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Dandi March: 24 दिनों तक पैदल चल आज ही के दिन दांडी पहुंचे थे बापू...क्या था नमक सत्याग्रह, जानें कैसे हिल गई थी ब्रिटिश साम्राज्य की नींव

Namak Satyagrah: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दांडी मार्च को अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध चलाया था. इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश नेताओं ने गांधीजी को एक ऐसी ताकत के रूप में स्वीकार किया जिसे वे न तो दबा सकते थे और न ही अनदेखा कर सकते थे.

 दांडी मार्च में बापू के साथ अन्य सत्याग्रही (फाइल फोटो) दांडी मार्च में बापू के साथ अन्य सत्याग्रही (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
  • दांडी मार्च को नमक सत्याग्रह और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है

  • गांधीजी ने समुद्रतट पर नमक बनाकर तोड़ा था अंग्रेजों का कानून 

5 April 1930: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 5 अप्रैल का विशेष महत्व है. जी हां, इसी दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम से 24 दिनों तक लगातार पैदल चल दांडी पहुंचे थे. 6 अप्रैल 1930 की सुबह समुद्रतट पर नमक बनाकर अंग्रेजों का कानून तोड़ा था. नमक सत्याग्रह के बाद ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिल गई थी.

नमक सत्याग्रह
दांडी मार्च को नमक सत्याग्रह और दांडी सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है. इसे बापू ने 12 मार्च, 1930 से 6 अप्रैल, 1930 तक अंग्रेज सरकार के नमक के ऊपर कर लगाने के कानून के विरुद्ध चलाया था. इस सत्याग्रह के दौरान राष्ट्रपिता ने रोज औसतन 16 से 19 किलोमीटर पैदल यात्रा की. नमक सत्याग्रह को गांधीजी ने 78 अनुयायियों के साथ शुरू किया था, फिर इसमें लाखों लोग जुड़ गए. नमक सत्याग्रह महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए प्रमुख आंदोलनों में से एक था. दांडी की तर्ज पर देश के अन्य नेताओं ने बंबई और कराची जैसे तटीय शहरों में नमक बनाने के लिए जुटी भीड़ का नेतृत्व किया. इसी यात्रा के खत्म होने पर देशव्यापी ऐतिहासिक सविनय अवज्ञा आंदोलन व्यापक तौर पर शुरू हुआ था. इस आंदोलन के नतीजों के बाद से देश में आजादी के शासन व्यवस्था की नींव बनने की शुरुआत हो गई.

अंग्रेजों ने बरसाई लाठियां
नमक कानून भंग करने के आरोप में अंग्रेजों ने सत्याग्रहियों पर खूब लाठियां बरसाई. इसके बावजूद देशभक्तों का कदम नहीं डगमगाया. ब्रिटिश अधिकारियों ने 60,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया. 5 मई को गांधीजी के गिरफ्तार होने के बाद भी यह सत्याग्रह जारी रहा. अमेरिकी पत्रकार वेब मिलर ने अंग्रेजों के सत्याग्रहियों पर हुए अत्याचार की कहानी दुनिया तक पहुंचाई. इससे अंग्रेजी साम्राज्य की विश्व में खूब किरकिरी हुई.

बापू को जनवरी 1931 में जेल से किया रिहा 
बापू को जनवरी 1931 में ब्रिटिश अधिकारियों ने जेल से रिहा कर दिया. इस आंदोलन के बाद गांधी जी का सत्याग्रह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ. टाइम ने गांधी जी को 1930 का पर्सन ऑफ द ईयर घोषित कर दिया. ये आंदोलन पूरे एक साल चला और 1931 को गांधी-इर्विन समझौते के बाद खत्म हो गया.  इस समझौते में लंदन में भारत के भविष्य पर होने वाले गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने तथा सत्याग्रह को समाप्त करने पर सहमति बनी.

अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर होना पड़ा
गांधी-इरविन समझौते के बाद अंग्रेजों ने भारत को स्वायत्तता देने के बारे में विचार करना शुरू कर दिया था. 1935 के कानून में इसकी झलक देखने को मिली. अंग्रेजों ने भारतीयों को शासन में भागीदारी देना शुरू किया. सविनय अवज्ञा आंदोलन की सफलता के विश्वास को लेकर गांधी जी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया. जिससे अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर होना पड़ा.