कहते हैं मन में हौसला और कुछ करने का जज़्बा हो तो हमारे सामने शारीरिक अक्षमता भी घुटने टेक देती है. दिल में एवरेस्ट जितना ही बड़ा हौसला हो तो सबसे ऊंची पर्वत शृंखला को भी पैरों में लाया जा सकता है. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है छत्तीसगढ़ की चंचल सोनी (Chanchal Soni) ने. महज 14 साल की उम्र में चंचल ने एक ही पैर से ही माउंट एवरेस्ट के फर्स्ट बेस कैंप तक 5,364 मीटर की ऊंचाई नाप दी है. साथ में 60 फीसद दृष्टिबाधित 21 साल की रजनी जोशी (Rajni Joshi) ने भी चंचल के साथ ये चढ़ाई पूरी की है.
इन दोनों ने ये कारनामा ‘अपने पैरों पर खड़े हैं’ मिशन इंक्लूजन (Mission Inclusion) के तहत पूरा किया है. इस मिशन में 9 लोग शामिल थे, जिसे छत्तीसगढ़ के पर्वतारोही चित्रसेन साहू (Chitrasen Sahu) लीड कर रहे थे. बता दें, चित्रसेन साहू ने कुछ ही समय पहले माउंट किलिमंजारो, माउंट कोजीअस्को और माउंट एलब्रुस फतह कर नेशनल रिकॉर्ड कायम किया था. माउंट किलिमंजारो (अफ्रीका महाद्वीप), माउंट कोजिअसको (ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप) और माउंट एलब्रुस (यूरोप महाद्वीप) की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है. चित्रसेन इस उपलब्धि को हासिल करने वाले देश के पहले डबल लेग एंप्यूटी हैं.
मिशन को लेकर GNT Digital ने चित्रसेन साहू, चंचल सोनी और रजनी से बात की. उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ की बेटी चंचल सोनी ने मात्र 14 साल की उम्र में बैसाखी के सहारे एवरेस्ट बेस कैंप 5364 मीटर की कठिन चढ़ाई 10 दिन में पूरी की है. पूरे विश्व में ऐसा करने वाली वे सबसे कम उम्र की ऐम्प्युटी क्लाइम्बर (Youngest Amputee climber) बन गईं हैं. इस अभियान में विभिन्न विकलांगता, जेंडर, उम्र तथा कम्युनिटी के कुल 9 लोगों द्वारा सफलतापूर्वक चढ़ाई की गई है. जिसका मकसद विविधता ,समावेशन और एडवेंचर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना था.
दुनिया की सबसे कम उम्र की ऐम्प्युटी क्लाइम्बर बनीं चंचल
दुनिया की सबसे कम उम्र की ऐम्प्युटी क्लाइम्बर बनने पर चंचल सोनी बताती हैं कि ये उनका बचपन से सपना था. वे कहती हैं, “मेरा बचपन से सपना था कि मैं माउंटेनियरिंग करूं. मैं सर (चित्रसेन) से रायपुर में मिली थी बास्केटबॉल मैच के लिए, तब मुझे पता चला कि ये माउंटेनियरिंग करते हैं. उन्होंने मुझे मौका दिया एवरेस्ट बेस कैंप चढ़ने का, तो मैं जा पाई. अब हम वापिस आए हैं तो हमें बहुत अच्छा लग रहा है. सभी लोगों ने शहर में भी हमारा खूब अच्छे से स्वागत किया है. उन सभी ने हमारा हौसल बढ़ाया है."
सफर में आई मश्किलें
बता दें, चचंल व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर हैं और डांस भी करती हैं. वे कहती हैं, “पहले ही दिन जब मैंने ट्रेक करना शुरू किया तो मेरी स्टिक की रबर टूट गई थी. तो स्टिक छोटी-बड़ी हो गई थी. तब मुझे लगा कि मैं नहीं कर पाउंगी. बड़ी बड़ी चट्टान थीं और स्टिक से क्लाइंब करना पड़ता था तो दिक्क्तें तो आई थीं. रस्ता भी उबड़-खाबड़ था तो चलने में भी मुश्किल आई. फिर मेरे टीम वालों ने मुझे हौसला दिया कि तुम कर लोगी. और मैं बस आगे बढ़ती गई.”
पैरा जुडो में नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी रजनी
वहीं, रजनी टीम की दूसरी सबसे छोटी मेंबर थीं और जूडो में नेशनल गोल्ड मेडलिस्ट (Judo National Gold Medalist) हैं. वे कहती हैं, “स्नोफॉल चश्मे पर हो रहा था. और कम दिखने की वजह से मुझे परेशानी हो रही थी. फिर मुझे टीम वालों ने बताया कैसे करना है. जैसे-जैसे हमें बताया गया वैसे वैसे हम करते गए और उसी की बदौलत हमने ये बेस कैंप ट्रेक पूरा किया. हालांकि, हम घर से कभी बाहर अकेले नहीं गए हैं. लेकिन फिर घरवालों ने हमें भेज दिया. खाने पीने की भी दिक्क्त आई. लेकिन हमारे टीम मेंबर्स ने काफी सपोर्ट किया. वो एक फैमिली के जैसे बन गए थे. एक परिवार की तरह ही हमारा उन्होंने ख्याल रखा.”
बता दें, 10 दिन की कठिन चढ़ाई वाला ये मिशन 23 अप्रैल को शुरू था और 3 मई को पूरा हुआ.
दोनों ने खूब तैयारी की थी, मेहनत से ये मुकाम हासिल किया: चित्रसेन
मिशन को लीड कर रहे चित्रसेन साहू बताते हैं कि उनकी मुलाक़ात चंचल सोनी से 2017 में राजिम कुंभ के दौरान हुई थी. चित्रसेन कहते हैं, “जब मैंने चंचल को पहली बार देखा था तब चंचल के वीडियोज और न्यूज़ काफी वायरल हुए थे. इस न्यूज़ में इन्होने लिखा था कि मुझे परवर्तारोहण करना है. तब मुझे लगा सबसे पहले हम इसको आर्टिफिशियल लेग दिलवाएंगे. सबसे पहले चंचल को आर्टफिशियल लेग लगवाकर देखा गया, तब डॉक्टर ने कहा कि इसकी सर्जरी करवानी पड़ेगी. जून 2019 में सबसे पहली बार लॉन्ग टर्म में छत्तीसगढ़ को रिप्रेजेंट करने के लिए मुझे इससे अच्छा प्लेयर कोई नहीं मिला. तब मोहाली में एक मैच हुआ था जिसमें चंचल भारत की सबसे यंग लड़की बनी थी जिसने सीनियर नेशनल में परफॉर्म किया था. तब चंचल कुल 12 साल की थी. ये दोनों बच्चे पिछले 1 साल से तैयारी कर रहे थे. इन्होंने अपनी तैयारी नहीं छोड़ी. और दोनों ने कर दिखाया. मुझे बच्चों को देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है.”
कौन कौन रहे टीम में?
1. टीम लीडर के चित्रसेन साहू, जिनकी उम्र 29 साल के हैं और पर्वतारोही हैं. वे इससे पहले माउंट किलिमंजारो, एलब्रुस और कोस्सियस्को फतह कर चुके हैं. साथ ही स्विमिंग /व्हीलचेयर बास्केटबॉल पैरा खिलाड़ी भी हैं.
2. चंचल सोनी, टीम की सबसे छोटी मेंबर थीं. जिनकी उम्र कुल 14 साल है. ये राष्ट्रीय व्हीलचेयर बास्केटबॉल खिलाड़ी यहीं और वन लेग डांसर हैं.
3. रजनी जोशी की उम्र 21 साल है. जो ब्लाइंड पैरा जूडो (लो विज़न विकलांग) में नेशनल प्लेयर हैं.
4. अनवर अली की उम्र 36 साल है. ब्लेड रनर हैं. उन्होंने अपना एक पैर एक दुर्घटना के कारण खो दिया था. बता दें, अनवर ने ईद के दिन यह मुकाम हासिल किया है और एवरेस्ट बेस कैंप में ही नमाज अदा की.
5. निक्की बजाज एक ट्रांसजेंडर हैं, जिनकी उम्र 31 साल है. पेशे से वे हेयरस्टाइलिस्ट और मेकअप आर्टिस्ट है. वे छत्तीसगढ़ की पहली ट्रांसजेंडर पर्वतारोही बन गईं हैं जिन्होंने एवरेस्ट बेस कैंप फतह किया है. इससे पहले वे फ्रेंडशिप पीक फतह कर चुकी हैं.
6. गुंजन सिन्हा की उम्र 25 साल है. डिजिटल मार्केटर और फिल्म मेकर हैं. इस पर्वतारोहण अभियान में सफलतापूर्वक चढ़ाई के साथ मिशन की डॉक्यूमेंट्री भी शूट की है.
7. पेमेंन्द्र चंद्राकर की उम्र 38 साल है. पेशे से एक ट्रेकर, माउंटेन फोटोग्राफर हैं.
8. राघवेंद्र चंद्राकर की उम्र 47 साल है. वे एक बिजनेसमैन हैं और ट्रैवलर हैं.
9. आशुतोष पांडेय की उम्र 39 साल है. शासकीय सेवक, ट्रेकर, रनर और एक साइक्लिस्ट हैं.
मिशन का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना
चित्रसेन कहते हैं कि ‘अपने पैरों पर खड़े हैं’ मिशन इंक्लूजन के पीछे हमारा एक मात्र उद्देश्य है सशक्तिकरण और जागरूकता. जो लोग जन्म से या किसी दुर्घटना के बाद अपने किसी शरीर के हिस्से को गवां बैठते हैं उन्हें सामाजिक स्वीकृति दिलाना, ताकि उन्हें समानता प्राप्त हो यही लक्ष्य है. इस मिशन में अलग अलग प्रकार के विकलांगता, जेंडर, उम्र और कम्युनिटी के लोगों ने साथ में ट्रेकिंग की है. इसका मकसद डाइवर्सिटी और इन्क्लूजन (Diversity and Inclusion) के साथ एडवेंचर स्पोर्ट्स को प्रोत्साहित करना था. विश्व में हम अपनी तरह का पहला ग्रुप हैं. जिन्होंने पहली बार पर्वतारोहण कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है.
चित्रसेन आगे कहते हैं कि शरीर के किसी अंग का न होना कोई शर्म की बात नहीं है. न ही ये हमारी सफलता के आड़े आता है. बस जरूरत है तो अपने अंदर की झिझक को खत्म कर आगे आने की. हम किसी से कम नहीं हैं और न ही अलग हैं.