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5 बार वोटिंग से चुने गए Congress President, जानिए Gandhi Family समर्थित उम्मीदवारों का क्या हुआ था हाल

Congress President Election: कांग्रेस में वोटिंग के जरिए अध्यक्ष का चुनाव छठी बार हो रहा है. इससे पहले 5 बार वोटिंग के जरिए अध्यक्ष चुने गए हैं. दो बार गांधी-नेहरू समर्थित उम्मीदवारों की हार हुई है. जबकि एक बार चुनाव में गांधी परिवार न्यूट्रल रहा है.

सुभाषचंद्र बोस, सीताराम केसरी और सोनिया गांधी (फाइल फोटो) सुभाषचंद्र बोस, सीताराम केसरी और सोनिया गांधी (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • 1939 में सुभाषचंद्र बोस ने पट्टाभि सीतारमैया को हराया था

  • 1950 में पुरुषोत्तम दास टंडन ने जेबी कृपलानी को हराया था

कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग हो रही है. दो दशक बाद कांग्रेस में वोटिंग के जरिए अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया चल रही है. ये पहली बार नहीं है, जब कांग्रेस में चुनाव के जरिए अध्यक्ष का चुनाव हो रहा है. 137 साल के इतिहास में 5 ऐसे मौके आए हैं, जब कांग्रेस में वोटिंग के जरिए अध्यक्ष चुना गया है. 1939, 1950, 1996 और 2000 में वोटिंग के जरिए अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हुई है. इन चुनावों में गांधी परिवार की क्या भूमिका रही है और गांधी-नेहरू समर्थित उम्मीदवारों की क्या स्थिति रही है. चलिए आपको बताते हैं...

1939 में बापू समर्थित उम्मीदवार की हार-
कांग्रेस में पहली बार साल 1939 में वोटिंग के जरिए अध्यक्ष का चुनाव हुआ. इस चुनाव में महात्मा गांधी के समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया मैदान में थे तो दूसरी तरफ सुभाष चंद्र बोस डटे हुए थे. 29 जनवरी को अध्यक्ष पद के लिए वोट डाले गए. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के समर्थन में 1580 वोट पड़े, जबकि सीतारमैया को 1377 वोट मिले. बोस को बंगाल, मैसूर, यूपी, पंजाब और मद्रास में खूब समर्थन मिला था. बोस लगातार दूसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. महात्मा गांधी इस हार से इतने आहत हुए कि उन्होंने इसे खुद की हार बता दिया था. बोस की जीत के बाद दूरियां इतनी बढ़ गईं कि अप्रैल 1939 में नेताजी ने अध्यक्ष पद और कांग्रेस दोनों छोड़ दिया.

1950 में नेहरू समर्थित उम्मीदवार की हार-
साल 1939 के बाद अगले 11 साल तक कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर वोटिंग नहीं हुई. आम सहमति से अध्यक्ष चुने जाते रहे. लेकिन साल 1950 में एक बार फिर कांग्रेस में इलेक्शन की नौबत आ गई. दो चेहरे कांग्रेस अध्यक्ष बनने की होड़ में थे. पहले जेबी कृपलानी और दूसरे पुरुषोत्तम दास टंडन. जवाहर लाल नेहरू ने जेबी कृपलानी का समर्थन किया. जबकि टंडन को सरदार पटेल का करीबी माना जाता था. जब चुनाव नतीजे सामने आए तो हर कोई हैरान रह गया. पुरुषोत्तम दास टंडन ने जेबी कृपलानी को हरा दिया और कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. टंडन के चुने जाने के बाद कांग्रेस में लगातातर विवाद गहराने लगा. इसके बाद पुरुषोत्तम दास टंडन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

1977 में रेड्डी ने बने अध्यक्ष-
साल 1977 में देवकांत बारुआ ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. जब अगले अध्यक्ष को चुने की बारी आई तो 3 उम्मीदवार मैदान में उतरे. कासु ब्रह्मानंद रेड्डी, सिद्धार्थ शंकर रे और कर्ण सिंह. लेकिन जब अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग हुई तो रेड्डी ने सिद्धार्थ शंकर रे और कर्ण सिंह को मात दे दी और कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए.

1996 में केसरी चुने गए अध्यक्ष-
साल 1996 में पीवी नरसिम्हा राव ने अध्यक्ष पद छोड़ दिया. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग हुई. इस चुनाव में सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट मैदान में थे.- लेकिन केसरी ने सबको मात दे दी और कांग्रेस के अध्यक्ष बने. सीताराम केसरी कांग्रेस के दिग्गज नेता थे. लोकसभा सांसद भी चुने गए. 5 बार राज्यसभा के सदस्य रहे. साल 1973 में बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. 1980 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष भी बनाए गए. लेकिन साल 1998 में जबरन उनको कांग्रेस कार्य समिति से हटा दिया गया. 

2000 में सोनिया गांधी बनीं कांग्रेस अध्यक्ष-
साल 1998 में कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी को दे दी गई. सीताराम केसरी को अध्यक्ष पद से हटाने और सोनिया गांधी को कमान सौंपने को लेकर नियमों मे बदलाव किया गया. अक्टूबर 2000 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए. 29 अक्टूबर को नामांकन का आखिरी दिन था. जितेंद्र प्रसाद ने पर्चा दाखिल कर सबको हैरान कर दिया. किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि सोनिया गांधी के खिलाफ कोई पर्चा दाखिल करेगा. 9 नवंबर को वोटों की गिनती हुई. जितेंद्र प्रसाद को 7542 वोटों में से सिर्फ 94 वोट मिले. सोनिया गांधी ने 98.75 फीसदी वोट हासिल किया और अध्यक्ष चुनी गईं.
अब एक बार फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग हो रही है. इस बार शशि थरूर और मल्लिकार्जुन खड़गे मैदान में है. कहा जा रहा है कि खड़गे को सोनिया गांधी का समर्थन है. हालांकि खड़गे ने ये साफ कर दिया है कि गांधी परिवार इस चुनाव से पूरी तरह से दूर है. अब देखना है कि शशि थरूर मल्लिकार्जुन खड़गे को कितना टक्कर दे पाते हैं.

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