scorecardresearch

Anuj Nayyar Death Anniversary: जंग पर जाने से पहले लौटा गए थे सगाई की अंगूठी, 24 साल की उम्र में शहीद हुआ था यह कारगिल हीरो

आज Kargil Hero कैप्टन अनुज नैय्यर की पुण्यतिथि है. आज ही के दिन, भारत मां के इस सपूत ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.

Captain Anuj Nayyar Captain Anuj Nayyar
हाइलाइट्स
  • 1999 के कारगिल युद्ध में कैप्टन अनुज ने निभाई अहम भूमिका

  • 7 जुलाई 1999 को शहीद हुए थे कैप्टन अनुज

साल 2021 में रीलीज हुई फिल्म 'शेरशाह' ने कारगिल हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी को हर एक देशवासी तक पहुंचाया. कैप्टन बत्रा के जज़्बे को हर किसी ने सलाम किया. लेकिन जब बात कारगिल हीरोज की होती है तो ऐसे कई नाम हैं जिनके साहस की कहानियां आपके रोंगटे खड़े कर देंगी. पर हम बहुत कम इन शहीदों के बारे में जानते हैं.  

इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं देश के एक और बेटे के बारे में. जिसने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए खुद को कुर्बान कर दिया. यह कहानी है कैप्टन अनुज नैय्यर की. आज के दिन यानी की 7 जुलाई को कैप्टन नैय्यर की पुण्यतिथि होती है और इस मौके पर हम आपको बता रहें हैं उनकी असाधारण कहानी. 

बचपन से ही बहादुर थे अनुज 
अनुज का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था. उनके पिता एस के नैय्यर, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत थे और उनकी मां मीना नैय्यर दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस लाइब्रेरी में काम करती थीं. 

कैप्टन नैय्यर पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में अच्छे थे. उन्होंने ठान लिया था कि उन्हें देश की सेवा करनी है. और बचपन से ही उनका यह जुनून दिखता था. बताया जाता है कि 16 साल की उम्र में अनुज का एक्सीडेंट हो गया था. उन्हें काफी चोट लगी थी और घाव पर टांके लगने थे. 

अनुज ने एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लिए बिना ही 22 टांके लगवा लिए. उस समय उन्होंने अपने पिता से कहा था कि दर्द दिमाग में होता है पैर में नहीं. अनुज ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (90वां कोर्स, इको स्क्वाड्रन) से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में जून 1997 में जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन में कमीशन मिला. 

साल 1999 का कारगिल युद्ध
साल 1999 के दौरान, कैप्टन अनुज नैयर की यूनिट को LOC पर जम्मू-कश्मीर में तैनात किया गया था. 1999 में, भारतीय सेना के पता चला कि जम्मू और कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी सेना और अर्धसैनिक बल बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर रहे हैं. भारतीय क्षेत्र से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए सेना ने अभियान शुरू किया. 

17 जाट रेजिमेंट में एक जूनियर कमांडर कैप्टन नैय्यर को पॉइंट 4875, जिसे पिंपल II के रूप में भी जाना जाता है, को सुरक्षित करना था. पिंपल II टाइगर हिल के पश्चिमी किनारे पर एक महत्वपूर्ण पर्वत शिखर है जिस पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्जा कर लिया था. समुद्र तल से 15,990 फीट की ऊंचाई पर खड़ी इस चोटी पर चढ़ना मुश्किल था. 

6 जुलाई को अनुज ने अपने साथियों के साथ पॉइंट 4875 पर चढ़ना शुरू किया. ऊपर से पाकिस्तानी सेना ने हमला शुरू कर  दिया. हालांकि, भारतीय सैनिकों ने जवाबी हमला किया और पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया. युद्ध के दौरान, कैप्टन नैय्यर ने 9 पाकिस्तानी सैनिकों को रास्ते से हटाया और तीन मशीन गन बंकरों को नष्ट कर दिया. 

देश के लिए हुए कुर्बान 
कैप्टन नैय्यर के नेतृत्व में कंपनी ने चार में से तीन बंकरों को सफलतापूर्वक खत्म कर दिया और आखिरी बचे बंकर पर हमला शुरू कर दिया. चौथे बंकर को नष्ट करते समय दुश्मन के ग्रेनेड ने सीधे कैप्टन नैय्यर को लगे और वह गंभीर रूप से घायल हो गए. घायल होने के बावजूद, कैप्टन नैय्यर रुके नहीं और अपनी कंपनी में सैनिकों का नेतृत्व करते रहे. आखिरी बंकर को खत्म करके ही उन्होंने अपनी आखिरी सांस ली. 

उनके बलिदान के कारण ही भारतीय सेना पॉइंट 4875 को फिर से हासिल कर सकी. कैप्टन नैय्यर ने विपरीत परिस्थितियों में दुश्मन का सामना करने में अत्यधिक साहस और धैर्य का परिचय दिया. उनका अपने सैनिकों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि जाट रेजीमेंट के साथी सिपाही तेजबीर सिंह ने कैप्टन अनुज नैय्यर के सम्मान में अपने बेटे का नाम अनुज रखा. कैप्टन अनुज नैयर को उनके असाधारण साहस, अडिग लड़ाई की भावना और सर्वोच्च बलिदान के लिए देश का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार, "महावीर चक्र" दिया गया. 

होने वाली थी शादी
कैप्टन बत्रा की ही तरह कैप्टन नैय्यर की प्रेम कहानी अधूरी रह गई. जी हां, कैप्टन नैय्यर अपने साथ पढ़ीं अपनी दोस्त टिम्मी से प्यार करते थे. कारगिल में जाने से दे महीने पहले ही दोनों की सगाई हुई थी और सितंबर 1999 में दोनों की शादी होने वाली थी. लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था. 

बताते हैं कि मिशन पर निकलने से पहले अनुज अपनी सगाई की अंगूठी अपने एक सीनियर को दे गए थे. और कहा थआ कि अगर वह वापस नहीं आए तो यह अंगूठी उनकी मंगेतर तक पहुंचा दी जाए. वह नहीं चाहते थे कि उनके प्यार की निशानी उनके दुश्मनों के हाथ लगे. अनुज की शहादत के बाद वह अंगूठी भी उनके शव के साथ उनके घर लौटी थी. 

देश के लिए खुद को न्योछावर करने वाले इस सपूत को सलाम!