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उत्तराखंड के इस आईएएस अधिकारी की सोशल मीडिया पर है लंबी फैन फॉलोइंग, फेसबुक के जरिए कर रहे मिनटों में शिकायतों का समाधान

IAS Success Story: दीपक की फेसबुक और इंस्टाग्राम पर एक लंबी फैन फॉलोइंग है. लेकिन दीपक इन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में से ज्यादातर इस्तेमाल फेसबुक का करते हैं. जनता की परेशानियों को सुनते हैं, मुखातिब होते हैं और समाधान निकालते हैं.

IAS Deepak Rawat IAS Deepak Rawat
हाइलाइट्स
  • फेसबुक से सुलझाते हैं समस्या

  • बनना चाहते थे कबाड़ वाला

UPSC Success Story: सरकारी दफ्तरों में शिकायते, उनसे जुड़ी फाइलें और उन पर चढ़ती धूल. जैसे जैसे साल बीतते जाते हैं वैसे वैसे उन पर जमा होने वाली धूल और फाइलों की संख्या दोनों ही बढ़ती जाती हैं. जाहिर सी बात है कि इन समस्याओं के समाधान के लिए कई साल बीत जाते हैं फिर भी कोई निष्कर्ष नहीं मिलता. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे आईएएस अधिकारी से मिलवाने वाले हैं जिन्हें समस्याएं सुलझाने में सालों नहीं महीनों नहीं बल्कि चंद मिनटों का समय लगता है. 

आईएएस अफसर दीपक रावत उत्तराखंड के कुमाऊं के डिविजनल कमिश्नर हैं. दीपक अक्सर अपने काम को लेकर सुर्खियों में होते हैं. वह तेज तर्रार ऑफिसर्स में से एक हैं. दरअसल, दीपक के काम करने का तरीका बाकी अफसरों से थोड़ा अलग है. आज जहां सरकारी दफ्तरों में फाइलों के जरिए लोगों की समस्याएं और परेशानियां सुलझा रहे हैं वहीं दूसरी ओर दीपक सोशल मीडिया पर जनता की परेशानियों को सुनकर उनको तुरंत समाधान निकाल लेते हैं. 

फेसबुक से सुलझाते हैं समस्या
दीपक की फेसबुक और इंस्टाग्राम पर एक लंबी फैन फॉलोइंग है. लेकिन दीपक इन सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म में से ज्यादातर इस्तेमाल फेसबुक का करते हैं. जनता की परेशानियों को सुनते हैं, मुखातिब होते हैं और समाधान निकालते हैं. दीपक बताते हैं कि वे इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया एप्लीकेशन का इस्तेमाल इसलिए नहीं करते क्योंकि वहां पर वे लोगों की समस्याओं को सुनकर उन्हें सुलझा नहीं पाएंगे. 

सुलझा चुके हैं 7 से 8 हजार समस्या
दीपक बताते हैं कि उन्हें हर रोज कई मैसेज आते हैं. कोई उन्हें टैग करता है तो कोई उन्हें फेसबुक पर मैसेज भेजता है. जनता की सुविधा के लिए दीपक ने अपना पर्सनल व्हाट्सएप नंबर भी फेसबुक पर साझा किया है. उनका मानना है, "यदि हम जनता के लिए काम कर रहे हैं तो जनता को हम तक पहुंचना भी आसान होना चाहिए." अभी तक वे सोशल मीडिया के जरिए पिछले कुछ सालों में सात से आठ हजार शिकायतों का संज्ञान लेकर उन्हें सुलझा भी चुके हैं.

बनना चाहते थे कबाड़ वाला
अपने आईएएस बनने के सफर का जिक्र करते हुए वे बताते हैं कि उन्हें बचपन से आईएएस बनने का कोई शौक नहीं था. आईएएस दीपक रावत आगे कहते हैं कि उन्हें बचपन में कबाड़ी का पेशा काफी आकर्षक लगता था, क्योंकि उन्हें लगता था कि उसमें चीजों को एक्सप्लोर करने का मौका मिलता है. रोज नई-नई चीजें मिलती हैं, आप जगह-जगह जा सकते हो. ये सब बातें उन्हें कबाड़ी के पेशे की ओर आकर्षित करती थीं. इसीलिए जब उन्हें कोई पूछता कि वह क्या बनना चाहते हैं तो वे बड़े गर्व से कहते थे कि वह एक कबाड़ वाला बनना चाहते हैं.

मेहनत से नहीं चुराया मन
दीपक बताते हैं कि उनके परिवार में अभी तक कोई भी ब्यूरोक्रेसी में नहीं आया है. उनके पिता क्लर्क थे और माता ग्रहणी. दीपक ने डिग्री की पढ़ाई के दौरान ही यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी. अपने पहले और दूसरे प्रयास में दीपक इस परीक्षा में सफल नहीं हो पाए, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी. वह कोशिश करते गए और मेहनत से कभी मन नहीं चुराया. अंत में उन्हें अपने तीसरे प्रयास में सफलता मिल ही गई और उनकी ऑल इंडिया रैंक 12 आई.

समय रहते सुलझी कई समस्या
दीपक बताते हैं कि इस सोशल मीडिया कैंपेन के कारण कई बार ऐसा भी हुआ है कि समय पर पहुंचने के कारण बड़ी-बड़ी समस्याओं को आसानी से सुलझा दिया गया. वे कहते हैं कि उनकी कोशिश रहती है कि वे सोशल मीडिया के हर एक मैसेज को देखें जितना हो सके उतना लोगों कि मदद करें. वे यह भी कहते हैं कि व्यस्त दिनचर्या के कारण उन्हें सोशल मीडिया पर कम ही समय मिल पाता है फिर भी वह दिन में से एक या 2 घंटे से निकाल ही लेते हैं जिसमें वे सोशल मीडिया के जरिए लोगों से कनेक्ट हो सकें.