अमेरिकी सेना ने अपने बेड़े में शामिल भारतीय सेना की बड़ी ताकत कहलाने वाले चिनूक हेलीकॉप्टरों को ग्राउंडेड करने का फैसला लिया है. अब इस मामले पर भारतीय वायु सेना (IAF) ने अमेरिकी रक्षा निर्माता बोइंग से अमेरिकी सेना के चिनूक हेलीकॉप्टरों के पूरे बेड़े को बंद करने के कारणों के बारे में विवरण मांगा है. IAF अमेरिका से प्राप्त 15 बोइंग-निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टरों के एक बेड़े का संचालन करता है और मार्च 2019 में सेवा में शामिल किया गया.
फिलहाल अमेरिका सेना के की किसी भी ऑपरेशन या ट्रेनिंग में चिनूक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल नहीं होगा. अमेरिका ने इसपर रोक लगा दी है. बताया जा रहा है कि चिनूक हेलीकॉप्टरों में आग लगने के खतरे के चलते ये बड़ा फैसला लिया गया है. अमेरिकी सेना की बेड़े की ग्राउंडिंग के बारे में इंडियन एयरफोर्स ने बताया कि भारतीय सेना के चिनूक हेलीकॉप्टर्स का बेड़ा अभी भी शामिल है. भारतीय सेना ने उन कारणों की जानकारी मांगी है जिसके कारण अमेरिकी सेना के चिनूक CH-47 हेलीकॉप्टरों के इंजन में आग लगने का खतरा है. वाल स्ट्रीट जनरल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिकी सेना ने यह कदम सावधानी को देखकर उठाया है. हालांकि सेना के इस कदम से चिनूक पर सवाल उठने लगे हैं.
अमेरिका ने क्या बताया खतरा?
आग लगने के अलावा इस हेलीकॉप्टर के इंजन फेल के अलावा कई अन्य खतरे बताए जा रहे हैं. वहीं US Army के अधिकारियों ने बताया कि 70 से ज्यादा चिनूक हेलीकॉप्टरों के इंजन में आग लगने की वजह से ये फैसला लिया गया. बता दें कि वायु सेना अपने 15 बोइंग निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टरों का संचालन करता है जिन्हें अमेरिका से अधिकृत किया गया और मार्च 2019 में सेवा में शामिल किया गया. पिछले कुछ सालों में लद्दाख और सियाचिन ग्लेशियर जैसी जगहों पर इसे तैनात किया गया.
क्या है चिनूक?
बोइंग द्वारा निर्मित चिनूक हेलीकॉप्टर एक भारी-भरकम हेलीकॉप्टर है. यह पश्चिमी हेलीकॉप्टर में सबसे भारी हेलीकॉप्टरों में से एक है. इसका नाम चिनूक, ओरेगॉन और वाशिंगटन राज्य के मूल अमेरिकी चिनूक लोगों के नाम से लिया गया है. चिनूक हेलीकॉप्टर 1960 के दशक से अमेरिकी सेना में उपयोग में है. इसका उपयोग 19 से अधिक देशों के सशस्त्र बलों द्वारा भी किया जाता है.
चिनूक हेलीकॉप्टर भारतीय वायुसेना के एयरलिफ्ट ऑपरेशन के लिए प्रमुख सैन्य उपकरणों में से एक बनकर उभरे हैं.चिनूक हेलीकॉप्टर्स की तैनाती फिलहाल दो जगहों पर है. इसका आधा बेड़ा चंडीगढ़ में है कुछ हेलीकॉप्टर असम एयरबेस पर भी तैनात हैं. इसका इस्तेमाल सेना के भारी समान या फिर हथियारों को एयरलिफ्ट करने के लिए किया जाता है.
हेलीकॉप्टर मूल रूप से वियतनाम युद्ध में तैनात किया गया था. तब से इराक और अफगानिस्तान युद्ध में ये अक्सर देखने को मिला. न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, चिनूक को लगभग 36 यात्रियों को ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, लेकिन वियतनाम युद्ध के अंतिम दिनों में इसने 147 शरणार्थियों को एक ही बार में लिफ्ट करके ले जाया गया.इसे 315 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति के साथ दुनिया का सबसे तेज सैन्य हेलीकॉप्टर माना जाता है. इसे अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और अन्य सहित कई देशों में तैनात किया गया है. यूएस और यूके सबसे बड़े ऑपरेटर बने हुए हैं.
कहां-कहां होता है इस्तेमाल?
लगभग 20 अन्य देश, बोइंग द्वारा बनाए गए इन हेलीकॉप्टरों को खरीदना चाहते हैं.दो रोटार के साथ, हेलीकॉप्टर भारी भार ले जा सकते हैं और युद्ध की स्थितियों के लिए अच्छी तरह से सशस्त्र हैं. इनका उपयोग अक्सर आपदा राहत अभियानों में भी किया जाता है. इस साल की शुरुआत में जर्मनी ने घोषणा की थी कि वह 60 विमान खरीदेगा. इसके अलावा अर्जेंटीना और फिलीपींस भी रूसी निर्मित हेलीकॉप्टरों को खरीदने के लिए तैयार हैं.
भारत के चिनूक
सितंबर 2015 में भारत ने क्षमताओं को बढ़ाने के लिए 15 चिनूक और 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों के लिए 3.1 बिलियन डॉलर का ऑर्डर दिया था. 2019 में, भारत को चिनूक हेलीकॉप्टरों का पहला बैच मिला और बोइंग ने 2020 में भारतीय वायु सेना को हेलीकॉप्टरों की डिलीवरी पूरी की.
हेलिकॉप्टरों की खरीद के पीछे बड़ा कारक यह था कि वे M777 हल्के हॉवित्जर (M777 lightweight howitzers)को एक स्थान से दूसरे स्थान पर विशेष रूप से चीन के साथ सीमाओं जैसे पहाड़ी इलाकों में स्लिंग करने में सक्षम हैं. तब से वे इन क्षेत्रों में तैनात भारतीय बलों की सहायता के लिए लद्दाख और सियाचिन ग्लेशियर जैसे स्थानों में एयरलिफ्ट संचालन के लिए प्रमुख सैन्य उपकरणों में से एक के रूप में उभरे हैं.
IAF चिनूक ने इस साल अप्रैल में भारत में सबसे लंबी नॉन-स्टॉप हेलिकॉप्टर उड़ानें - 7.5 घंटे में 1,910 किमी की उड़ान भरकर एक रिकॉर्ड बनाया. परिचालन प्रशिक्षण कार्य के दौरान इसने चंडीगढ़ से जोरहाट के लिए उड़ान भरी थी.