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Bombay High Court: दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता पति, बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

साल 2012 के नासिक में एक महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने अपने पति के खिलाफ गुजारा भत्ता के लिए एक याचिका दायर की. मजिस्ट्रेट ने हर महीने 2500 रुपए गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया. लेकिन सेशन कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया. महिला ने हाईकोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की. हाईकोर्ट ने पति को गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाया. इसके साथ ही पत्नी को गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए नई याचिका दायर करने की इजाजत भी दी. आपको बता दें कि पीड़ित महिला आरोपी की दूसरी पत्नी है, जो अब उससे अलग रहती है.

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पहली पत्नी के रहते दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि एक व्यक्ति पहली पत्नी से कानूनी तौर पर विवाहित रहते हुए दोबारा शादी की है तो दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता है. कोर्ट ने इस मामले में दूसरी पत्नी के भरण पोषण के लिए हर महीने 2500 रुपए गुजारा भत्ता देने के फैसले को बरकरार रखा है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने इस मामले में महिला को गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए आवेदन देने की भी इजाजत दी है.

दूसरी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश-
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक मामले में माना कि एक व्यक्ति जिसकी पहली शादी कानूनी तौर पर बकरार है, उसने साल 1989 में दूसरी शादी की. अब जब दूसरी पत्नी गुजारा भत्ता की मांग कर रही है तो उसे मेंटनेंस देने से इनकार नहीं किया जा सकता. 55 साल की महिला ने कहा कि मुझे भरोसा दिलाया गया था कि उसने अपनी पहली पत्नी को बेटे को जन्म देने में असमर्थ होने की वजह से तलाक दे दिया है.

गुजारा भत्ता बढ़ाने की याचिका दायर करने की भी इजाजत-
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस राजेश पाटिल ने कहा कि 14 दिसंबर को साल 2015 के मजिस्ट्रेट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें मजिस्ट्रेट ने हर महीने 2500 रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने महिला को गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए नई याचिका दायर करने की इजाजत भी दी है.

हाईकोर्ट ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 में पत्नी और कुछ ऐसे दूसरे रिश्तेदारों को गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं. कोर्ट ने कहा कि जिस महिला से वो बाद में अलग हो गया था, उसे पत्नी के तौर पर माना जाएगा.

हाईकोर्ट ने साल 1999 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि धारा 125 की कार्यवाही में विवाह के प्रूफ का स्टैंडर्ड उतना सख्त नहीं है, जितना कि आईपीसी की धारा 494 के तहत किसी अपराध के मुकदमे में जरूरी है.

क्या है पूरा मामला-
साल 2012 में नासिक में एक महिला ने गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर की. इस मामले में येओला के प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट ने जनवरी 2015 में फैसला सुनाया और महिला को 2500 रुपए महीने गुजारा भत्ता देने का फैसला दिया. आपको बता दें कि पति की मासिक इनकम 50 हजार से 60 हजार के बीच थी. इस फैसले के खिलाफ पति ने निफाड के सेशन कोर्ट में याचिका दायर की. पति ने याचिका में कहा कि उसने उस महिला से कभी शादी नहीं की थी.

अप्रैल 2022 में सेशन कोर्ट ने मजिस्ट्रेट को आदेश को रद्द कर दिया. इसके बाद महिला ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी.महिला ने हाईकोर्ट को बताया कि उसने साल 1989 में उस शख्स से शादी की थी और साल 1991 में एक बेटे को जन्म दिया. महिला ने कोर्ट को बताया कि उसकी शादी के दो साल बाद उसके पति की पहली पत्नी उसके साथ रहने लगी और उसने भी एक बच्चे को जन्म दिया. इसके बाद दूसरी पत्नी ने एक और बेटे को जन्म दिया. दूसरी पत्नी ने अपने बच्चों के स्कूली दस्तावेजों में पिता के तौर पर उस व्यक्ति का नाम दिया है.

महिला ने कोर्ट को बताया कि दूसरे बेटे को जन्म के बाद दोनों में समस्याएं पैदा होने लगी और इसके बाद दोनों अलग रहने लगे. साल 2011 तक उसने भरण पोषण भी दिया. लेकिन इसके बाद पहली पत्नी के कहने पर उसने भरण पोषण देना बंद कर दिया. इसके बाद हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और पति को पिछले 9 साल का बकाया चुकाने के लिए 2 महीने का समय दिया. इसके साथ ही महिला को गुजारा भत्ता बढ़ाने के लिए नई याचिका दायर करने की इजाजत दी.

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