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Captain Vikram Batra: ये दिल मांगे मोर... 25 साल के कैप्टन विक्रम बत्रा के साहस से Kargil War में हार गए थे पाकिस्तानी, ये है Param Veer Chakra विजेता के शौर्य की कहानी

Vikram Batra Story: 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में प्वाइंट 4875 चोटी पर फतह के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हुए थे. शहादत से पहले कैप्टन बत्रा ने कई पाकिस्तानियों सैनिकों को मार गिराया था. मरणोपरांत कैप्टन बत्रा को सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था.

कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे

आज के दिन यानी 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा ने युद्ध के मैदान में शहादत दी थी. पाकिस्तानी सैनिक मशीन गन से गोलियां बरसा रहे थे, लेकिन विक्रम बत्रा ने इन गोलियों का जवाब अपने साहस से दिया. बत्रा एक के बाद एक पाकिस्तानी सैनिक को ढेर करते रहे. कारगिल युद्ध में 4875 चोटी पर फतह के दौरान विक्रम बत्रा शहीद हो गए. कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत सेना के सर्वोच्च पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

ये दिल मांगे मोर-
श्रीनगर-लेह रास्ते के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण चोटी 5140 को फतह करने की जिम्मेदारी कैप्टन विक्रम बत्रा की टुकड़ी को दी गई. कैप्टन बत्रा ने पूर्व दिशा से इस चोटी की तरफ बढ़े. दुश्मनों को इसकी भनक तक नहीं लगी. जब टुकड़ी दुश्मनों के करीब पहुंच गई तो पाकिस्तानियों को इसकी भनक लगी. इसके बाद दोनों तरफ से फायरिंग हुई. बत्रा की टीम ने 4 दुश्मनों को मार गिराया. 20 जून 1999 को सुबह 3 बजकर 30 मिनट पर बत्रा की टीम ने प्वाइंट 5140 चोटी पर कब्जा कर लिया. इस चोटी से बत्रा ने रेडियो पर संदेश दिया कि ये दिल मांगे मोर. इस ऑपरेशन के दौरान बत्रा को शेरशाह कोड नेम दिया गया था.

4875 चोटी पर फतह और शहादत-
प्वाइंट 5140 चोटी पर फतह के बाद कैप्टन बत्रा की टीम को प्वाइंट 4875 चोटी पर कब्जे की जिम्मेदारी सौंपी गई. 7 जुलाई को टीम ने अभियान शुरू किया. इस चोटी पर पहुंचना बहुत ही मुश्किल था. इसके दोनों तरफ खड़ी ढलान थी. ऊपर से दुश्मनों का नाकाबंदी ने और भी मुश्किलें बढ़ा दी थी. इस दौरान आमने-सामने की लड़ाई में कैप्टन बत्रा ने 5 दुश्मनों को प्वाइंट ब्लैंक रेंज से मार गिराया. इस दौरान बत्रा भी दुश्मनों की गोली की चपेट में आ गए और गंभीर रूप से जख्मी हो गए. इसके बावजूद भी बत्रा ने हार नहीं मानी और रेंगते हुए दुश्मनों पर ग्रेनेड से हमला किया. इस अभियान में बुरी तरह से जख्मी कैप्टन बत्रा शहीद हो गए.

बचपन से बत्रा को पसंद थीं वीरता की कहानियां-
कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था. पहले बत्रा को डीएवी स्कूल और उसके बाद सेंट्रल स्कूल पालमपुर में दाखिला कराया गया. बचपन से ही बत्रा को सेना के जवानों की वीरता की कहानियां पसंद आती थी. 12वीं की पढ़ाई के बाद बत्रा चंडीगढ़ चले गए और डीएवी कॉलेज में विज्ञान विषय से ग्रेजुएशन किया. कॉलेज में बत्रा ने एनसीसीए एयर विंग में शामिल हुए. साल 1994 में बत्रा को एक शिपिंग कंपनी के साथ मर्चेंट नेवी के लिए चुना गया था, लेकिन उन्होंने अपना इरादा बदल दिया और साल 1995 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अंग्रेजी से एमए की पढ़ाई के लिए पंजाब विश्वविद्यालय में दाखिला लिया.

सेना में बत्रा का सफर-
साल 1996 में विक्रम बत्रा ने सीडीएस की परीक्षा दी और इसमें उनका चयन हुआ. इस दौरान 53 उम्मीदवारों का चयन हुआ था. सेना में शामिल होने के लिए बत्रा ने कॉलेज से ड्रॉप आउट किया. ट्रेनिंग के बाद 6 दिसंबर 1997 को जम्मू के सोपोर में लेफ्टिनेंट के पद पर नियुक्ति मिली. साल 1999 में कमांडो ट्रेनिंग के साथ कई प्रशिक्षण लिए.

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