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MP Results 2023: लाडली बहना योजना, थोक में महिला वोट, PM Modi का जादू... मध्य प्रदेश में इन वजहों से फिर खिला 'कमल', BJP की प्रचंड जीत

Big Reasons For BJP Victory: मध्य प्रदेश में एक बार फिर बीजेपी का कमल खिल गया. मोदी-शाह की रणनीति और शिवराज की लाडली बहना योजना ने एक बार फिर सत्ता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका दिखाई. भाजपा के कार्यकर्ता जीत का उत्साह मना रहे हैं.

Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan
हाइलाइट्स
  • मोदी-शाह की रणनीति फिर आई काम

  • एमपी में भाजपा की सरकार

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तस्वीर लगभग साफ हो गई है. बीजेपी बड़ी बहुमत की तरफ बढ़ रही है. कांग्रेस 2018 के आंकड़े से भी काफी पीछे चल रही है. कई बड़े नेता अपनी सीट बचाने को लेकर जद्दोजहद कर रहे हैं. आइए जानते है मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत की बड़ी वजहों के बारे में.

इन वजहों से भाजपा को फिर मिली सत्ता

1. लाडली बहना योजना का मिला फायदा 
इस बार बीजेपी लहर के पीछे लाड़ली बहना योजना को मुख्य वजह माना जा रहा है. इस योजना ने शिवराज सिंह चौहान की सियासत के लिए संजीवनी का भी काम किया है.  लाड़ली बहना योजना 15 मार्च 2023 को लॉन्च की गई थी. योजना में घर की हर महिलाओं को सहायता राशि के तौर पर 1 हजार रुपए प्रतिमाह देने की व्यवस्था है. कर्नाटक चुनाव में हार के बाद शिवराज सिंह चौहान महिलाओं को रिझाने में जुट गए. इसके लिए सबसे पहले लाड़ली बहना स्कीम को धरातल पर उतारने का फैसला किया गया. शिवराज ने इसकी ब्रांडिंग भी जमकर की. 

मध्य प्रदेश सरकार के मुताबिक इस योजना से वर्तमान में 1.25 करोड़ महिलाएं जुड़ी हुई हैं. सरकार के मुताबिक पहली बार महिलाओं के खाते में 1 हजार रुपए 10 जून 2023 को भेजा गया था. अब यह राशि 1250 रुपए भेजी जा रही है. पूरे चुनाव में शिवराज ने लाड़ली बहना को बड़ा मुद्दा बनाया और यह प्रचार किया कि अगर बीजेपी जाएगी, तो इस योजना को कमलनाथ बंद कर देंगे. कांग्रेस इसका काउंटर पूरे चुनाव में नहीं ढूंढ पाई. कांग्रेस ने लाड़ली बहना के काउंटर में नारी शक्ति योजना की घोषणा की, लेकिन पार्टी इस योजना का जमकर प्रचार नहीं कर पाई. इतना ही नहीं, योजना का स्वरूप भी लाड़ली बहना से मिलता-जुलता ही था, जिस पर वोटरों ने भरोसा नहीं किया. इस बार के चुनाव में लाडली बहनों ने भाजपा को जमकर वोट किया और जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई. 

2. महिला वोटरों ने कांग्रेस का खेल किया खराब 
यह पहली बार था, जब मध्य प्रदेश में 76 प्रतिशत महिलाओं ने वोटिंग किया. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य में महिला वोटरों की कुल संख्या 2.72 करोड़ है. आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए, तो इस चुनाव में करीब 2 करोड़ महिला वोटरों ने मतदान किया है. अगर इस आंकड़ों को 2018 से तुलना करें तो यह पिछली बार से 18 लाख ज्यादा है. यानी 2018 के मुकाबले इस बार 18 लाख ज्यादा महिला वोटरों ने मतदान किया. चुनाव आयोग के मुताबिक राज्य के 34 सीटों पर पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया. जानकारों का कहना है कि बीजेपी के कोर वोटरों के साथ मिलकर महिला वोटरों ने कांग्रेस का खेल खराब दिया. 

3. सीएम उम्मीदवार का ऐलान नहीं करने की रणनीति कर कर गई काम 
पिछले 15 सालों में पहली बार मध्य प्रदेश में बीजेपी ने शिवराज के चेहरे को आगे नहीं किया था. बिना सीएम उम्मीदवार का ऐलान किए चुनावी मैदान में उतरना भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हुआ. सीएम पद को लेकर नेताओं के बीच बयानबाजी नहीं हुई. पूरे चुनाव के दौरान पार्टी में एकता बनी रही. ग्राउंड पर संगठन की हाड़ तोड़ मेहनत काम कर गई. 

4. पीएम मोदी के चेहरे को आगे रखकर लड़ा चुनाव
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में कई केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों को चुनाव मैदान में जरूर उतारा लेकिन चुनाव पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर लड़ा गया. चुनाव प्रचार में भी पीएम मोदी लगातार जुटे रहे. उन्होंने मुख्य विपक्षी कांग्रेस पर जोरदार हमले किए और केंद्र की बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश में 15 रैलियां कीं. इसके अलावा इंदौर में एक रोडशो भी किया. रतलाम, सिवनी, खंडवा, सीधी, दमोह, मुरैना, गुना, सतना, छतरपुर, नीमच, बड़वानी, इंदौर, बैतूल, शाजापुर और झाबुआ में की गईं इन चुनावी रैलियों में प्रदेश के करीब सभी इलाकों को कवर किया गया. इसका असर चुनाव परिणाम पर दिखा.

5. बड़े उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने का दिखा असर
भाजपा ने तीन केंद्रीय मंत्री सहित सात सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को विधानसभा का टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा. भाजपा ने इन्हें अलग-अलग क्षेत्रों से उतारा, जिसका सियासी फायदा मिला. केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रल्हाद पटेल के अलावा पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव में उतारा था. इसके साथ ही पार्टी ने लोकसभा सांसद रीति पाठक, राकेश सिंह, गणेश सिंह और उदय प्रताप सिंह को टिकट दिया था. इन दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतार कर पार्टी ने सीएम शिवराज के साथ-साथ आम वोटरों को भी संदेश दे दिया कि उसके पास मुख्यमंत्री पद के लिए कई विकल्प हैं. इसका भी फायदा इस चुनाव में भाजपा को मिला

6. 'मामा' शिवराज की लोकप्रियता कमलनाथ पर पड़ी भारी 
राज्य में भाजपा ने सीएम चेहरा किसी को घोषित नहीं किया था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान चुनाव को लीड कर रहे थे. शिवराज बनाम कमलनाथ के बीच यह जंग मानी जा रही थी. महिलाओं के बीच शिवराज की अपनी एक लोकप्रियता है, जबकि कमलनाथ की उस तरह से पकड़ नहीं है. शिवराज जनता के बीच पहली पसंद बनकर उभरे. 

7. शाह की रणनीति और सोशल इंजीनियरिंग का भी कमाल
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चुनावी रणनीति की कमान संभाल रखी थी. उन्होंने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को राज्य का प्रभारी बनाया. इसके बाद शाह के मागर्शदन में यादव की टीम काम करती रही. इस टीम ने कांग्रेस की मजबूत मानी जाने वाली सीटों पर माइक्रो लेवल पर बूथ प्रबंधन किया. इतना ही नहीं चुनावी जनसभाओं के ज्यादा बैठकें करके नाराज नेताओं को मनाया, जिसका फायदा चुनाव में मिला. इस तरह से केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति भाजपा की जीत की अहम वजह मानी जा रही है.

8. किसानों पर फोकस
बीजेपी ने विधानसभा चुनाव के लिए किसानों पर फोकस किया था. बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में धान का समर्थन मूल्य 3100 रुपए प्रति क्विंटल में खरीदने की घोषणा की थी. वहीं, कांग्रेस इस मामले में भी बीजेपी से पीछे रह गई.

9. नाराज नेताओं को मनाने में सफल रही पार्टी
बीजेपी ने रणनीति के तहत राज्य में आचार संहिता लगने से पहले ही अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी. सूची जारी होने के बाद कई सीटों पर विरोध भी सामने आया लेकिन बीजेपी ने वक्त रहते कई सीनियर नेताओं को नामांकन से पहले मना लिया जिसका असर चुनाव परिणाम पर दिखाई दिया. वहीं, कांग्रेस के कई बागी नेता टिकट नहीं मिलने से अलग-अलग पार्टियों या निर्दलीय चुनाव लड़ गए. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी का राष्ट्रीय संगठन पूरी तरह से सक्रिय रहा.

10. आदिवासी वोट भाजपा के पक्ष में
देश की सबसे बड़ी आदिवासी आबादी मध्य प्रदेश में है. सरकार बनाने के लिए भी उनके वोट निर्णायक रहते हैं. 84 सीटों पर आदिवासी वोटर किसी को भी जीताने- हराने का माद्दा रखते हैं. 2018 के चुनावों में आदिवासियों की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ी थी. इस दफे उसने बीते दो सालों में गोंड रानी कमलापति, दुर्गावती, तांत्या मामा के प्रतीकों के जरिए आदिवासी वोटों को साधने की कोशिश की. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इस मुहिम की अगुवाई की, वहीं कांग्रेस लगातार आदिवासियों पर अत्याचार का मुद्दा उठाती रही. 

जरा और भी गहराई से देखें तो 2018 में बीजेपी इन 84 सीटों में 34 सीटें जीत पाई थी. 2013 में उसका स्कोर 59 था. राज्य में 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, 2003 में जब बीजेपी ने कांग्रेस से सरकार छीनी थी, उस वक्त 41 सीटें आरक्षित थीं, जिसमें बीजेपी ने 37 जीत ली थीं. 2008 में 47 सीटें आरक्षित हो गईं, बीजेपी ने 29 जीतीं कांग्रेस ने 17. 2013 में बीजेपी ने 47 में 31 सीटें जीतीं तो कांग्रेस ने 15. लेकिन 2018 में पासा पलट गया बीजेपी ने मात्र 16 सीटें जीतीं कांग्रेस ने 30 सीटों पर कब्जा जमाया.