जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाए जाने को चुनौती देने वाला याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 2 अगस्त से रोजाना सुनवाई करेगा. इस दौरान कई अहम कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच मामले की सुनवाई करेगी. CJI के अलावा इसमें जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं. दरअसल केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने और सूबे को दो केंद्र शासित प्रदेश में बांटने का फैसला किया था. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
ऐसे साफ हुआ बदलाव का रास्ता-
साल 2018 में जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार थी. लेकिन बीजेपी ने महबूबा मुफ्ती सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद 19 जून 2018 को सूबे में राज्यपाल शासन लगाया गया. जम्मू-कश्मीर के संविधान के आर्टिकल 92 के मुताबिक सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने से पहले 6 महीने तक राज्यपाल शासन होता जरूरी है. राज्य विधानसभा को 21 नवंबर को भंग किया गया था और 12 दिसंबर को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया गया. बाद में संसद के दोनों सदनों से राष्ट्रपति शासन पर सहमति ली गई. 12 जून 2019 को राष्ट्रपति शासन को 6 और महीने के लिए बढ़ा दिया गया था.
जम्मू-कश्मीर को लेकर संविधान में बदलाव-
केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को एक आदेश जारी किया और जम्मू-कश्मीर को लेकर संविधान में बदलाव किया. सरकार ने इस आदेश के जरिए राज्य से आर्टिकल 370 हटाने का फैसला किया. सरकार ने धारा 367 में एक और क्लॉज (4) जोड़ते हुए साफ किया कि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर में लागू होगा. 6 अगस्त को राष्ट्रपित ने इसको लेकर आदेश भी जारी कर दिया.
आर्टिकल 370 में बदलाव-
आर्टिकल 370 के अप्लीकेशन के तहत आर्टिकल 1 और आर्टिकल 370 ही जम्मू-कश्मीर में लागू होता था. इसके अलावा संविधान का कोई भी कानून सूबे में प्रभावी नहीं था. इसके लिए आर्टिकल 370 के क्लॉज (1) (d) राष्ट्रपति को ये शक्तियां देता था कि वो जम्मू-कश्मीर की सरकार की सहमति से अपनी कार्यकारी शक्तियों को लागू कर सकते हैं. धारा 370 का क्लॉज 3 राष्ट्रपति को ये शक्तियां देता है कि विधानसभा की अनुशंसा के बाद ही ये आर्टिकल लागू होगा. दरअसल जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा वजूद में नहीं है, उसे साल 1957 में भंग कर दिया गया था. इसलिए जब तक नई विधानसभा नहीं चुनी जाती है, तब तक राष्ट्रपति की शक्तियों पर रोक लग जाती है. धारा 370 में इसके मकसद का भी जिक्र किया गया था. इसके तहत राज्य सरकार मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करेगी. लेकिन जम्मू-कश्मीर में उस वक्त कोई सरकार नहीं थी. ऐसे में राष्ट्रपति के पास राज्य के अधिकार को अपने में समाहित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
इसका मतलब ये है कि केंद्र सरकार के पास ऐसा कोई कानूनी तरीका नही था, जो आर्टिकल 370 में बदलाव कर सके. लेकिन केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 (1) (d) के तहत राष्ट्रपति की शक्तियों का इस्तेमाल आर्टिकल 367 में बदलाव के लिए किया. इस आर्टिकल में संविधान की व्याख्या की पावर दी गई है. आर्टिकल 367 में राज्य की संविधान सभा को रिप्लेस करने का क्लॉज जोड़ा गया. इसके बाद आर्टिकल 370 (1) (d) के जरिए राष्ट्रपति के आदेश का इस्तेमाल किया गया और आर्टिकल 370 को ही बदल दिया गया. जबकि इससे पहले आर्टिकल 370 में आर्टिकल 370 (3) के तहत संविधान सभा की सिफारिश पर ही बदलाव का कानून था.
राज्य सरकार के अधिकार संसद के पास-
इस बदलाव के साथ ही राष्ट्रपति शासन के जरिए सूबे की सरकार के सारे अधिकार संसद के पास चले गए. इसका मतलब कि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. इसके साथ ही संसद ने सूबे के विधानसभा की जगह ले ली. पहले जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की शक्तियां राज्य विधानसभा को दी गई. लेकिन सूबे में विधानसभा भंग थी. इसलिए राष्ट्रपति की अहमियत बढ़ गई. एक तरफ से राष्ट्रपति अपने ही फैसलों का अनुमोदन करते रहे. हालांकि ये तर्क दिए गए कि सूबे में जब तक कोई चुनी हुई सरकार नहीं है, तब तक राष्ट्रपति शासन के अधिकारी वैसे फैसले नहीं ले सकते हैं, जो सूबे के संवैधानिक संचरना में बदलाव करे.
क्या कहता है जम्मू-कश्मीर का संविधान-
सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर के संविधान को भंग करने के फैसले को चुनौती दी गई है. तर्क है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पास जम्मू-कश्मीर संविधान के तहत भारत के संविधान के किसी भी प्रोविजन में बदलाव की सिफारिश करने की कोई शक्ति नहीं थी. जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 147 में इस बात का जिक्र है कि राज्य की विधानसभा ऐसी कोई भी सिफारिश नहीं कर सकती है, जिससे भारतीय संविधान पूरी तरह से राज्य में लागू हो. अब कहा जा रहा है कि इसका ये मतलब है कि सूबे की विधानसभा भी कानूनी तौर पर राष्ट्रपति के आदेश को लागू करने की सहमति नहीं दे सकता है.
सूबे को 2 केंद्रशासित प्रदेश में बांटना-
केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर एक्ट 2019 के तहत सूबे को दो केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था. इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया हो. यहां तक कि संसद को आर्टिकल 3 के तहत देश के किसी भी हिस्से को राज्य में बदलने, उसके दो हिस्से करने या कुछ हिस्सों को अलग-अलग राज्य में बदलने का अधिकार है.
केंद्र सरकार के फैसले को इस आर्टिकल के आधार पर भी चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि सरकार का फैसला आर्टिकल 3 का उल्लंघन है. इसके अलावा इस आर्टिकल का प्रावधान ये भी कहता है कि राष्ट्रपति ऐसे किसी भी विधेयक या कानून को अपनी स्वीकृति नहीं दे सकते हैं, जो राज्य की सीमा, नाम को बदलने की प्रवृति वाल हो. तर्क दिया जा रहा है कि संसद ऐसे में राज्य के विचार को नहीं बदल सकता है. राष्ट्रपति शासन के दौरान वैसे अधिकार का इस्तेमाल किया जा सकता है, जो राज्य को चलाने के लिए जरूरी है.
ये भी पढ़ें: