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Craniofacial Surgery: क्रैनोफेशल सर्जरी कर हजारों मरीजों को नया जीवन दे चुके हैं डॉ रमेश शर्मा

डॉ रमेश शर्मा ने गुड न्यूज़ टुडे से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने पीजीआई में इस सर्जरी की शुरुआत 90 के दशक में की थी और यह प्रयोग बिल्कुल सफल रहा था और इस सर्जरी का नाम क्रैनोफेशल सर्जरी होता है.

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हाइलाइट्स
  • इस सर्जरी को बिना टीम के पूरा नहीं किया जा सकता.

  • इस सर्जरी का नाम क्रैनोफेशल सर्जरी होता है.

भारत में कुछ बच्चे पैदा एक अलग तरह सी विकृति से पैदा होते हैं इस विकृति के कारण बच्चों के खोपड़ी की हड्डियों सामान्य नहीं होती. जिसके कारण बच्चों की शक्ल और सूरत सामान्य ना होकर बेढंगी और बदसूरत होती है. इस विकृति के कारण बच्चों का दिमाग विकसित नहीं हो पाता जिसके कारण बच्चे इस बीमारी के कारण मर जाते हैं. भारत में इस बीमारी और विकृति से निपटने को लेकर पीजीआई के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के पूर्व हेड प्रोफेसर रमेश शर्मा ने इस विकृति का भारत में सफल ऑपरेशन किया था और वह भारत में इस ऑपरेशन के पायनियर माने जाते हैं.

डॉ रमेश शर्मा ने गुड न्यूज़ टुडे से खास बातचीत में बताया कि उन्होंने पीजीआई में इस सर्जरी की शुरुआत 90 के दशक में की थी और यह प्रयोग बिल्कुल सफल रहा था और इस सर्जरी का नाम क्रैनोफेशल सर्जरी होता है. इस सर्जरी में खोपड़ी के अंदर की हड्डियों को बाहर निकाला जाता है, उन हड्डियों को शक्ल और सूरत के हिसाब से छोटा या बड़ा किया जाता है और फिर वापस जोड़ दिया जाता है जिससे बच्चे की शक्ल और सूरत सामान्य हो.

डॉ रमेश शर्मा ने बताया कि इस ऑपरेशन में पूरी टीम का सहयोग होता है और इस सर्जरी को बिना टीम के पूरा नहीं किया जा सकता. भावुक आंखों से डॉ रमेश शर्मा ने बताया कि पिछले चार दशकों में वह लगभग हजारों सर्जरी कर चुके हैं और इन बच्चों को और उनके परिवार वालों को एक नई जिंदगी दे चुके हैं. डॉ रमेश शर्मा ने एक वाक्या बताया कि हिमाचल के एक परिवार का बच्चा इसी बीमारी से ग्रस्त पैदा हुआ था और गांव वालों ने उसे शैतान का रूप बताया था. नम आंखों से और आशाओं की उम्मीद लेकर वह परिवार मेरे पास पहुंचा जिसके बाद मैंने उस परिवार का ढांढस बंधाया और उस बच्चे का सफल ऑपरेशन किया. आज वह बच्चा शिमला में डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है. डॉ रमेश शर्मा ने बताया कि ऐसे दर्जनों बच्चे हैं आज जो अलग-अलग क्षेत्रों में नई ऊंचाइयों और बुलंदियों को एक सामान्य रूप में जी रहे हैं और बचपन की उस कल्पना के बारे में सोच भी नहीं पाते हैं.

क्रैनोफेशल सर्जरी के बाद कार्तिक बना युवाओं के लिए मिसाल

साल 2002 में जन्मे कार्तिक अपने भाई और माता पिता के साथ शिमला में रहते हैं. क्रैनोफेशल सर्जरी के बाद कार्तिक का नया जन्म हुआ है. दरअसल जब कार्तिक का जन्म हुआ तो उनके माता-पिता बेहद डरे हुए थे कि बेटे को पता नहीं कौन सी बीमारी है. जिसके बाद उन्होंने डॉक्टरों से बातचीत की और चारों ओर से हताशा और निराशा ही हाथ लगी लेकिन इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी ना मिलने से हालात से ही उन्होंने समझौता कर लिया था. परिवार की माली हालत भी कुछ खास अच्छी नहीं चल रही थी. शिमला में परिवार को गुजारा तब महज 1700 - 1800 रुपए में करना पड़ता था. कार्तिक के इलाज के लिए पैसों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. परिवार ने विधायक से भी मदद की गुहार लगाई लेकिन निराशा ही हाथ लगी. इसी बीच किसी ने मुख्यमंत्री से मदद के लिए बताया तो परिवार तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से मिला और वीरभद्र सिंह ने उन्हें न सिर्फ इलाज के लिए मदद की बल्कि कार्तिक की पढ़ाई के लिए मदद का भी आश्वासन दिया. अब परिवार को तलाश थी एक अच्छे डॉक्टर की जो क्रैनोफेशल सर्जरी करे. शिमला के डॉक्टरों ने कार्तिक के पिता त्रिलोक चंद को चंडीगढ़ पी जी आई में एक अच्छे डॉक्टर का पता बताया. जिसके बाद पी जी आई के डाक्टर शर्मा ने कार्तिक की सर्जरी की ओर अब कार्तिक काफी हद तक ठीक हो गया है. माता पिता जब पुराने दिनों को याद करते हैं तो भावुक हो जाते हैं. लेकिन आज कार्तिक सर्जरी के बाद एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.