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Bombay High Court: बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला, शादी तक नहीं पहुंच पाया संबंध महज इसलिए नहीं लगाया जा सकता रेप का आरोप

एक मामले पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पुरुष को केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है कि जिस महिला के साथ वह संबंध में था, उसने बलात्कार की शिकायत की जब उनका रिश्ता खराब हो गया और शादी में परिणत नहीं हुआ.

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने रेप को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट का कहना है कि दो वयस्कों के बीच संबंध में खटास पैदा हो जाने से या शादी न होने मात्र से उनमें से एक बलात्कार का आरोप नहीं लगा सकता है. हाईकोर्ट का कहना है कि एक पुरुष को केवल इसलिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता है कि जिस महिला के साथ वह संबंध में था, उसने बलात्कार की शिकायत की जब उनका रिश्ता खराब हो गया और शादी में नहीं बदल पाया. हाई कोर्ट ने एक ऐसे ही व्यक्ति को आरोप मुक्त कर दिया है जो एक महिला के साथ आठ साल से संबंध में था.

क्या था पूरा मामला?
न्यायमूर्ति भारती डांगरे की बेंच उस व्यक्ति की ओर से दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन पर सुनवाई कर रही थी जिसके खिलाफ मुंबई के वर्सोवा पुलिस स्टेशन में 2016 में एफआईआर दर्ज की गई थी. जब मामला सुनवाई के लिए गया, तो उस व्यक्ति ने डिस्चार्ज अर्जी दायर की थी जिसे दिंडोशी सेशन कोर्ट ने खारिज कर दिया था. मामले के तथ्यों को देखने के बाद, न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा, "दो वयस्क एक साथ आते हैं और उनमें रिश्ते बनते हैं, ऐसी स्थिति में किसी को महज इसलिए कृत्य (बलात्कार) का दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि किसी समय दोनों के संबंध ठीक नहीं चले या किसी कारण से यह शादी में परिणत नहीं हो सका."

महिला ने अपनी शिकायत में दावा किया था कि वह उससे सोशल मीडिया साइट ऑरकुट के जरिए मिली थी और उससे प्यार हो गया था. वे आठ साल से साथ थे और यहां तक कि उनके परिवार भी एक-दूसरे के बारे में जानते थे. हालांकि, उसने आरोप लगाया कि शादी का झांसा देकर उसने उसके साथ यौन संबंध बनाए लेकिन बाद में वास्तव में उससे शादी करने से मुकर गया.

क्या था पीठ का फैसला?
हालांकि, बेंच ने कहा कि "बेशक, पीड़िता उस समय वयस्क थी जब रिश्ता भावनात्मक और शारीरिक रूप से बना था. वह उस उम्र में थी जहां यह माना जाता है कि वह अपने कार्य के परिणामों को समझने के लिए पर्याप्त परिपक्व है और अपने स्वयं के संस्करण के अनुसार, कुछ मौकों पर संबंध सहमति से बने थे, लेकिन कभी-कभी यह जबरन था."

न्यायमूर्ति डांगरे ने आगे कहा, "शिकायत को पढ़ने से यह देखा जा सकता है कि आवेदक (आरोपी) ने पीड़िता से शादी करने का वादा किया था, आवेदक को यौन संबंध बनाने की अनुमति देने का एकमात्र कारण नहीं था, जैसा कि उसके अपने संस्करण के अनुसार, वह आवेदक से प्रेम करती थी. वह स्पष्ट रूप से यौन लिप्तता के प्रभाव के प्रति सचेत थी और संबंध काफी समय तक जारी रहा, इस निष्कर्ष को जन्म न दें कि हर मौके पर, केवल शादी के वादे पर ही यौन संबंध स्थापित किया गया था.

दस्तावेजों को देखने के बाद न्यायाधीश ने कहा, "ये दोनों अक्सर मिलते थे और बार-बार यौन संबंध उनके बीच प्रेम संबंध से अलग थे और यह जरूरी नहीं कि हर मौके पर शादी के वादे से पहले हो. ऐसा प्रतीत होता है कि वे कुछ समय तक साथ रहे और फिर वे अलग हो गए. शिकायत में एकमात्र गलत बयान यह है कि आवेदक ने शादी करने से परहेज किया."

न्यायमूर्ति डांगरे ने आगे तर्क दिया कि पीड़िता "शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के संबंधों के प्रति जागरूक होने के लिए पर्याप्त रूप से परिपक्व उम्र की है, और केवल इसलिए कि, संबंध अब खट्टा हो गया है, यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया गया था, प्रत्येक पर अवसर, उसकी इच्छा के विरुद्ध और उसकी सहमति के बिना था.

(मुंबई से विद्या की रिपोर्ट)