अक्सर देखा गया है कि किसी दया याचिका पर अगर राष्ट्रपति कोई फैसला लेते हैं तो उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाती है. इसके लिए कई बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खोला गया है. लेकिन इसको लेकर सरकार ने बड़ा बदलाव किया है. मानसून सत्र में लोकसभा से नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 बिल पास हुआ है. इस बिल के मुताबिक राष्ट्रपति का फैसला ही आखिरी होगा. राष्ट्रपति के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में कोई अपील नहीं की जा सकती.
राष्ट्रपति का फैसला ही आखिरी है-
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल (BNSS) में राष्ट्रपति के फैसलों की न्यायिक समीक्षा को खत्म करने का प्रस्ताव किया गया है. इसमें राष्ट्रपति के फैसले को ही आखिरी फैसला माना गया है. राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जा सकती है. दरअसल अब तक राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील होती थी. अगर किसी दया याचिका पर राष्ट्रपति कोई फैसला देते थे तो उसके खिलाफ दोषी सुप्रीम कोर्ट में अपील करता था. लेकिन नए बिल के मुताबिक ऐसे मामलों में राष्ट्रपति का फैसला ही आखिरी होगा.
नए बिल में क्या है प्रावधान-
बीएनएसएस बिल से सेक्शन 473 के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत दिए गए राष्ट्रपति के आदेश के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं की जा सकेगी और उनका फैसला ही अंतिम फैसला होगा. राष्ट्रपति के फैसले पर किसी भी अदालत में सवाल नहीं उठाया जा सकेगा. जबकि अब तक जो कानून है, उसमें दया याचिका पर राष्ट्रपति के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील हो सकती है. कई मामलों में ऐसा हुआ भी है.
अभी क्या है राष्ट्रपति के फैसले को लेकर प्रावधान-
नए बिल के मुताबिक गुनहगारों की आखिरी उम्मीद खत्म हो जाएगी. राष्ट्रपति का फैसला ही अंतिम होगा. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ये फैसला दिया है कि राष्ट्रपति के फैसलों को चुनौती दी जा सकती है. SC ने कहा था कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को माफी देने का अधिकार है, लेकिन इसमें अनुचित और अस्पष्ट देरी, एकांत कारावास जैसे आधारों पर चुनौती दी जा सकती है.
ये भी पढ़ें: