महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर मध्यप्रदेश पंचायत चुनावों पर भी दिख रहा है. शिवराज सरकार ने ऊहापोह की स्थिति देखते हुए चुनाव टालने का फैसला किया है. इसकी एक और वजह केंद्र सरकार की वो याचिका है जिसमें कोर्ट से अपने 17 दिसंबर के आदेश में बदलाव कर राज्यों के चुनाव चार महीने टालने की गुहार लगाई है. केंद्र सरकार ने ये भी गुजारिश की है कि इस मामले में उसे भी पक्षकार बनाया जाए.
अपनी याचिका में केंद्र सरकार ने कहा है कि ओबीसी के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था खत्म कर चुनाव कराने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश व्यावहारिक नहीं है. राज्य सरकारें सभी तबकों को प्रतिनिधित्व देना चाहती है. सीधे-सीधे राज्य सरकारों की व्यवस्था को खारिज करने की बजाय चुनाव की अधिसूचना स्थगित करने की मंजूरी देकर चुनाव फिलहाल चार महीने टाल दिए जाएं. चार महीने में प्रतिनिधित्व को लेकर सर्वेक्षण भी हो जाएगा और बाद में उसी की रिपोर्ट के आधार पर चुनाव कराए जा सकेंगे.
अपनी याचिका में केंद्र सरकार ने चार महीने के लिए चुनाव टालने की अपील के पीछे की वजह भी बताई है. तीन महीने में कोर्ट पिछड़ा वर्ग आयोग से रिपोर्ट मांग सकता है. आयोग पिछड़े वर्गों को स्थानीय निकायों में उचित प्रतिनिधित्व देने की गरज से सर्वेक्षण कर रहा है. तब तक रिपोर्ट भी आ जाएगी. चुनाव होने के बाद तो फिर रिपोर्ट का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.
केंद्र ने अपनी अर्जी में सुप्रीम कोर्ट के 17 दिसंबर के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अन्य पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व देने के लिए चुनाव प्रक्रिया जिस चरण में पहुंच गई थी वहां कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था. लिहाजा कोर्ट इन तथ्यों पर विचार करने के लिए अपने पिछले आदेश में बदलाव कर दे और चुनाव टालने को मंजूरी दे.