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BRICS Summit: PM Modi का ब्रिक्स के विस्तार का आह्वान, क्यों है ये जरूरी? क्या हैं इसके रास्ते में अड़चनें

BRICS Summit 2023: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सर्वसम्मति से BRICS के विस्तार का आह्वान किया है. भारत को इस ग्रुप के विस्तार पर कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन भारत चाहता है कि रायशुमारी से इसका विस्तार किया जाए. जबकि चीन अपने समर्थक देशों को इसमें शामिल करना चाहता है. फिलहाल करीब 40 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने का आवेदन दिया है.

पीएम मोदी का ब्रिक्स के विस्तार का आह्वान (Photo/Twitter) पीएम मोदी का ब्रिक्स के विस्तार का आह्वान (Photo/Twitter)

साउथ अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन चल रहा है. इस दौरान भारत ने एक बड़ी पहल की है. भारत ने BRICS के विस्तार का आह्वान किया है. भारत ने ब्रिक्स के विस्तार को लेकर अपनी सहमति दे दी है. इसका ऐलान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साउथ अफ्रीका में में किया. इस दौरान पीएम मोदी ने कहा कि भारत ब्रिक्स की सदस्यता में विस्तार का पूरा समर्थन करता है. इसमें सर्वसम्मति के साथ आगे बढ़ने का स्वागत करता है.

क्यों जरूरी है ब्रिक्स का विस्तार-
भारत हमेशा से ही बहुध्रुवीय दुनिया का समर्थक रहा है. भारत समेत दुनिया के तमाम छोटे-बड़े देश चाहते हैं कि दुनिया एकपक्षीय ना हो. दुनिया के दर्जनों देशों का ब्रिक्स के साथ जुड़ने में रूचि दिखाना इस बात का सबूत है कि अभी दुनिया में जो अर्थव्यवस्था का मॉडल है, उसे पसंद नहीं किया जा रहा है. ऐसे संगठनों की डिमांड बढ़ रही है, जो किसी एक शक्ति या गुट के समर्थक ना हों. कई देशों की अर्थव्यवस्थाएं ग्लोबलाइजेशन को बढ़ावा देना चाहती हैं, लेकिन अपने राजनीतिक सिस्टम, विदेश नीति, संस्कृति और घरेलू पॉलिसी से समझौता नहीं करना चाहती हैं. BRICS भी इसी रास्ते पर चलता है. ऐसे में इस विचार के समर्थक देशों को अपने साथ जोड़ने और ग्रुप के विस्तार की जरूरत है.
दुनिया में डॉलर का दबदबा है. कहीं भी कारोबार करने के लिए डॉलर की जरूरत पड़ती है. जिसकी वजह से कई देशों को इसकी मनमानी भी झेलनी पड़ती है. कई देश एक करेंसी में कारोबार के खिलाफ हैं. ब्रिक्स भी चाहता है कि दुनिया में अलग-अलग करेंसियों में कारोबार हो, ताकि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था पर कोई दबाव महसूस ना हो. ऐसे में इसका विस्तार करना ग्रुप के लिए फायदेमंद है.

विस्तार के रास्ते में अड़चनें-
ब्रिक्स के अहम देश रूस, चीन और भारत के अपने राष्ट्रीय एजेंडे भी इसके विस्तार में अड़चन हैं. ब्रिक्स के बड़े साझीदार भारत और चीन के बीच आपसी विवाद विस्तार के लिए सबसे बड़ी अड़चन है. इस ग्रुप से जुड़ा हर देश चाहता है कि इसका विस्तार हो. लेकिन इस विस्तार कैसे हो? इसको लेकर ब्रिक्स के पास कोई पॉलिसी नहीं है. चीन जिसका फायदा उठाने में लगा. साउथ अफ्रीका को जब सदस्य बनाया गया था तो सर्वसम्मति से बनाया गया था. ब्रिक्स में विस्तार की सबसे बड़ी अड़चन चीन की चाल है. चीन चाहता है कि इस ग्रुप को पश्चिमी प्रभुत्व को टक्कर देने वाले गुट के तौर पर तैयार किया जाए. इसमें उसको रूस का समर्थन मिल रहा है. जबकि भारत ऐसा नहीं चाहता है. भारत ब्रि्क्स को ऐसा संगठन नहीं बनाना चाहता है, जो दुनिया को दो गुटों में बांट दे.
चीन ऐसे देशों को इसमें शामिल करने के लिए पूरा जोर लगा रहा है, जो उसके साथ हैं या उसके साथ आ सकते हैं. जबकि भारत रायशुमारी के साथ ब्रिक्स का विस्तार करना चाहता है.
 
ग्लोबल जीडीपी का 24 फीसदी हिस्सा ब्रिक्स के पास-
ब्रिक्स 5 विकासशील देशों का एक ग्रुप है, जो दुनिया की 41 फीसदी आबादी और 24 फीसदी ग्लोबल जीडीपी का प्रतिनिधित्व करता है. इसके अलावा दुनिया का 16 फीसदी कारोबार ब्रिक्स देशों के पास है. दुनिया के कई देश इस ग्रुप में शामिल होना चाहते हैं. करीब 40 देशों ने ग्रुप की सदस्यता के लिए आवेदन किया है. ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अर्जेंटीना, बोलीविया, अल्जीरिया, इथियोपिया, क्यूबा, कांगो, इंडोनेशिया जैसे देश इसमें शामिल होना चाहते हैं. साल 2010 में आखिरी बार इस ग्रुप का विस्तार हुआ था. उस समय साउथ अफ्रीका इसका सदस्य बना था.

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