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Sitaram Yechury: जन्म चेन्नई में... बचपन गुजरा हैदराबाद में... दिल्ली से शुरू की राजनीति... इंदिरा गांधी को कर दिया था इस्तीफा देने को मजबूर... जानें CPM के पोस्टर बॉय से कट्टर वामपंथी नेता बनने तक की सीताराम येचुरी की कहानी 

Sitaram Yechury Life: सीताराम येचुरी साल 2015 में सीपीएम के महासचिव चुने गए थे. इसके बाद उन्हें साल 2018  में दूसरी और 2022 में तीसरी बार इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया था. सीताराम येचुरी ने देश में कम्युनिस्ट आंदोलन का उभार भी देखा और उसकी ढलान भी देखी.

Sitaram yechuri (File Photo PTI) Sitaram yechuri (File Photo PTI)
हाइलाइट्स
  • सीताराम येचुरी का 12 अगस्त 1952 को हुआ था जन्म 

  • इमरजेंसी के दौरान येचुरी जेल भी गए थे

 मार्क्सवादी आंदोलन का एक और सितारा गुरुवार को टूट गया. सीपीएम (CPM) के महासचिव और लेफ्ट फ्रंट के जाने-माने नेता सीताराम येचुरी (Sitaram Yechury) ने 12 सितंबर 2024 को 72 साल की आयु में दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में अंतिम सांस ली.

सीताराम येचुरी को एक्यूट रेस्पिरेटरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन के चलते गत 19 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था. फेफड़ों में संक्रमण और मल्टी ऑर्गन फेलियोर के चलते उनका निधन हुआ है. आइए आज जानते हैं सीताराम येचुरी के CPM के पोस्टर बॉय से लेकर कट्टर वामपंथी नेता बनने तक की कहानी. 

तेलुगु ब्रह्माण परिवार में हुआ था जन्म 
सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई तब के मद्रास में एक तेलुगु ब्रह्माण परिवार में हुआ था. उनके पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी आंध्र प्रदेश परिवहन विभाग में इंजीनियर थे और मां कलपक्म येचुरी सरकारी अधिकारी थीं. सीताराम येचुरी ने दो शादी की थी. सीताराम येचुरी की पहली पत्नी प्रसिद्ध वामपंथी कार्यकर्ता डॉ. वीना मजूमदार की बेटी थीं. उनसे उनका एक बेटा और एक बेटी है. येचुरी ने तेज तर्रार पत्रकार सीमा चिश्ती से दूसरी शादी की थी. सीताराम येचुरी का सीमा चिश्ती येचुरी से एक बेटा है. 

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कम्युनिस्ट आंदोलन का उभार भी देखा और ढलान भी
सीताराम येचुरी ने देश में कम्युनिस्ट आंदोलन का उभार भी देखा और उसकी ढलान भी देखी. येचुरी 1990 के दशक में सीपीएम के पोस्टर बॉय थे. चाहे मीडिया में पार्टी का पक्ष रखना हो या नेशनल टीवी में डिबेट करना हो, हर तरफ सीपीएम की तरफ से येचुरी ही नजर आते थे. फिर धीरे-धीरे वह कट्टर वामपंथी नेता बन गए. सीताराम येचुरी ने हैदराबाद के ऑल सेंट्स हाई स्कूल से मैट्रिक किया. 1969 के तेलंगाना आंदोलन के बाद वे दिल्ली आ गए.  यहां पर उन्होंने प्रेजीडेंट्स इस्टेट स्कूल में एडमिशन लिया. शुरू से येचुरी पढ़ाई-लिखाई में काफी तेज थे. हायर सेकेंड्री की परीक्षा में वह पूरे देश में टॉप पर रहे. इसके बाद उन्होंने सेंट स्टीफन कॉलेज कॉलेज, नई दिल्ली से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) किया. 

सीताराम येचुरी कैसे आए थे राजनीति में 
सीताराम येचुरी ने 1974 में राजनीति में कदम रखा था. उस समय वे स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के सदस्य बने. इसके बाद वह 1975 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी -मार्क्सवादी में शामिल हो गए. उन्होंने 1975 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की. एमए करने के बाद येचुरी जेएनयू में ही पीएचडी करने लगे.

इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में इमरजेंसी लगा दिया. येचुरी को भी अन्य विपक्षी नेताओं के साथ आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया. इससे उनकी पढ़ाई बीच में ही रूक गई और वह पीएचडी की डिग्री हासिल नहीं कर सके. 1977 में आपातकाल हटने के बाद जेल से रिहा होने के बाद सीताराम येचुरी तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए. सीताराम येचुरी और सीपीआई-एम के पूर्व महासचिव प्रकाश करात ने जेएनयू को वामपंथियों का गढ़ बना दिया.

इंदिरा गांधी के घर तक निकाला था मोर्चा 
सीताराम येचुरी ने इंदिरा गांधी की ओर से लागू किए गए आपातकाल के खिलाफ एक संयुक्त स्टूडेंट्स फेडरेशन का गठन किया. येचुरी ने इस संगठन के सदस्यों के साथ इंदिरा गांधी के घर तक इमरजेंसी के विरोध में मोर्चा निकाला. जब इंदिरा गांधी ने मोर्चा निकाले जाने का कारण पूछा तो वह ज्ञापन पढ़ने लगे. उन्होंने अपने ज्ञापन में लिखा था कि एक तानाशाह को यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति के पद पर नहीं रहना चाहिए. इमरजेंसी के समय इंदिरा गांधी जेएनयू में एक कार्यक्रम करना चाहती थी लेकिन छात्रों के विरोध की वजह से उनका कार्यक्रम नहीं हो पाया. इसके बाद इंदिरा गांधी ने जेएनयू के चांसलर पद से इस्तीफा दे दिया. 

केंद्र की राजनीति करनी कर दी थी शुरू 
सीताराम येचुरी साल 1978 में स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया के ऑल इंडिया संयुक्त सचिव बनाए गए. 1984 में येचुरी को इस संगठन का प्रमुख बनाया गया. येचुरी एसएफआई के पहले प्रमुख थे, जो बंगाल और केरल से नहीं थे. एसएफआई में रहने के दौरान येचुरी ने बंगाल और केरल के बाहर संगठन का विस्तार किया. बाद में येचुरी को सीपीआई (एम) (CPI(M) की केंद्रीय समिति के लिए आमंत्रित किया गया.

येचुरी ने 1986 में एसएफआई छोड़ दी. येचुरी अपनी सांगठनिक क्षमता और कार्य कुशलता के दम पर पार्टी में कामयाबी की सीढ़ियां लगातार चढ़ते गए. 1992 में सीपीएम की चौदहवीं कांग्रेस में वे पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए. इसके बाद उन्होंने केंद्र की राजनीति करनी शुरू कर दी. इसके बाद उनका राजनीतिक करियर लगातार आगे बढ़ता गया. 

पश्चिम बंगाल से पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए थे 
सीताराम येचुरी साल 2005 में पहली बार पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे. वह राज्यसभा में 18 अगस्त 2017 तक रहे. उन्होंने इस दौरान संसद में जनहित के कई मुद्दे उठाए. राज्यसभा में सीताराम येचुरी अपनी वाक क्षमता और तथ्यात्मक भाषण शैली के जाने जाते रहेंगे. सीताराम येचुरी को 19 अप्रैल 2015 को विशाखापत्तनम में पार्टी की 21वीं कांग्रेस में पार्टी का पांचवां महासचिव चुना गया.

येचुरी ने पार्टी की कमान प्रकाश करात से संभाली. 18 अप्रैल 2018 को सीपीएम की 22वीं कांग्रेस में सीताराम युचुरी एक बार फिर से पार्टी के महासचिव बने. 2022 में उन्हें तीसरी बार सीपीएम के इस सर्वोच्च पद के लिए चुना गया था. सीताराम येचुरी को पार्टी के पूर्व महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत की गठबंधन निर्माण विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जाना जाता रहेगा. 

यूपीए के गठन में निभाई थी प्रमुख भूमिका 
सीताराम येचुरी ने साल 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार (यूपीए) के गठन के दौरान गठबंधन निर्माण प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने तत्कालीन सीपीएम महासचिव सुरजीत सिंह के साथ सभी दलों को जोड़ने का काम किया. 2004 में संयुक्त यूपीए ने केंद्र की एनडीए सरकार को हटाने में सफल रही.

2004 में मनमोहन सिंह की सरकार बनने के बाद यूपीए के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार करने में भी येचुरी ने अहम रोल अदा किए. साल 2008 में जब सीपीएम ने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते को लेकर मनमोहन सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था, तब येचुरी ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. उन्होंने पार्टी के समर्थन वापस लेने के फैसला का विरोध किया था. उन्होंने पार्टी के लिए इसे खतरनाक बताया. हालांकि पोलित ब्यूरो के फैसले की वजह से येचुरी इसका खुलकर विरोध नहीं कर पाए. सीताराम येचुरी राजनेता के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री और पत्रकार और लेखक भी थे.