बाकी तीनों ने चुनाव में जीत हासिल की है. अब सवाल उठता है कि क्या इस्तीफा देने के बाद भी ये केंद्रीय मंत्री बने रह सकते हैं. जी हां, इसके लिए एक तरीका है. 

संवैधानिक प्रावधानों के तहत मंत्री पद पर बिना किसी सदन का सदस्य बने भी रहा जा सकता है. हालांकि, छह महीने की समय सीमा में उन्हें लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बनना होता है. इस नियम के चलते मोदी सरकार के ये चारों मंत्री महफूज रह सकते हैं, क्योंकि अगले छह महीने से पहले ही लोकसभा चुनाव हो जाएगा और नए मंत्रिमंडल का गठन भी हो जाएगा. इसका मतलब कि मंत्री पद पर उनका कार्यकाल छह महीने से कम ही है. 

2024 में होना है लोकसभा चुनाव
रिप्रेजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट में साल 1996 में संशोधन किया गया था. इसकी धारा 151A के मुताबिक खाली हुई सीट पर चुनाव आयोग को 6 महीने के भीतर चुनाव कराने की कानूनी व्यवस्था निश्चित की गई है. वह चाहे विधानसभा की सीट हो या लोकसभा की. यदि किसी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो वहां उपचुनाव हो सकते हैं, लेकिन लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया तो शायद उपचुनाव की नौबत नहीं आएगी. क्योंकि छह महीने से कम समय में ही लोकसभा चुनाव 2024 पूरा हो जाएगा.