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Telangana Election Result: तेलंगाना में चला RRR का जादू, जीत की हैट्रिक नहीं लगा पाए KCR, कांग्रेस ने BRS से छीनी कुर्सी, CM रेस में ये हैं बड़े दावेदार

Telangana Chunav Result 2023: तेलंगना में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 60 है. कांग्रेस विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इस बार केसीआर का जादू नहीं चला. लोकसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो ये कांग्रेस के लिए बेहद अहम जीत है. मध्य प्रदेश और राजस्थान में हार के बाद कांग्रेस के लिए यह जीत 'संजीवनी' से कम नहीं है.

तेलंगाना में कांग्रेस ने मारी बाजी तेलंगाना में कांग्रेस ने मारी बाजी
हाइलाइट्स
  • साल 2013 में आंध्र प्रदेश से अलग हुआ था तेलंगाना 

  • दो विधानसभा चुनावों में BRS को मिली थी जीत 

दक्षिण भारतीय राज्य तेलंगाना से कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है. विधानसभा चुनाव 2023 के अब तक आए नतीजों से वहां कांग्रेस की सरकार बननी तय है. साल 2013 में आंध्र प्रदेश से तेलंगाना अलग हुआ था. राज्य की स्थापना के बाद यह तेलंगाना का तीसरा चुनाव है, जहां 119 विधानसभा सीटें है. 

इससे पहले हुए दो विधानसभा चुनावों में भारत राष्ट्र समिति (BRS) को जीत मिली थी लेकिन साल 2023 के चुनाव में ऐसा क्या हुआ, जो केसीआर (K. Chandrashekar Rao) की पार्टी BRS जीत की हैट्रिक लगाने से पीछे रह गई. आइए जानते हैं केसीआर की हार के बड़े कारण और सीएम की रेस में कांग्रेस की तरफ से कौन-कौन दावेदार हैं?

भारत राष्ट्र समिति  के हार के प्रमुख कारण
1. 'दुश्मन' को नहीं देख पाए KCR
तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव सालभर पहले तक भारतीय जनता पार्टी को अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी समझते थे. उन्होंने INDIA गठबंधन में कांग्रेस के साथ मंच तो साझा नहीं किया, लेकिन वो कांग्रेस को अपना विरोधी भी नहीं मानते थे. आज उसी कांग्रेस ने उनकी सत्ता छीन ली.

2. रायथु बंधु योजना नहीं आई काम
राव की महत्वाकांक्षी योजना रायथु बंधु योजना भी काम नहीं आई. उन्होंने चुनाव से ठीक पहले इस योजना के तहत किसानों को दी जाने वाली राशि 10 हजार रुपए से बढ़ाकर 16 हजार रुपए कर दी, लेकिन इसका फायदा नहीं मिला. जनता किस कदर उनसे नाराज थी वो इसे समझ ही नहीं पाए.

3. कांग्रेस ने बनाई बेजोड़ रणनीति
सालभर पहले तक किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस तेलंगाना में सरकार बना सकती है. लोग भारत राष्ट्र समिती का विकल्प बीजेपी में देखते थे. लेकिन रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो मेहनत की और स्ट्रैटेजी बनाई उसका फायदा इस चुनाव में दिख रहा है. निश्चित रूप से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का भी कुछ फायदा मिला होगा. लेकिन इस जीत का तेलंगाना कांग्रेस अध्यक्ष श्रेय रेवंत रेड्डी और चुनाव स्ट्रैटेजिस्ट सुनील कानूगोलू को जाता है.

4. सत्ता विरोधी लहर के बावजूद उतारा मैदान में
राजनीति के जानकारों का मानना है कि पिछले दो कार्यकाल तक केसीआर सत्ता में थे. इसी के साथ सत्तारूढ़ बीआरएस को साल 2023 में एंटी इनकंबेंसी का सामना करना पड़ा. राज्य में करीब 30 से 40 विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पहले से थी. इसके बावजूद केसीआर ने उनको चुनाव मैदान में उतारा. पार्टी के मुखिया केसीआर का यह दाव उन पर ही भारी पड़ गया.

5. पार्टी का नाम बदलना पड़ा भारी
'तेलंगाना राष्ट्र समिति' (TRS) का नाम बदलना भी केसीआर की हार का कारण माना जा रहा है. राष्ट्र स्तरीय राजनीति में एंट्री करने के लिए केसीआर ने TRS का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (BRS) कर दिया था. जानकारों का कहना है कि केसीआर के इस फैसले ने स्थानीय लोगों को नाराज कर दिया खासकर जिनकी भावना तेलंगाना नाम से जुड़ी हुई थी. लिहाजा नाम बदलने की वजह से पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी.

6. दो विधानसभा सीटों से लड़ने का किया फैसला 
BRS पार्टी के मुखिया केसीआर ने दो विधानसभा सीटों से लड़ने का फैसला किया. इसके बाद विपक्ष को मौका मिला और कांग्रेस ने इसे अच्छे से भुनाया. केसीआर के इस फैसले को प्रचार में उनके खिलाफ इस्तेमाल किया गया. चुनाव प्रचार के दौरान कहा गया कि केसीआर अपनी पुरानी सीट हार रहे हैं. इसलिए उन्होंने दो सीटों से लड़ने का फैसला किया है. इससे केसीआर की 'असुरक्षा की भावना' के रूप में पेश किया गया.

7. कांग्रेस एक्शन मोड में आ गई
चुनाव की तारीखों का जैसे ही ऐलान हुआ, कांग्रेस एक्शन मोड में आ गई. इसका विपक्षी पार्टी को फायदा मिला. सत्ता में होने के बावजूद बीआरएस ने एंट्री में आलास दिखाया. इस दौरान केसीआर की भी तबीयत खराब रही. प्रचार में केसीआर की कमी को पार्टी के दूसरे नेता पूरा नहीं कर पाए. इससे कांग्रेस के प्रचार अभियान ने भी स्पीड पकड़ी और जनता के बीच केसीआर गैर-मौजूदगी कांग्रेस का 'हथियार' बनी!

8. विपक्ष के आरोप पर केसीआर ने दिखाई नरमी
कांग्रेस ने प्रचार के दौरान खुलकर कहा कि बीआरएस और बीजेपी साथ मिली हुई. विपक्ष के आरोप पर केसीआर ने नरमी दिखाई. इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा. बीजेपी पर भी BRS कम आक्रामक नजर आई और अल्पसंख्यक मतदाताओं के बीच कांग्रेस ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली. लिहाजा केसीआर की पार्टी को नुकसान हुआ और कांग्रेस ने इसे मौके की तरह लपका.

9. RRR का चला मैजिक
तेलंगाना में RRR मैजिक चला है. RRR मैजिक मतलब राहुल गांधी और रेवंत रेड्डी से है. चुनावी कैंपेन के दौरान राहुल गांधी ने तेलंगाना में करीब 26 रैलियां की थीं. प्रियंका गांधी ने भी यहां पूरा जोर लगाया हुआ था. पार्टी के बड़े दिग्गज के तौर पर जहां राहुल-प्रियंका ने मोर्चा संभाला था, वहीं जमीन पर रेवंत रेड्डी लगे हुए थे. 

10. केसीआर के कथित भ्रष्टाचार का मामला उठाया
तेलंगाना में कांग्रेस का फोकस वेलफेयर मॉडल और डेवलपमेंट मॉडल पर रहा और चुनावी कैंपन में इसी पर फोकस किया. कांग्रेस ने वादा किया है कि वो हर बेरोजगार युवा को चार हजार रुपए हर महीना, महिलाओं को ढाई हजार रुपए, बुज़ुर्गों के लिए चार हजार रुपए पेंशन और किसानों को 15 हजार रुपए देगी. कांग्रेस के चुनाव प्रचार के दौरान केसीआर के कथित भ्रष्टाचार का मामला उठाया जाता रहा. ये सारे दांव कांग्रेस के पक्ष में और बीआरएस को हार का सामना करना पड़ा.

मुख्यमंत्री पद के लिए ये हैं दावेदार
1. रेवंत रेड्डी
रेवंत रेड्डी सीएम की रेस में पहले स्थान पर हैं. रेवंत ने राजनीति की शुरुआत अपने छात्र जीवन से ही कर दी थी. उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन करने वाले रेड्डी उस समय ABVP से जुड़े हुए थे. बाद में वो चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी (TDP) में शामिल हो गए. टीडीपी के कैंडिडेट के तौर पर उन्होंने साल 2009 में आंध्र प्रदेश की कोडांगल विधानसभा सीट से चुनाव जीता था. साल 2014 में वो तेलंगाना विधानसभा में टीडीपी के सदन के नेता चुने गए. साल 2017 में वो कांग्रेस में शामिल हो गए. 

हालांकि कांग्रेस में जाना उनके लिए अच्छा नहीं रहा क्योंकि 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनाव में हार गए. बता दें कि केसीआर ने चुनाव से एक साल पहले विधानसभा भंग करके पहले ही चुनाव करवा दिया था. विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में मलकाजगिरि से टिकट दिया जिसमें उन्होंने महद 10 हजार के करीब वोट मिले थे. साल 2021 में कांग्रेस ने उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देते हुए प्रदेश अध्यक्ष चुना और 2023 में उन्होंने कमाल कर दिया.

2. मल्लू भट्टी विक्रमार्क
रेवंत के बाद मुख्यमंत्री के चेहरों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लू भट्टी विक्रमार्क के नाम की भी खूब चर्चा हो रही है. विक्रमार्क माधिरा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, जहां से वह मौजूदा विधायक भी हैं. आंध्र प्रदेश में पार्टी के एमएलसी रहने के बाद विक्रमार्क माधिरा सीट पर 2009 में पहली बार विधायक चुने गए थे. इसके साथ ही पार्टी ने उन्हें मुख्य सचेतक भी बना दिया.

 जून 2011 में आंध्र प्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष बनने वाले वरिष्ठ नेता 2014 और 2018 में फिर विधायक बने. जनवरी 2019 में विक्रमार्क को तेलंगाना विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता के रूप में नियुक्त किया गया. विक्रमार्क के बड़े भाई अविभाजित आंध्र के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके हैं. उनके मझले भाई भी कांग्रेस सांसद रह चुके हैं.

3. उत्तम कुमार रेड्डी 
तेलंगाना में कांग्रेस ने अपने जिन लोकसभा सांसदों को टिकट दिया है, उनमें एक नाम उत्तम कुमार रेड्डी का भी है. पूर्व प्रदेश अध्यक्ष उत्तम सूर्यापेट जिले की हुजूरनगर सीट से चुनाव मैदान में हैं. फिलहाल वह नलकोंडा लोकसभा सीट से कांग्रेस के सांसद हैं. 2019 में सांसद बनने से पहले रेड्डी हुजूरनगर सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. 

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उत्तम कुमार रेड्डी ने बीआरएस के शानमपुडी सैदी रेड्डी को 7,466 वोटों से हराया था. तेलंगाना से पहले 1999 से 2014 के बीच वह तीन बार आंध्र प्रदेश से विधायक रह चुके हैं. वहीं 2012 से 2014 तक वह आंध्र प्रदेश की सरकार में बतौर कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. सीएम पद के लिए उत्तम कुमार भी दावेदार माने जा रहे हैं.

4. कोमाटी रेड्डी वेंकट रेड्डी 
सांसद कोमाटी रेड्डी वेंकट रेड्डी भी कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव मैदान में हैं. वह नलगोंडा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाए गए हैं. उनका नाम भी राज्य में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के रूप में देखा जा रहा है. 

वह मई 2019 में 17वीं लोकसभा के लिए चुने जाने से पहले 2018 तक कोमाटी तेलंगाना के विधायक थे. इससे पहले वह 1999 से 2014 के बीच आंध्र प्रदेश से तीन बार विधायक रह चुके हैं. वह राज्य की वाईएस राजशेखर रेड्डी की सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं.