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Delhi Assembly Session 2025: दिल्ली विधानसभा में होगा रेखा बनाम आतिशी, दो महिला नेताओं की जंग में कौन पड़ेगा भारी? जानिए

दिल्ली विधानसभा का पहला सत्र 24 फरवरी को होगा. उससे पहले आम आदमी पार्टी ने आतिशी को विधायक दल का नेता चुना है. इससे विधानसभा सत्र में सीएम रेखा गुप्ता और विपक्ष की नेता आतिशी के जुबानी जंग देखने को मिल सकती है.

Rekha Gupta VS Atishi in Delhi Assembly Session (Photo Credit: PTI) Rekha Gupta VS Atishi in Delhi Assembly Session (Photo Credit: PTI)
हाइलाइट्स
  • 24 फरवरी से दिल्ली विधानसभा का सत्र

  • आतिशी बनीं नेता प्रतिपक्ष

दिल्ली में रेखा सरकार के गठन के बाद विधानसभा का पहला सत्र 24 फरवरी को होना है. दिल्ली विधानसभा का ये सत्र तीन दिन का होगा. इसी बीच रविवार को आम आदमी पार्टी ने अपने विधायक दल का नेता चुन लिया है. 

दिल्ली की पिछली मुख्यमंत्री आतिशी आम आदमी पार्टी के विधायक दल की नेता होंगी. दिल्ली की आठवीं विधानसभा में दो ताकतवर महिलाएं अपनी-अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगी. 

रेखा गुप्ता को भाजपा ने दिल्ली की मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश दिया कि महिला सशक्तिकरण के लिए उनकी बातों में काफी दम है. रेखा गुप्ता भारतीय जनता पार्टी में लगभग तीन दशकों से सक्रिय रही हैं. वो दिल्ली की सियासत को एमडी से लेकर अब दिल्ली सरकार तक भली-भांति समझती हैं. 

आतिशी को क्यों चुना विपक्ष का नेता?
आतिशी यूं तो दूसरी बार कालकाजी से विधायक चुनकर आई हैं लेकिन अरविंद केजरीवाल की गैर-मौजूदगी में दिल्ली का मुख्यमंत्री बनीं. दिल्ली की सीएम बनना उनकी राजनीतिक कैरियर की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है.

आम आदमी पार्टी सीधे 62 सीटों से नीचे गिरकर इस विधानसभा चुनाव में 22 सीटों पर आ गई. पार्टी के बड़े-बड़े धुरंधर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज शामिल चुनाव हार गए. कालकाजी में काफी कड़े मुकाबले में आतिशी ने बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद रमेश बिधूड़ी को हरा दिया. 

सीनियरिटी के मुताबिक. आम आदमी पार्टी के पास गोपाल राय, संजीव झा, जरनैल सिंह और सोम दत्त जैसे विकल्प मौजूद थे. आम आदमी पार्टी ने उन सब पर पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को ही तरजीह दी. भले ही यह कहा जा रहा हो कि मुख्यमंत्री महिला हैं. ऐसे में विपक्ष का नेता भी एक महिला नेता हो तो उसे विधानसभा के अंदर चुनौती देना आसान होगा.  

बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. आतिशी अरविंद केजरीवाल की विश्वासपात्र भी हैं. आम आदमी पार्टी को करीब से जानने वाले यह बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल कम लोगों पर ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों के लिए भरोसा करते हैं.

रेखा गुप्ता बनाम आतिशी?
यह एक ऐसा मुकाबला है जो दिल्ली की सियासत को काफी रोचक बनाएगा. रेखा गुप्ता पहली बार विधायक बनी हैं. उन्हें सरकारी कामकाज सीखने और संभालने में थोड़ा वक्त लग सकता है. आम आदमी पार्टी को यह लगता है कि यही मौका है जब नई सरकार पर थोड़ा दबाव बनाया जाए. 

आतिशी लगातार अपनी आक्रामकता के लिए जानी जाती रही हैं. केजरीवाल की पार्टी उन्हें सत्ताधारी बीजेपी को घेरने के लिए सबसे अच्छा विकल्प मान रही है. रेखा गुप्ता दिल्ली विधानसभा के लिए नई जरूर हों लेकिन उन्हें विधायी कामकाज का अच्छा खासा अनुभव है. रेखा गुप्ता तीन बार पार्षद रही हैं. इसमें से दो बार तो उन्हें सत्ता चलाने का अनुभव भी है. 

रेखा गुप्ता को करीबी से जानने वाले बताते हैं कि आक्रामकता में रेखा गुप्ता भी कम नहीं हैं. जब साथ में संख्या बल होगा तो उनके लिए काम और भी आसान होगा. विधानसभा के भीतर दो आक्रामक महिलाओं के बीच तीखी नोंकझोंक देखने को तो मिल ही सकती है.

कौन पड़ेगा भारी?
दिल्ली विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी के पास संख्या बल आम आदमी पार्टी की तुलना में दोगुने से भी ज्यादा है. अनुभव के लिहाज से भी दोनों पार्टियों के पास कई सदस्य ऐसे हैं जिन्होंने पहले भी विधानसभा के भीतर मुश्किल परिस्थितियों का सामना किया है. 

रेखा गुप्ता के साथ काफी अनुभवी विजेंद्र गुप्ता का विधानसभा अध्यक्ष बनना इस विधानसभा में गेम चेंजर साबित हो सकता है. रेखा गुप्ता पर निश्चित तौर पर इन चुनाव में किए हुए वादों को पूरा करने का दबाव तो होगा लेकिन साथ ही साथ आतिशी पर पिछली सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोपों पर जवाब देने की भी जिम्मेदारी होगी. 

जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी के विधायकों का मनोबल भी काफी बढ़ा हुआ होगा इसलिए इसका फायदा सीधे-सीधे रेखा गुप्ता को मिलने वाला है. वहीं आतिशी को अपनी पार्टी की हार पीछे रखकर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे अनुभवी नेताओं की गैर-मौजूदगी में पार्टी के नेतृत्व की बड़ी जिम्मेदारी होगी.

इन दोनों में जिस नेता ने भी अपना लोहा मनवा दिया. उसके लिए भविष्य में संभावनाएं काफी ज्यादा खुलने वाली हैं. दिल्ली विधानसभा के अंदर दोनों नेताओं पर ही सबकी नजर होगी कि वह अपनी-अपनी पार्टियों को कैसे नेतृत्व दे पाती हैं?