नीतीश कुमार साल 2000 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. लेकिन बहुमत साबित नहीं करने की वजह से 7 दिन में सरकार गिर गई. इसके बाद नीतीश कुमार को कुछ साल इंतजार करना पड़ा और साल 2005 में उनको फिर से बिहार पर राज करने का मौका मिला. इस साल बिहार में दो बार विधानसभा चुनाव हुए. दूसरी बार में एनडीए को बहुमत मिला और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया. उसके बाद से अब तक बिहार की सत्ता के सर्वेसर्वा नीतीश कुमार ही रहे हैं. भले ही बीच में जीतन राम मांझी को सीएम बनाया था. लेकिन ताकत नीतीश कुमार के पास ही थी. इस दौरान नीतीश कुमार ने कई बार गठबंधन भी बदला. लेकिन मुख्यमंत्री खुद ही रहे. आज बिहार की हालत जो भी हो, लेकिन साल 2005 में जब नीतीश कुमार सीएम बने थे तो बिहार डगमगा रहा था. नीतीश कुमार ने सबसे पहले एक मजबूत टीम बनाई, ताकि बिहार को विकास के रास्ते में ले जाया जा सके. उन्होंने खुद अधिकारियों को फोन करके बिहार में काम करने के लिए बुलाया. किताब 'किताब राज कितना काज' में सीनियर जर्नलिस्ट संतोष सिंह ने इस टीम में शामिल अधिकारियों की फैमिली के रिएक्शन और उनकी बिहार में कामकाज संभालने का जिक्र किया है. उन अधिकारियों को काफी अव्यवस्थाा का सामना करना पड़ा था. चलिए आपको उन अफसरों की नीतीश कुमार की टीम में शामिल होने की कहानी बताते हैं.
नीतीश कुमार की टीम में कौन थे शामिल-
दिसंबर 2005 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी टीम को आकार देना शुरू किया. इसमें एक से बढ़कर एक अधिकारियों को शामिल किया गया. इसमें 1991 बिहार काडर आईएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत, 1974 बैच के आईएएस अधिकारी अनूप मुखर्जी, 1979 बैच के आईएएस अधिकारी अफजल अमनुल्लाह, आरके सिंह, दीपक कुमार, मोहन झा और अंजनी कुमार सिंह जैसे अधिकारी शामिल थे. नीतीश कुमार ने दोस्त और सलाहकार के तौर पर आईएएस अधिकारी रामचंद्र प्रसाद सिंह को भी शामिल किया था. अनूप मुखर्जी को ग्रामीण विकास का प्रधान सचिव, अमानुल्लाह को गृह विभाग और अमृत को सड़क निर्माण विभआग के तहत बिहार राज्य पुल निर्माण निगम का अध्यक्ष बनाया गया. आरके सिंह को सड़क निर्माण विभाग दिया गया.
सीएम ने खुद अफसरों को किया फोन-
गद्दी संभालने के एक महीने बाद दिसंबर 2005 में नीतीश कुमार ने बिहार काडर के आईएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को फोन किया. सीएम ने पूछा- क्या अमृत बिहार लौटना चाहेंगे? अमृत ने फौरन हां कर दिया. अमृत ने एक महीने तक अपनी फैमिली को इसके बारे में नहीं बताया. किसी तरह से जब फैमिली को ये बात पता चली तो 8वीं में पढ़ने वाली उनकी बेटी ने कहा कि अगर आप खुश हैं तो सब बिहार शिफ्ट होने के लिए तैयार हैं. अमृत उस समय केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री के निजी सचिव थे.
खटारा एंबेडसर से ऑफिस पहुंचे अमृत-
किताब 'कितना राज कितना काज' के मुताबिक अमृत प्रत्यय बताते हैं कि मैं पहली बार आरके सिंह से मिला, जिन्होंने सीएम के सामने मेरा नाम रखा था. मैं खटारा एंबेसडर कार में पुल निर्माण विभाग के अध्यक्ष पद को संभालने चला था. जब दफ्तार पहुंचा तो पान की पीक ने मेरा स्वागत किया. मेरा दिमाग खराब हो गया. मुझे वॉशरूम जाना था, लेकिन मेरे मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा कि मैं उधर न जाऊं. जब मैं लंच के लिए घर गया तो उस दिन दफ्तर नहीं लौटा. बाद में जब आरके सिंह ने पूछा कि पहला दिन कैसा रहा. अमृत ने हिचकिचाते हुए कहा कि सर, यहां तो बहुत बुरा हाल है. इसपर सिंह ने कहा कि तुम्हें क्या लगता है, तुम्हें यहां क्यों बुलाया गया है.
ये भी पढ़ें: