दिल्ली के कुछ हिस्से बाढ़ से जूझ रहे हैं और निचले इलाकों के निवासियों को कई दिनों से सुरक्षित जगहों पर पहुंचने की सलाह दी जा रही है. यह स्थिति बहुत से दिल्लीवालों के लिए नई नहीं है. एक बार पहले भी लोग इस तरह की घटना के साक्षी रहे हैं. जी हां, साल 1978 में भी दिल्ली इसी तरह जलमग्न हुई थी. सितंबर 1978 में दिल्ली में सिर्फ पानी ही पानी दिख रहा था.
उस साल 6 सितंबर को, पूर्वी और उत्तरी दिल्ली को सौ सालों में शहर की सबसे भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा. 6 सितंबर, 1978 को नदी में 7 लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया था, और पुराने रेलवे पुल पर जल स्तर 207.49 मीटर तक पहुंच गया था - जो कि तत्कालीन खतरे के निशान 204.83 मीटर से 2.66 मीटर ऊपर था.
लाखों लोगों की जिंदगी हुई थी प्रभावित
लेकिन यह स्तर टूट गया जब पानी 207.71 मीटर तक पहुंच गया. बाढ़ का पानी पहली बार 1978 में जहांगीरपुरी में घुसा और जल्द ही अन्य जगहों पर फैल गया. यह जलप्रलय उत्तरी और पूर्वी दिल्ली में रहने वाले हजारों परिवारों के मन में बसा हुआ है. इस बाढ़ ने 2.5 लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित किया, 20 लोगों की जान ले ली और 16 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया. शहर आपातकाल की स्थिति में था.
टेलीफोन लाइनें बंद कर दी गईं, पुल बंद कर दिए गए और लोगों को बचाने और भोजन और अन्य आवश्यकताएं प्रदान करने के लिए सेना को तैनात किया गया. रिकॉर्ड बताते हैं कि यमुना की तीव्रता इतनी थी कि पानी ने दो तटबंधों को तोड़ दिया - दायां सीमांत बांध और बायां सीमांत बांध - और अलीपुर, मुखर्जी नगर, किंग्सवे कैंप, दिल्ली विश्वविद्यालय, आदर्श नगर, सिविल लाइन्स, बेला रोड, ओखला, सराय काले खां और महारानी बाग में बाढ़ आ गई. नजफगढ़ नाले के उल्टे प्रवाह ने पश्चिमी दिल्ली के कई हिस्सों जैसे जनकपुरी, हस्तसाल, उत्तम नगर, पंखा रोड, विष्णु गार्डन और नजफगढ़ और इसके आसपास के 72 गांवों को जलमग्न कर दिया.
1978 के बाद दो बार बढ़ा यमुना का लेवल
1978 के बाद, यमुना का जल स्तर केवल दो बार 207 मीटर से ऊपर गया है- 2010 (207.11 मीटर) और 2013 (207.32 मीटर) में. 2013 में नदी में लगभग 8 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया था. 2019 में, 8.28 लाख क्यूसेक पानी नदी में छोड़ा गया और स्तर 206.6 मीटर तक पहुंच गया. अधिकारियों के अनुसार, आज जो तटबंध खड़े हैं, उन पर काम 1970 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ था. 1978 की बाढ़ के दौरान भी वे मजबूत नहीं हुए थे.
उस समय शहर में एक मजबूत जल निकासी प्रणाली का अभाव था. पिछले कुछ सालों में चीजें बदल गई हैं। नदी के दोनों किनारों पर तटबंधों को लगभग 20 कंक्रीट स्ट्रक्चर्स से मजबूत किया गया - जो रणनीतिक बिंदुओं पर स्थित हैं जहां नदी अपना रास्ता बदलती है - और 10 बांध , जो हरियाणा में हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने पर दिल्ली में बाढ़ को रोकता है.
तटबंधों की ऊंचाई भी बढ़ा दी गई है, अतिरिक्त पानी को सीवरों में भेज दिया जाता है और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में चला जाता है. पानी के बैकफ्लो को रोकने के लिए प्रमुख नालों को बंद कर दिया गया है.