सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण में हो रहे बदलावों को लेकर ऐतिहासिक फैसला दिया है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन के "दुष्प्रभावों के खिलाफ" एक व्यक्ति का अधिकार जीवन और समानता के मौलिक अधिकार का हिस्सा है.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी. बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, "संविधान का अनुच्छेद 48ए कहता है कि राज्य को पर्यावरण को बचाने और उसमें सुधार करने के प्रयास करने होंगे. साथ ही देश के जंगलों और वन्य जीवन की सुरक्षा करने के प्रयास करने होंगे. अनुच्छेद 51ए का क्लॉज (जी) अपेक्षा करता है कि जंगलों, तालाबों, नदियों और वन्य जीवन सहित पूरे पर्यावरण को बचाना हर नागरिक की जिम्मेदारी होगी. भले ही ये संविधान के न्यायोचित प्रावधान नहीं हैं, ये दिखाते हैं कि संविधान प्राकृतिक दुनिया के महत्व को समझता है."
साफ पर्यावरण को लेकर क्या कहा कोर्ट ने
अदालत ने इन प्रावधानों के आधार पर कहा कि पर्यावरण का महत्व संविधान के दूसरे हिस्सों में अधिकार का रूप ले लेता है. इसलिए साफ पर्यावरण में रहने का अधिकार आर्टिकल 14 और आर्टिकल 21 का हिस्सा है.
कोर्ट ने कहा, "इन प्रावधानों में जो पर्यावरण का महत्व बताया गया है वो संविधान के दूसरे हिस्सों में अधिकार बन जाता है. आर्टिकल 21 जीवन और स्वाधीनता के अधिकार को मान्यता देता है जबकि आर्टिकल 14 संकेत देता है कि सभी लोग कानून की नजर में बराबर होंगे और उन्हें कानून का बराबर संरक्षण मिलेगा. ये अनुच्छेद साफ पर्यावरण के अधिकार और क्लाइमेट चेंज के दुष्प्रभावों के खिलाफ अधिकार के अहम स्रोत हैं."
अदालत ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के निवास स्थान को बचाने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. यह एक प्रकार का सारंग (एक प्रकार का पक्षी) है जो बिजली के तार बिछने के कारण अपना घर खो सकता था. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला 21 मार्च को ही दे दिया था, लेकिन इसका पूरा ऑर्डर सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर शनिवार शाम को अपलोड किया गया है.
अदालत ने कहा, "क्लाइमेट चेंज के दुष्प्रभावों को पहचानने वाली और उनसे लड़ने का लक्ष्य रखने वाली सरकारी नीतियों और नियम-विनियमों के बावजूद भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो क्लाइमेट चेंज से जुड़ा हो. इसका मतलब यह नहीं कि भारत के लोगों के पास इन दुष्प्रभावों से बचने का अधिकार नहीं है."
क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट ने 12 अप्रैल 2021 को 99,000 वर्ग किलोमीटर की एक जमीन पर ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें बिछाने पर प्रतिबंध लगा दिया था. कोर्ट ने कहा था कि बिजली की इन तारों को अंडरग्राउंड पावर लाइनों में बदलने पर विचार किया जाए. इसके जवाब में तीन मंत्रालयों ने कोर्ट का रुख किया था. पर्यावरण, जंगल और क्लाइमेट चेंज मंत्रालय, ऊर्जा मंत्रालय, और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय.
तीनों मंत्रालयों ने अदालत को बताया था कि भारत गैर-फॉसिल फ्यूल (Non-Fossil Fuel) की ओर रुख करने और उत्सर्जन (Emission) को कम करने को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वादे कर चुका है, इसलिए कोर्ट अपने फैसले में कुछ बदलाव करे. अदालत से यह भी कहा गया था कि इस क्षेत्र में देश की सौर (Solar Energy) और पवन ऊर्जा (Wind Energy) क्षमता का एक बड़ा हिस्सा शामिल है. यह भी तर्क दिया गया कि हाई वोल्टेज बिजली लाइनों को भूमिगत करना तकनीकी रूप से संभव नहीं था.
अदालत ने इन सभी बातों को संज्ञान में लिया और ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों को अनुमति दे दी. लेकिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और पर्यावरण के संरक्षण को बैलेंस करने की बात कही. साथ ही अदालत ने क्लाइमेट चेंज के मुद्दे पर रोशनी डालते हुए रिन्यूएबल एनर्जी को बचाने की जरूरत पर जोर दिया.