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Data Protection Bill: प्राइवेसी के बारे में क्या कहता है डाटा प्रोटेक्शन बिल, केंद्र की शक्ति और सूचना के अधिकार को लेकर क्या है प्रावधान

Digital Personal Data Protection Bill: डाटा प्रोटेक्शन बिल में पिछले साल नवंबर में प्रस्तावित कानून के सभी प्रावधानों को रखा गया है. इसमें केंद्र सरकार को कई शक्तियां दी गई हैं. सरकार का कहना है कि इसमें आरटीआई और पर्सनल डाटा में सामंजस्य बनाया गया है.

डाटा प्रोटेक्शन बिल में प्राइवेसी और आरटीआई को लेकर क्या है डाटा प्रोटेक्शन बिल में प्राइवेसी और आरटीआई को लेकर क्या है

डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल 2023 लोकसभा में पास हो गया है. ये दूसरी बार है जब केंद्र सरकार ने प्राइवेसी कानून बनाने की कोशिश की है. इससे पहले 3 बार इसको लेकर विचार किया गया. लेकिन हर बार स्थगित कर दिया गया. लोकसभा में पास होने के बाद बिल को राज्यसभा में पास कराना होगा. उसके बाद ये बिल कानून बन जाएगा.

केंद्र के पास है शक्ति-
ये बिल केंद्र सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ संबंधों और सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव समेत दूसरी बातों का हवाला देकर राज्य के किसी भी साधन से छूट देता है.
इस बिल को लेकर जो चिंताएं हैं, उसपर आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव ने कहा कि छूट की जरूरत है. उन्होंने कहा कि अगर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा आती है तो क्या सरकार के पास सहमति लेने का समय होगा या फौरन सुरक्षा के लिए काम करना होगा? अगर पुलिस किसी अपराधी को पकड़ने के लिए जांच कर रही है तो क्या उनको सहमति लेनी चाहिए?
बिल में कहा गया है कि अगर किसी इकाई को 2 से अधिक बार सजा दिया गया हो, तो केंद्र सरकार उस इकाई को सुनने के बाद उसे देश में ब्लॉक करने का फैसला कर सकती है. यह नया प्रावधान इस बिल में जोड़ा गया है. ये प्रावधान साल 2022 के मसौदे में नहीं था. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों का कहना है कि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 की धारा 69(A) के तहत मौजूद ऑनलाइन सेंसरशिप को जोड़ा जा सकता है. 
डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड के सदस्यों की नियुक्ति पर केंद्र सरकार का कंट्रोल होगा, जो गोपनीयता संबंधी शिकायतों और विवादों का निपटारा करेगा. माना जा रहा है कि इसको बरकरार रखा गया है. बोर्ड के चीफ एक्जीक्यूटिव को केंद्र सरकार नियुक्त करेगी और उनकी सेवा और शर्तों को भी तय करेगी. अश्विनी वैष्णव ने कहा कि डाटा प्रोटेक्शन बोर्ड के फैसलों के खिलाफ टेलीकॉम डिस्प्यूट सेटलमेंट एंड अप्लाइड ट्रिब्यूनल में अपील की जा सकती है. इस ट्रिब्यूनल की अगुवाई एक न्यायिक सदस्य करता है.
इसका मतलब है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर बिना नागरिकों की सहमति के डाटा प्रोसेस कर सकती है. इसके साथ ही सब्सिडी, फायदे, सर्टिफिकेट्स, लाइसेंस या परमिट देने के नाम पर सरकार डाटा प्रोसेस कर सकती है. निजी कंपनियों को इंप्लॉयमेंट रिलेटेड मैटर्स से निपटने के लिए ये विशेषाधिकार दिए गए हैं.

आरटीआई कानून को लेकर क्या हैं चिंता-
इस बिल में आरटीआई एक्ट को कमजोर करने की आशंका है. इस बिल में सरकारी अधिकारियों के निजी डाटा को प्रोटेक्ट किया जा सकता है, जिससे इसे आरटीआई कार्यकर्ताओं से शेयर करने में दिक्कत हो सकती है. अश्विनी वैष्णव ने कहा कहा कि आरटीआई और पर्सनल डाटा के बीच सामंजस्य बनाया गया है.

इंडस्ट्री के लिए राहत-
बिल में इंडस्ट्री की काफी समय से चली आ रही 2 मांगों को रखा गया है. इसमें बच्चों के लिए सहमति की उम्र में ढील देना और क्रॉस बॉर्डर डाटा प्रवाह को काफी आसान बनाना शामिल है.
बिल के तहत केंद्र सरकार बिना माता-पिता की सहमति के इंटरनेट सेवाओं तक पहुंचने की उम्र 18 साल से कम कर सकती है. इसके लिए जरूरी है कि प्लेटफॉर्म बच्चों के डाटा को 'सत्यापित रुप से सुरक्षित तरीके' से प्रोसेस करे.
केंद्र सरकार इंटरनेशनल ज्यूरिडिक्शन में आसानी से डाटा फ्लो का प्रस्ताव दिया है. इसके लिए सरकार ने व्हाइटलिस्टिंग एप्रोच से हटते हुए ब्लैकलिस्टिंग मैकेनिज्म की तरफ कदम बढ़ाया है.

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