
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना यानी वीआरएस लेने वाला कर्मचारी किसी सरकारी विभाग में संविदा कर्मी के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है. अदालत ने साफ किया है कि वीआरएस के नियम किसी कर्मचारी को अनुबंध या सलाहकार कर्मचारी के रूप में नियुक्त करने से नहीं रोकते हैं. कोर्ट ने यह भी कहा है कि समय से पहले रिटायरमेंट लेने वाले कर्मचारियों को भी उन लोगों के बराबर देखा जाना चाहिए जो नौकरी की अवधि पूरी होने पर रिटायर होते हैं.
अदालत ने केंद्रीय संचार मंत्रालय की तरफ से जारी उस अधिसूचना को भी रद्द कर दिया है जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकार के विभागों से VRS लेने वाले कर्मचारियों या अधिकारियों को पुनः रोजगार योजना के तहत अनुबंध पर दोबारा नौकरी पाने से वंचित कर दिया गया था. हाई कोर्ट के इस फैसले से भारत संचार निगम लिमिटेड यानी बीएसएनएल के उन कर्मचारियों को राहत मिली है जिन्होंने सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल यानि CAT के फैसले को अदालत में चुनौती दी थी.
जस्टिस वी कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने बीएसएनएल कर्मियों अश्विनी कुमार शर्मा और अन्य की याचिकाओं का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया है. याचिकाकर्ताओं की तरफ से अदालत में पेश हुए एडवोकेट अतुल चौबे का कहना है कि CAT ने इस मामले को मेरिट पर नहीं देखा. CAT का यह भी कहना था कि ऐसे मामले में कोर्ट का कोई जुरिस्डिक्शन नहीं होता है. जबकि ऐसा नहीं है.
क्या था पूरा मामला?
साल 2019 में बीएसएनएल से वीआरएस लेने वाले अश्विनी कुमार शर्मा और अन्य ने एलएसए हरियाणा ज़ोन में अनुबंध के आधार पर नौकरी के लिए आवेदन दिया था. उनका चयन भी हो गया लेकिन बाद में संचार मंत्रालय से मिले निर्देश के बाद याचिकाकर्ताओं के अनुबंध को खत्म कर दिया गया. दलील दी गई कि वीआरएस लेने वाले कर्मचारी दोबारा नियुक्त नहीं किए जा सकते. इसके लिए संचार मंत्रालय की ओर से जारी ऑफिस ऑर्डर का हवाला दिया गया.
अनुबंध पर नौकरी से हटाए जाने के बाद अश्विनी कुमार शर्मा और अन्य ने विभाग के इस फैसले को सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल में चुनौती दी थी. ट्राइब्यूनल ने इन कर्मचारियों की याचिका को खारिज करते हुए वीआरएस कर्मियों को फिर से अनुबंध पर नौकरी पाने के अधिकार पर रोक लगाने संबंधी अधिसूचना को सही ठहराया. याचिकाकर्ताओं ने ट्राइब्यूनल के इस फैसले को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी.
जस्टिस वी कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि 'पुनर्नियोजित' शब्द का मतलब 'सेवा में वापस ले लिया' या 'सेवा में ले लिया' गया है. इसे 'सेवा के अनुबंध' के बराबर नहीं माना जाना चाहिए क्योंकि उस स्थिति में 'संविदात्मक रोजगार' शब्द का महत्व खत्म हो जाएगा और इसके असंगत परिणाम होंगे.
बेंच ने यह भी कहा, 'याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति बीएसएनएल वीआरएस-2019 के खंड 8 (iii) का उल्लंघन नहीं है. हमारा मानना है कि वीआरएस योजना-2019 को आखिरी रूप देने और स्वीकार किए जाने के बाद सक्षम प्राधिकार की ओर से जारी कोई भी दिशानिर्देश या अधिसूचना बीएसएनएल वीआरएस योजना-2019 को चुनने वाले कर्मचारियों के पुनः रोजगार पाने के अधिकार को प्रतिबंधित नहीं करता है.'